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महकता रिश्ता (लघुकथा) - सुनीता त्यागी

नीलेश को सामने देख कर पायल को विश्वास नहीं हो रहा था कि ये वही लड़का  है जो स्कूल के दिनों में हमेशा उसे परेशान करता रहता था।नीलेश और वो दोनों जब एक ही कक्षा में पढ़ते थे,तब एक दिन वह उसके पीछे ही पड़ गया था। 
" पायल मुझे तुम बहुत अच्छी लगती हो "।
" अच्छा!! " पायल ने हंसते हुए जवाब दिया था। 
"सीमा बता रही थी,तुम ये शहर छोड़ कर जा रही हो,"

" हां!  वो ठीक कह रही थी "।
प्लीज़!. ऐसा मत करना पायल...,मै तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ, तुम्हारे बिना रह नहीं सकूंगा "।
" अरे कैसी पागलों वाली बातें कर रहा है तू, अभी तो हमने बारहवीं भी पास नहीं की है।  अभी बहुत कुछ करना है लाइफ में,  प्यार व्यार की बातें तो बाद में सोचेंगें, पहले पढ़ाई तो पूरी कर लें।समझा ?पायल ने चौंक कर हंसते हुए नीलेश की बात को टालना चाहा।
"लेकिन पायल तुम नहीं जानतीं,मैं तुम्हें दिलो-जान से  प्यार करता हूं, बस कभी कह नहीं पाया। यदि यकीन न हो तो चलो मेरे रूम पर" । 

कमरे का कोई कोना ऐसा न था,जहाँ पायल की तस्वीरें न चिपकी हों। हंसती, रोती, खिलखिलाती, उदास, दौड़ती, भागती,  हर पोजिशन के फोटो वहाँ लगे थे। कुछ छूटे हुए स्थानों पर पायल,पायल और सिर्फ पायल ही लिखा था ।  नीलेश की ऐसी दीवानगी देख कर पायल की आंखें विस्मय से फटी की फटी रह गयीं।

" ओ माइ गॉड! ये क्या पागलपन है नीलेश!!  पायल ने आश्चर्य से झिड़कते हुए कहा _ क्या सच में तुम मुझे इतना चहते हो!! "।
" आजमा कर देख लो!! तुम कहो तो मैं अपनी जान भी दे दूं ,  बस एक बार ये कह दो कि तुम भी मुझे.....  "।
" अरे अभी तुम्हारी औकात ही क्या है। फिर भी! मैं जो कहूँगी, क्या तुम वही करोगे " ?  पायल ने कटाक्ष करते हुए पूछा ।
" तुम कहो तो सही "।
" तो फिर मुझसे ये वादा करो, कि जब तक तुम पढ़ लिख कर मेरे योग्य नहीं बन जाओगे,  मुझसे कभी नहीं मिलोगे "।
पायल की बातों ने नीलेश के भीतर गहरे तक वार कर दिया था। फिर वह कुछ न बोल सका।
आज वही नीलेश लेफ्टिनेंट नीलेश के रूप में पायल केे सामने खड़ा था। 
" हैलो!  मैडम! कहां खो गयीं, अन्दर आने को नहीं कहोगी " ।
ओss  सौरी आइये!   मि. पागल ,।  पायल के मुंह से अनायास ही निकल गया। वर्षों से मुर्झाये रिश्ते की लता से आज प्यार के फूलों की भीनी महक फूट रही थी। 

© सुनीता त्यागी
 राजनगर एक्सटेंशन गाजियाबाद 
 ईमेल : sunitatyagi2014@gmail.com


आदरणीय सुनीता जी की रचनाएं हमे मानवीय संवेदना, मानवीय भावना के विभिन्न रूप और तीव्रताएं यथा प्रेम, परवाह, चाह और संकल्प इत्यादि , नज़र की सूक्ष्मता, सामाजिक संघर्ष और विसंगतियों पर प्रकाश डालती और लोगों मे संवेदना और जागरूकता जगाने का सफल प्रयत्न करती दिखती हैं, इनकी रचनाएँ पढ़कर खुद को एक संवेदी और व्यापक सोंच और दृष्टिकोण वाला इंसान बनाने मे मदद मिलती है |


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परिंदा (लघुकथा) - सुनीता त्यागी

आँगन में  इधर-उधर फुदकती हुई गौरैया अपने बच्चे को उड़ना सिखा रही थी। बच्चा कभी फुदक कर खूंटी पर बैठ जाता तो कभी खड़ी हुई चारपायी पर, और कभी गिरकर किसी सामान के पीछे चला जाता। 

संगीता अपना घरेलू काम निपटाते हुई, ये सब देख कर  मन ही मन आनन्दित हो रही थी। उसे लग रहा था, मानो वह भी अपने बेटे रुद्रांश के साथ लुका-छिपी  खेल रही है।

आँखों से ओझल हो जाने पर जब गौरैया शोर करने लगती तब संगीता भी डर जाती कि जैसे रुद्रांश ही कहीं गुम हो गया है, और घबरा कर वह  गौरैया के बच्चे को श..श. करके आगे निकाल देती। 

बच्चा अब अच्छी तरह उड़ना सीख गया था।  इस बार वह घर की मुंडेर पर जाकर  बैठ गया और अगले ही पल उसने ऐसी उड़ान भरी कि वह दूर गगन में उड़ता चला गया। 

गौरैया उसे ढूंढ रही थी और चीं- चीं, चूं - चूं के शोर से उसने घर सिर पर उठा लिया। 

सन्तान के बिछोह में चिड़िया का करुण क्रन्दन देखकर  संगीता का दिल भी धक से बैठ गया। वो भी एक माँ जो ठहरी!  उसके बेटे रुद्र ने भी तो विदेश जाने के लिए पासपोर्ट बनवा लिया है औरअब कई दिनों से अमेरिका का वीजा पाने के प्रयास में लगा है।

© सुनीता त्यागी
 राजनगर एक्सटेंशन गाजियाबाद 
 ईमेल : sunitatyagi2014@gmail.com


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मान का पान (लघुकथा) - सुनीता त्यागी

भैया का फोन सुनते ही बिना  समय गंवाये रिचा पति के संग मायके पहुंच गई। मम्मी की तो सबसे लाडली बेटी थी वो।
मां की गम्भीर हालत को देख कर  रिचा की आंखों से आंसुओं की झड़ी लग गयी। मां का हाथ अपने हाथों में थाम कर " मम्मी sss " सुबकते हुए बस इतना ही कह पायी रिचा "। 

बेटी की आवाज कानों में पड़ते ही मां ने धीरे से आँखें खोल दीं । बेटी को सामने देकर उनके चेहरे पर खुशी के भाव साफ झलक रहे थे। "  तू.. आ.. गयी.. बिटिया!.. कैसी है तू!,  मेरा.. अब.. जाने का.. वक्त.. आ. गया.. है ,  बस तुझ से.. एक ही बात.. कहनी थी बेटा ! "

" पहले आप ठीक हो जाओ मम्मी!!  बात बाद में कह लेना " रिचा नेआँखों से हो रही बरसात पर काबू पाने की असफल कोशिश करते हुए कहा।

" नहीं बेटा!.. मेरे पास.. वक्त नहीं है,.. सुन!.. मां बाप किसी.. के हमेशा.. नहीं रहते,..  उनके बाद.. मायका. भैया भाभियों से बनता है.. "। मां की आवाज कांप रही थी।
रिचा मां की स्थिति को देख कर अपना धैर्य खो रही थी।  और बार बार एक ही बात कह रही थी ऐसा न कहो मम्मा!सब ठीक हो जायेगा "।

मां ने अपनी सारी सांसों को बटोर कर फिर बोलने की हिम्मत जुटाई " मैं तुझे एक ही... सीख देकर जा.. रही हूं बेटा!मेरे बाद भी रिश्तों की खुशबू यूं ही बनाये रखना,  भैया भाभियों के... प्यार.. को कभी लेने -देने की.. तराजू में मत तोलना..
बेटा!..  मान का.. तो पान ही.. बहुत.. होता है ",  मां ने जैसे तैसे मन की बात बेटी के सामने रख दी। शरीर में इतना बोलने की ताकत न थी, सो उनकी सांसें उखड़ने लगीं।

" हां मम्मा!आप निश्चिंत रहो, हमेशा ऐसा ही होगा, अब आप शान्त हो जाओ, देखो आप से बोला भी नहीं जा रहा है  ", रिचा ने मां को भरोसा दिलाया और टेबल पर रखे जग से पानी लेकर, मां को पिलाने के लिए जैसे ही पलटी, तब तक मां की आंखें बन्द हो चुकी थीं।
चेहरे पर असीम शान्ति थी, मानों उनके मन का बोझ हल्का हो गया था ।

© सुनीता त्यागी
 राजनगर एक्सटेंशन गाजियाबाद 
 ईमेल : sunitatyagi2014@gmail.com


आदरणीय सुनीता जी की रचनाएं हमे मानवीय संवेदना, मानवीय भावना के विभिन्न रूप और तीव्रताएं यथा प्रेम, परवाह, चाह और संकल्प इत्यादि , नज़र की सूक्ष्मता, सामाजिक संघर्ष और विसंगतियों पर प्रकाश डालती और लोगों मे संवेदना और जागरूकता जगाने का सफल प्रयत्न करती दिखती हैं, इनकी रचनाएँ पढ़कर खुद को एक संवेदी और व्यापक सोंच और दृष्टिकोण वाला इंसान बनाने मे मदद मिलती है |


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धारणा बदलने वाली कुछ कहानियां (स्वर नम्रता सिंह)-1

पटकनी - ममता कालिया 

https://www.youtube.com/watch?v=pGOThd7KxHI&t=74s

सह जीवन 

भिखारिन  - जयशंकर प्रसाद

https://www.youtube.com/watch?v=H0wO8ptunKQ

साहब, दो दिन में एक पैसा तो दिया नहीं, गाली क्यों देते हो ?

हींग वाला - सुभद्रा कुमारी चौहान 

https://www.youtube.com/watch?v=sg9VxsbcBJ4

बाहर माहौल खराब है अम्मा ........

अंधे : खुदा के बन्दे - रमेश बत्रा

https://www.youtube.com/watch?v=Z5NdxIVUxCY

जो आदमी होकर आदमी को नहीं पहचानते ......... अँधा हो चूका हूँ, मोहताज नहीं होना चाहता |

अनुभवी - रमेश बत्रा

https://www.youtube.com/watch?v=slgp8WoEeZg

बाप मर गया है .......

नदियाँ और समुद्र - रामधारी सिंह दिनकर 

https://www.youtube.com/watch?v=mF-c9lXXgY4

गंभीर और मर्यादावान 

चलोगे- रमेश बत्रा

https://www.youtube.com/watch?v=CbbErGtMHSA

आप तो ऐसे कह रहे हैं जैसे कि मै कोई मुहर मांग लूँगा 

आनंद लीजिये इन कहानियों का चेतना को छूने वाली कथावस्तु और मन को बाँधने वाली आवाज में |

धन्यवाद की पात्र हैं वह लेखिका/लेखिका जिन्होंने ये कहानियां लिखी और वह वक्ता यानी नम्रता जी जिन्होंने अपनी  आवाज में इन्हें  हमारे लिए और सुलभ तथा रोचक  बनाया |

बोलते तो सब हैं एक बोलना ये भी है कि आप किसी चेतना को छूने वाली कहानी को आवाज दें |


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धारणा बदलने वाली कुछ कहानियां (स्वर नम्रता सिंह)-2

"कहूँ कहानी"- रमेश बत्रा

https://www.youtube.com/watch?v=cYWZsheaqkE एक लाजा है वो बहोत गलीब है 

"परिचित"- डॉ. रामनिवास मानव 

https://www.youtube.com/watch?v=96H4nrWtfXk दस के नोट 

"नन्दा"-कन्हैया लाल मिश्र प्रभाकर

https://www.youtube.com/watch?v=ql3mQ9zapXA नंदा उस नींद में सो रहा था जिससे कोई नहीं जागा 

भोज, प्रतिभा राय

https://www.youtube.com/watch?v=c4_P-QvrcTM&t=1s एक दिन होने वाले भोज की तैयारी पिछले 10 दिनों से 

गालियां- चंद्रधर शर्मा गुलेरी

https://www.youtube.com/watch?v=jGDKC4Lez5g क्योंकि अब गलियाँ चुभती हैं |

आनंद लीजिये इन कहानियों का चेतना को छूने वाली कथावस्तु और मन को बाँधने वाली आवाज में |

धन्यवाद की पात्र हैं वह लेखिका/लेखिका जिन्होंने ये कहानियां लिखी और वह वक्ता यानी नम्रता जी जिन्होंने अपनी  आवाज में इन्हें  हमारे लिए और सुलभ तथा रोचक  बनाया |

बोलते तो सब हैं एक बोलना ये भी है कि आप किसी चेतना को छूने वाली कहानी को आवाज दें |


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दिल को छू लेने वाली कुछ कहानियां (स्वर नम्रता सिंह)
परिंदा - सुनीता त्यागी  https://www.youtube.com/watch?v=BWUyL5xtPGU
तस्कीं को हम न रोयें - ममता कालिया https://www.youtube.com/watch?v=B_mpmpd5VeA
थोड़ा सा प्रगतिशील - ममता कालिया  https://www.youtube.com/watch?v=0tdKgYiLTqs
परली पार - ममता कालिया https://www.youtube.com/watch?v=MaXpAwVXnOc
पंडिताइन - ममता कालिया https://www.youtube.com/watch?v=JgJW0VmNNlU

आनंद लीजिये इन कहानियों का चेतना को छूने वाली कथावस्तु और मन को बाँधने वाली आवाज में |

धन्यवाद की पात्र हैं वह लेखिका जिन्होंने ये कहानियां लिखी और वह वक्ता यानी नम्रता जी जिन्होंने अपनी  आवाज में इन्हें  हमारे लिए और सुलभ तथा रोचक  बनाया |

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दवा (लघुकथा) - सुषमा सिन्हा

अम्मा अपने लिए दवा ले रही थी, तभी दुकान पर एक व्यक्ति अपना पर्चा आगे कर दिया। दुकानदार ने दवा देते हुए कहा, यह बहुत बढ़िया टॉनिक है। इस से दिमाग तेज होता है, ब्रेन शार्प बनता है। याददाश्त ठीक रहती है...। बच्चों के लिए तो बहुत ही अच्छी दवा है। वह व्यक्ति दवा लेकर चला गया। अम्मा उत्सुकतावश दुकानदार से पूछी, बेटा इसके प्रयोग से याददाश्त कितनी अच्छी हो सकती है? क्या बहुत पीछे की बातें भी..., जैसे बचपन की बातें भी याद आ सकती है ?

दुकानदार मुस्कुराते हुए कहा-आप भी ना अम्मा! बच्चों की तरह बातें कर रही हैं। इस उम्र में आप बचपन के दिनों में लौटना चाहती हैं। नहीं बेटा! मैं अपने लिए नहीं, अपने बच्चों के लिए पूछ रही थी। क्या इस दवा से उन्हें अपने बचपन की याद आ सकती है? क्या इतनी कारगर दवा है? दुकानदार पुनः मुस्कुरा कर बोला, नहीं अम्मा! ऐसा तो नहीं हो सकता ! मगर आप ऐसा क्यों पूछ रही हैं? अम्मा बेचारी परेशान और बीमार थी। दुकानदार से जाते- जाते, धीरे-धीरे कहने लगी, क्या करें..! बच्चे सबूत मांगते हैं... कि, हमने उनके लिए किया ही क्या है ?

© सुषमा सिन्हा, वाराणसी 

ईमेल- ssinhavns@gmail.com


 आदरणीय सुषमा सिन्हा जी का जन्म वर्ष 1962 में गया (बिहार) में हुआ, इन्होने बीए ऑनर्स (हिंदी), डी. सी. एच., इग्नू (वाराणसी)  उर्दू डिप्लोमा में शिक्षा प्राप्त की|

विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में विगत 32 वर्षों से कविता, लघु कथा, कहानी आदि प्रकाशित । इनकी  प्रकाशित पुस्तकें निम्नलिखित हैं :-
चार लघुकथा संग्रह
1. औरत (2004)
2. राह चलते (2008)
3. बिखरती संवेदना (2014)
4. एहसास (2017)

अपने शिल्प में निपुण सुषमा जी में अथाह सृजनशीलता है। 

अपनी सिद्ध लेखनी से सुषमा जी जीवन के अनछुए पहलुओं पर लिखती रही हैं और लघु कथा विधा को और अधिक समृद्धशाली कर रही हैं    लेखिका और उनके लेखन, शिक्षा और सम्मान के बारे में जानने के लिए यहाँ क्लिक करें |

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बहादुर - एक लघुकथा

अपने पराए के नाम पर मरने-मारने वाले.... बहादुर है और बिना अपना हित-अहित देखे सच का समर्थन करने वाले... बेवकूफ... फिर लोग कहते हैं कि दुनिया में इतनी तकलीफ क्यों है....गरीब और गरीब क्यों होता जा रहा और अमीर और अमीर क्यों होता जा रहा !

 

- लवकुश कुमार 


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समझदार - एक लघुकथा

ऊपर की कमाई से कोठियां खड़ी करने वाला रिश्तेदार समझदार और काबिल, एक नंबर की कमाई से जीवन जीने वाला भोला और कमज़ोर फिर लोग कहते हैं कि अंधे के हाथ बटेर कैसे लग गई !

- लवकुश कुमार 


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अब आया ऊँट पहाड़ के नीचे - ( लघुकथा ) - सविता मिश्रा 'अक्षजा'

“नमस्ते अंकल जी, पापा की तबीयत ठीक नहीं है| आप भीतर चलकर उनके कमरे में ही उनसे मिल लीजिए|”

“क्या बात है भई, आपके साहबजादे बड़े बदले-बदले से जान पड़ रहे हैं!” बेटे की ओझल होती पीठ पर नजरें गड़ाये हुए श्याम ने व्यंग्यपूर्वक अपने जिगरी मित्र रामलाल से पूछा|

“आओ श्याम! आखिर आज रास्ता भूल ही गए |”

पोता पानी और बेटा चाय-नमकीन लेकर एक ही साथ कमरे में प्रविष्ट हुए। चाय रखकर बेटे ने विनम्रता से कहा, “कुछ और तो नहीं चाहिए पिता जी?” बाहर जाते हुए पलटकर पुनः बोला, “ज्यादा देर नहीं बैठिएगा, पीठ में फिर से दर्द होने लगेगा|” कहते हुए  पिता की कमर में बेल्ट बाँधकर चला गया|

श्याम ने अपनी छूट गयी बात को आगे बढ़ाया, “लगता है, दिवा- स्वप्न देख रहा हूँ मैं| पाँच-छह साल पहले तो यह साहब ऊँट-की-सी अकड़ी गर्दन लिए ...” श्याम के कुछ और अपशब्द कहने के पूर्व ही रामलाल ने ठहाका लगाया|

"आप हँस रहे हैं, किन्तु इस प्रकार से आपकी सेवा-शुश्रूषा होते देखकर, अभी-भी मैं बहुत अचंभित हूँ!”

“जड़ खोदकर ही मानोगे श्याम!”

“मैं भी तो जानूँ, आखिर बदल कैसे गए बरखुरदार?”

 “बढ़ते बच्चों का बाप जो हो रहा है|” गहरी मुस्कान के साथ दोनों मित्र चाय सुड़कने लगे।

© सविता मिश्रा 'अक्षजा' 

ईमेल-2012.savita.mishra@gmail.com


अक्षजा जी को पढ़ना संवेदना जगाता है और स्पष्टता से भर देता है, आपने अपनी रचनाओं से मानवीय रिश्तों, संघर्षों, विरोधाभासों प्रकाश डालते हुए या कहें की ध्यान खींचते हुए एक  शांतिमय और समृद्ध जीवन / दुनिया के लिए तरह तरह की विधाओं में साहित्य रचकर साहित्य कोश में अमूल्य योगदान दिया है, आपने  लघुकथा, कहानी, व्यंग्य, छंदमुक्त कविता, पत्र, आलेख, समीक्षा, जापानी-विधा हाइकु-चोका आदि विधाओं में ढेरों रचनाएं साहित्य कोश को अर्पण की हैं, आपकी 'रोशनी के अंकुर' एवं  'टूटती मर्यादा' लघुकथा संग्रह तथा  ‘सुधियों के अनुबंध’ कहानी संग्रह के साथ  अस्सी के लगभग विभिन्न विधाओं में साझा-संग्रहों में रचनाएँ प्रकाशित हैं और 'खाकीधारी'  2024{लघुकथा संकलन} 'अदृश्य आँसू' 2025 {कहानी संकलन} 'किस्से खाकी के' 2025 {कहानी संकलन}  'उत्तर प्रदेश के कहानीकार' 2025 {कथाकोश} का सम्पादन भी किया, आप लघुकथा/समीक्षा/कहानी/व्यंग्य / कविता  विधा में कई बार पुरस्कृत हैं|  आदरणीय लेखिका के बारे में और इनकी अन्य रचनाओं, योगदान, सम्प्रतियों के बारे में जानने के लिए यहाँ क्लिक करें|


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