पल भर में है धूप खिली, अगले पल छाया अंधकार।
कुछ पल में ही तेज हवा, लगता है जैसे चमत्कार।।
गर्मी में यहाँ फूल खिलें, स्वर्ग सा मौसम बन जाता है।
देश विदेश के सैलानियों को ये लद्दाख बहुत भाता है।।
सर्दी में तापमापी का पारा, ऋणात्मक बीस भी जाता है।
ऊपर से तेज हवा का झोंका, कभी कभी सताता है।।
पश्चिमी विक्षोभों से अधिकतर, वर्षा और बर्फबारी है।
समुद्रतल से 3500 मीटर ऊपर कर्मभूमि हमारी है ।।
सर्दी में जम जाता आर्द्र बल्ब, गर्म पानी से उसे उठाना है।
गर्म कपड़ों में सीलबंद होकर, वेधशाला में जाना है।।
समुद्र तल से ऊँचाई पर, ताप और दाब घट जाता है।
कम ऑक्सीजन के चलते यहाँ रक्त दाब बढ़ जाता है।।
अधिक ठंड और कम आर्द्रता के संयोग का विज्ञान।
ट्रॉस हिमालय की गोद में बसा लेह लद्दाख महान।।
पर्यावरण और प्रकृति का यहाँ संगम होता निराला है।
पहाड़ों की बर्फ के परावर्तन से, होता तेज उजाला है।।
जब सूरज तेजी से चमके, ठंड का नहीं होता अहसास।
बार बार ही गला सूखता, बुझती नहीं है प्यास ।।
कम आर्द्रता के कारण, स्थिर आवेश प्रभाव दिखाता है।
किसी चीज को छूने से, यदाकदा झटका लग जाता है।।
बढ़ने लगती आर बी सी और घटने लग जाती है भूख।
कितना भी करो आप जतन, त्वचा जाती है बिल्कुल सूख ।।
जब जब सर्दी में तापमान, माइनस में चला जाता है।
बंद होता नलकूप और सीवरेज, पानी भी जम जाता है।।
बर्फ तोड़कर, आग सेक कर फिर पानी मिल पाता है।
मुश्किल है यहाँ सर्दी का जीवन, कैसे कोई सह पाता है।।
बड़े दयालु 'सोनम' सर जी, यहाँ कहलाते "मौसमपीर"।
इन्हीं के मार्गदर्शन में, रहते हैं हम सब मौसमवीर।।
- मनीष कुमार गुप्ता जयपुर, राजस्थान
मनीष जी भारत सरकार के भारत मौसम विज्ञान विभाग में सेवारत हैं और लेह में अपनी सेवाएं दे चुके हैं वह अपनी कई कविताओं से मौसम विज्ञान विभाग के सफर, उसके योगदान और महत्व पर प्रकाश डाल चुके हैं।
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शुभकामनाएं
मौसम विज्ञान विभाग
वसुधा अपना विस्तार लिए, सारे मौसम श्रृंगार किए,
कुछ गूढ़ रहस्यों से गुज़री।
कभी नभ में दिखती काली घटा, नीले सागर की नभ में छटा, गर्जन करती सहसा बिजली नभ से क्यों धरती पर उतरी?
क्यों प्यास भी प्यास से तड़पी है? उच्छवास वहां क्यों मरती है ?
क्यों दूजी और हवा शीतल? खुशियां भी हिलोरे हैं भरती |
क्यों सूर्य प्रखर और तीक्ष्ण यहां ? क्यों चंदा सा शीतल है वहां?
यहां बादल खेल रहे होली, क्यों ढूंढ रहे हैं वहां चोली?
क्या गोल धरा है इसीलिए, या मायाजाल कोई रचती ?
हाय! विपदा है कैसी अब आई? कुछ तो ये चेताती हरजाई| जिनको था भान वो बच भी गए, बिन ज्ञान के जान कहां आई?
कहीं उठती खुशियों की तफ़री, कहीं विपदा से उठती अर्थी |
पर जीवन सारे मोल समान,
चलते पटरी , उड़े आसमान,
चेतन के ऐसे भाव लिए,
नवयुग का मन उद्धार लिए,
खुलते रहस्य की धार लिए,
मानवता के प्रति बस प्यार लिए,
विज्ञान की गंगा भगीरथ संग,
आकाश से पृथ्वी पर उतरी|
इस ज्ञान की गंगा साथ लिए ,
सारे रहस्य को साथ लिए,
तारण करने मानवता का,
बस ज्ञान की बरछी हाथ लिए,
हर खतरे का आभास लिए,
इक सेना कुरुक्षेत्र उतरी|
कुछ घाव मिले थे अभावों में,
रहते थे पांव भी छालों में
हर मौसम का मौसम समझें,
जिज्ञासा थी मतवालों में,
"आदित्यात् जायते वृष्टिः" के कौर लिए वो थालों में,
चलते रातों में उजालों में।
अठरह सौ पचहत्र कलकत्ता,शिमला फिर पुणे से आगे
"अन्वेषण" के संस्कार लिए, वो सेना दिल्ली में ठहरी|
आकाश से धरती के मौसम,
हर राज्य बराबर संप्रेषण, विपदा का पूर्व ही अनुमान,
यदि नहीं तो रक्षित हो जीवन,
बस ऐसा सेवा भाव लिए,
मौसम विभाग ने भारत में कर लिया जनम |
मां जैसी सबकी बलाएं लिए,
और बहन सा राखी कवच लिए,
हर विपदा से रक्षा करने,
मौसम विभाग ने शपथ धरी ।
- संजय सिंह 'अवध'
ईमेल- green2main@yahoo.co.in
उक्त मन को छूने वाली कविता के रचयिता भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण में ATC अधिकारी हैं और अपने कालेज के दिनों से ही, जैसा कि इनकी रचनाओं से घोतक है, जन जन में संवेदना, करूणा और साहस भरने के साथ अंतर्विषयक समझ द्वारा उत्कृष्टता के पथ पर युवाओं को अग्रसर करने को प्रयासरत हैं।
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कविता में 'ज़ुबान खोजने' का क्या अर्थ है?
'ज़ुबान खोजने' का अर्थ है, बचपन की भोली-भाली बातों और मासूमियत को वापस पाना। यह उन शब्दों और भावनाओं को खोजने की बात करता है जो हम बड़े होते हुए खो देते हैं।
इस कविता का केंद्रीय विचार क्या है?
इस कविता का केंद्रीय विचार जीवन के सफर में बचपन की यादों को संजोना, सपनों को पुनर्जीवित करना और फिर से उड़ान भरने की प्रेरणा लेना है।
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