डीपीएसपी को पढ़कर हम संसद या राज्य विधायिका द्वारा बनाए गए कानूनों के पीछे तर्क और आवश्यकता के बारे में विचार कर सकते हैं। By reading DPSP we can have idea about the reasoning and need behind the laws made by parliament or state legislature.
संविधान कुछ राज्य के नीति निर्देशक तत्व निर्धारित करता है, यद्यपि ये न्यायालय में कानूनन न्यायोचित नहीं ठहराए जा सकते, परन्तु देश के शासन के लिए मौलिक हैं, और कानून बनाने में इन सिद्धान्तों को लागू करना राज्य का कर्तव्य है। ये निर्धारित करते हैं कि राज्य यथासंभव सामाजिक व्यवस्था जिसमें-सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय की व्यवस्था राष्ट्रीय जीवन की सभी संस्थाओं में कायम करके जनता नीतियों को ऐसी दिशा देगा ताकि सभी पुरुषों और महिलाओं को जीविकोपार्जन के पर्याप्त साधन मुहैया कराए जाएं। समान कार्य के लिए समान वेतन और यह इसकी आर्थिक क्षमता एवं विकास के भीतर हो, कार्य के अधिकार प्राप्त करने के लिए प्रभावी व्यवस्था करने, बेरोजगार के मामले में शिक्षा एवं सार्वजनिक सहायता, वृद्धावस्था, बीमारी एवं असमर्थता या अयोग्यता की आवश्यकता के अन्य मामले में सहायता करना। राज्य कर्मकारों के लिए निर्वाह मजदूरी, कार्य की मानवीय स्थितियों, जीवन का शालीन स्तर और उद्योगों के प्रबंधन में कामगारों की पूर्ण सहभागिता प्राप्त करने के प्रयास करेगा।
आर्थिक क्षेत्र में राज्य को अपनी नीति इस तरह से बनानी चाहिए ताकि सार्वजनिक हित के निमित सहायक होने वाले भौतिक संसाधनों का वितरण का स्वामित्व एवं नियंत्रण हो, और यह सुनिश्चित करने के लिए कि आर्थिक प्रणाली कार्य के फलस्वरूप धन का और उत्पादन के साधनों का जमाव सार्वजनिक हानि के लिए नहीं हो।
कुछ अन्य महत्वपूर्ण निर्देशक तत्व बच्चों के लिए अवसरों और सुविधाओं की व्यवस्था से संबंधित हैं ताकि उनका विकास अच्छी तरह हो, 14 वर्ष की आयु तक के सभी बच्चों के लिए मुक्त एवं अनिवार्य शिक्षा, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य कमजोर वर्गों के लिए शिक्षा और आर्थिक हितों का संवर्धन ग्राम पंचायतों का संगठन; कार्यपालिका से न्यायपालिका को अलग करना; पूरे देश के लिए एक समान सिविल कोड लागू करना, राष्ट्रीय स्मारकों की रक्षा करना, समान अवसर के आधार पर न्याय का संवर्धन करना, मुक्त कानूनी सहायता की व्यवस्था, पर्यावरण की रक्षा और उन्नयन और देश के वनों एवं वन्य जीवों की रक्षा करना; अंतरराष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा का विकास, राष्ट्रों के बीच न्याय और सम्मानजनक संबंध, अंतरराष्ट्रीय कानूनों संधि बाध्यताओं का सम्मान करना, मध्यवर्ती द्वारा अंतरराष्ट्रीय विवादों का निपटान करना।
स्रोत- https://knowindia.india.gov.in/hindi/profile/directive-principles-of-state-policy.php
डीपीएसपी को पढ़कर हम संसद या राज्य विधायिका द्वारा बनाए गए कानूनों के पीछे तर्क और आवश्यकता के बारे में विचार कर सकते हैं। By reading DPSP we can have idea about the reasoning and need behind the laws made by parliament or state legislature.
संविधान कुछ राज्य के नीति निर्देशक तत्व निर्धारित करता है, यद्यपि ये न्यायालय में कानूनन न्यायोचित नहीं ठहराए जा सकते, परन्तु देश के शासन के लिए मौलिक हैं, और कानून बनाने में इन सिद्धान्तों को लागू करना राज्य का कर्तव्य है। ये निर्धारित करते हैं कि राज्य यथासंभव सामाजिक व्यवस्था जिसमें-सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय की व्यवस्था राष्ट्रीय जीवन की सभी संस्थाओं में कायम करके जनता नीतियों को ऐसी दिशा देगा ताकि सभी पुरुषों और महिलाओं को जीविकोपार्जन के पर्याप्त साधन मुहैया कराए जाएं। समान कार्य के लिए समान वेतन और यह इसकी आर्थिक क्षमता एवं विकास के भीतर हो, कार्य के अधिकार प्राप्त करने के लिए प्रभावी व्यवस्था करने, बेरोजगार के मामले में शिक्षा एवं सार्वजनिक सहायता, वृद्धावस्था, बीमारी एवं असमर्थता या अयोग्यता की आवश्यकता के अन्य मामले में सहायता करना। राज्य कर्मकारों के लिए निर्वाह मजदूरी, कार्य की मानवीय स्थितियों, जीवन का शालीन स्तर और उद्योगों के प्रबंधन में कामगारों की पूर्ण सहभागिता प्राप्त करने के प्रयास करेगा।
आर्थिक क्षेत्र में राज्य को अपनी नीति इस तरह से बनानी चाहिए ताकि सार्वजनिक हित के निमित सहायक होने वाले भौतिक संसाधनों का वितरण का स्वामित्व एवं नियंत्रण हो, और यह सुनिश्चित करने के लिए कि आर्थिक प्रणाली कार्य के फलस्वरूप धन का और उत्पादन के साधनों का जमाव सार्वजनिक हानि के लिए नहीं हो।
कुछ अन्य महत्वपूर्ण निर्देशक तत्व बच्चों के लिए अवसरों और सुविधाओं की व्यवस्था से संबंधित हैं ताकि उनका विकास अच्छी तरह हो, 14 वर्ष की आयु तक के सभी बच्चों के लिए मुक्त एवं अनिवार्य शिक्षा, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य कमजोर वर्गों के लिए शिक्षा और आर्थिक हितों का संवर्धन ग्राम पंचायतों का संगठन; कार्यपालिका से न्यायपालिका को अलग करना; पूरे देश के लिए एक समान सिविल कोड लागू करना, राष्ट्रीय स्मारकों की रक्षा करना, समान अवसर के आधार पर न्याय का संवर्धन करना, मुक्त कानूनी सहायता की व्यवस्था, पर्यावरण की रक्षा और उन्नयन और देश के वनों एवं वन्य जीवों की रक्षा करना; अंतरराष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा का विकास, राष्ट्रों के बीच न्याय और सम्मानजनक संबंध, अंतरराष्ट्रीय कानूनों संधि बाध्यताओं का सम्मान करना, मध्यवर्ती द्वारा अंतरराष्ट्रीय विवादों का निपटान करना।
स्रोत- https://knowindia.india.gov.in/hindi/profile/directive-principles-of-state-policy.php
जिले में DM (District Magistrate-जिलाधीश) और मंडल में commissioner (आयुक्त) होता है जो DM का reporting officer (बोलचाल की भाषा मे बॉस कह सकते हैं)होता है और उसे मंडलायुक्त भी कहते हैं |

इस प्रस्तावना के प्रत्येक शब्द में स्पष्टता और समझ विकसित करने पर जोर दिया जाना चाहिए। प्रस्तावना हमारे संविधान की आत्मा/उद्देश्य है, हमारे संविधान के अनुरूप नहीं होने वाला कोई भी कानून शून्य होगा, तो प्रस्तावना को पढ़ना और समझना भारत की भूमि के कानून को समझने की दिशा में एक अच्छी शुरुआत हो सकती है। एक नागरिक जो अपने अधिकारों और देश के कानून के बारे में जानता है, उसके पास उच्च सरकारी पद पाने की संभावना अधिक होती है।
Emphasis should be made to each word of this preamble for developing clarity and understanding thereof. The preamble is soul/objective of our Constitution, any law not consistent with our Constitution will be void. So reading and understanding the preamble may be a good start towards understanding the law of the land of India.
Source of image - https://legislative.gov.in/document-category/preamble-to-constitution-of-india/
जिले में DM (District Magistrate-जिलाधीश) और मंडल में commissioner (आयुक्त) होता है जो DM का boss होता है और उसे मंडलायुक्त भी कहते हैं |
हर subordinate ( अधीनस्थ ) अधिकारी, अपने reporting officer के निर्देशन और नियंत्रण ( Direction and control ) मे कार्य करता है |