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जानकारी 24.11.2025

यूके की आतंरिक खुफिया एजेंसी एमआई ने अपने देश के सांसदों को चीनी छद्म-नियोक्ताओं से आगाह किया है। एजेंसी को खबर मिली है कि दरअसल ये चीनी जासूस हैं, जो ब्रिटेन सहित कई बड़े देशों में सांसदों व अन्य प्रभावशाली लोगों को किसी काम के बहाने भारी राशि देते हैं और उनसे खुफिया जानकारी लेते हैं। चीन ने इसी स्कीम के तहत पिछले 20 वर्षों में जहां दुनिया के अनेक गरीब देशों को एक ट्रिलियन डॉलर (भारत के बजट से दूना) दिए हैं, वहीं अमेरिका और ब्रिटेन को भी इतना ही पैसा दिया है। लेकिन इन्हें देने का तरीका छद्म है। इस योजना के तहत चीनी बैंक पहले चीनी टेक कंपनियों को कर्ज देती है। फिर ये कंपनियां अमेरिकी टेक कंपनियों से समझौता करती हैं। ताकि उनकी टेक्नोलॉजी हासिल हो सके। शोध संस्था एड्सडाटा के अनुसार अमेरिका की कई कंपनियां इसे सामान्य व्यापारिक समझौता समझकर अपनी टेक्नोलॉजी चीनी कंपनियों से शेयर कर देती हैं, जिसके जरिए चीन अपने टेक ज्ञान को आगे संवर्धित करता है। जबकि ट्रम्प ने अमेरिकी कंपनियों को अपने बेहतरीन सेमी-कंडक्टर्स और जीपीयू को चीन को बेचने से मना किया है। लेकिन चीन मध्यम दर्जे के सेमीकंडक्टर्स के सहारे भी डीपसीक एआई बनाने में सक्षम रहा। चीनी मंसूबों से हमें भी सतर्क रहने की जरूरत है, क्योंकि चीनी चिप्स भारतीय सुरक्षा में सेंध लगा सकते हैं।- दैनिक भास्कर संपादकीय 21.11.2025

- सोलहवें वित्त आयोग ने इस सप्ताह अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी। रिपोर्ट को अब तक सार्वजनिक नहीं किया गया है, हालांकि उम्मीद है कि इसे 2026 के बजट सत्र में संसद के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा। सोलहवें वित्त आयोग की अनुशंसाएं अप्रैल 2026 से शुरू होने वाले पांच वर्ष के लिए होंगी। ये अनुशंसाएं केंद्र और राज्यों के बीच कर राजस्व के वितरण को आकार देने के अलावा विभिन्न श्रेणियों के तहत राज्यों के बीच फंड आवंटन से संबंधित होंगी

- एक संघीय ढांचे में हमेशा यह उम्मीद रहेगी कि जो राज्य पिछड़ रहे हैं उन्हें मदद पहुंचाई जाएगी और यह सुनिश्चित किया जाएगा कि अधिक समतापूर्ण विकास संभव हो सके। इसके अलावा आंकड़े दिखाते हैं कि प्रति व्यक्ति आधार पर दक्षिण भारत के राज्यों के संसाधन बेहतर हैं।

- चालू वर्ष में केरल की प्रति व्यक्ति व्यय 86,000 रुपये से अधिक है, बिहार में यह केवल 24,000 रुपये के करीब है। ध्यान देने वाली बात है कि 2020-21 और 2025-26 के बीच देश के सबसे गरीब राज्यों में प्रति व्यक्ति व्यय आय बढ़कर करीब दोगुना हो गया है। हालांकि इसका आधार कम रहा है जबकि अमीर दक्षिण भारतीय राज्यों में यह समेकित स्तर पर 59 फीसदी तक बढ़ा है।

- यद्यपि, व्यय में तेज वृद्धि आय में तेज वृद्धि में परिवर्तित नहीं हुई है। दक्षिणी राज्यों की औसत प्रति व्यक्ति आय 2009-10 में गरीब राज्यों की तुलना में 2.1 गुना थी, जो अब बढ़कर 2.8 गुना हो गई है। इससे संकेत मिलता है कि गरीब राज्यों को विकास कार्य करने में सक्षम बनाने के लिए कर बंटवारे में अधिक हिस्सेदारी आवश्यक हो सकती है, लेकिन यह तीव्र आर्थिक वृद्धि के लिए पर्याप्त नहीं है। तीव्र आर्थिक वृद्धि ही प्रति व्यक्ति आय बढ़ाकर इस अंतर को कम करने में मदद कर सकती है।

- केंद्र और राज्यों के समक्ष एक और चुनौती है। कुछ राज्यों पर बहुत अधिक ऋण है, जो विकास की संभावनाओं को प्रभावित कर सकता है। पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, 19 राज्यों में बकाया देनदारियां सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) के 30 फीसदी से अधिक हैं, जिनमें केरल भी शामिल है। पंजाब और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में यह जीएसडीपी के 40 फीसदी से भी अधिक है।


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समझ - 23.11.2025

 इतिहास शायद ही ऐसी संस्थाओं को पुरस्कृत करता है, जो बदलाव इनकार करती हों।
- सत्ताधारी दल चाहे जितना ताकतवर या योग्य हो, संतुलन बनाए रखने के लिए उसके सामने एक मजबूत विपक्ष होना ही चाहिए। लोकतंत्र सिर्फ चुनावी गणित नहीं। इसका अर्थ विकल्पों का लगातार बने रहना भी है। अगर एक धुरी जरूरत से अधिक ताकतवर हो जाए तो दूसरी ढह जाती है और लोकतंत्र की जीवंतता बनाए रखने वाला संतुलन खत्म हो जाता है। मजबूत विपक्ष की मौजूदगी ही सरकार को आत्ममंथन के लिए मजबूर करती है। उसकी जवाबदेही सुनिश्चित करती है। 
- स्वच्छ हवा का अधिकार और प्रदूषण रहित वातावरण हमारा मूल अधिकार है और न्यायालय स्वयं बार-बार इस बात की पुष्टि कर चुका है
- पर्यावरण संरक्षण को सुविधा के लिए छोड़ा नहीं जा सकता। सतत या टिकाऊ विकास कोई बाधा नहीं है। यह एकमात्र वैध मार्ग है जो नागरिकों के अधिकारों और भारत के पर्यावरणीय भविष्य दोनों का सम्मान करता है।
- जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता से दूर जाने के खाने पर कोई भी चर्चा बारीकी से होनी चाहिए, न कि कठोर आदेशों जैसी ब्राजील के राष्ट्रपति लुइस इनासियो लूला दा सिल्या ने इसकी आवश्यकता पर बात करते हुए 'निर्भरता का उल्लेख किया जो यह दर्शाता है कि यह केवल 'गंदी' बनाम 'स्वच्छ ऊर्जा' का साधारण द्वैत नहीं है निर्भरता में नौकरियां, सार्वजनिक वित्त और पूरे क्षेत्रीय अर्थ तंत्र शामिल हैं।
- अचानक बदलाव सामाजिक अस्थिरता का जोखिम पैदा करता है
- एक मजबूत संघीय ढांचे में भी हर हाल में लोकतंत्र के जीवन के लिए शक्तियों और उसकी सीमा को लेकर स्पष्टता बनी रहनी चाहिए। साथ ही संवैधानिक पदों पर बैठे लोग अगर संविधान की मर्यादा का खयाल रखें, तो इससे लोकतंत्र को भी मजबूती मिलेगी।


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समझ 18.11.2025

 

- भूटान ने वर्ष 2023 से सीमा यातां पर सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर कर, दलाई लामा से दूरी बनाए रखते हुए, तथा तिब्बत के संदर्भ में औपनिवेशिक अर्थ को बदलते हुए चीन की चिंताओं को दूर करने का प्रयास किया है। इस वर्ष, चीनी नववर्ष का जश्न भूटान की राजधानी थिम्पू में मनाया गया ये कदम भले ही भूटान की व्यवहारिकता से प्रेरित हों, लेकिन ये भारत के लिए सतर्कता बरतने का एक संकेत हैं। इस लिहाज से मोदी की यात्रा को एक आवश्यक उपाय के रूप में देखा जा सकता है।

-- न्याय और नीति यही कहती है कि आरक्षण की व्यवस्था को इस तरह लागू किया जाए कि पात्र लोगों को ही उसका लाभ मिलना सुनिश्चित हो सके।

- एससी -एसटी आरक्षण में क्रीमी लेयर की व्यवस्था बनाए जाने के पक्ष में न्यायाधीश गवई ने यह बिल्कुल सही कहा कि आइएएस और गरीब मजदूर के बेटों को एक जैसा नहीं माना जा सकता।

- ध्यान रखा जाना चाहिए कि आरक्षण का उद्देश्य वंचित एवं पिछड़े तबकों के उन लोगों के उत्थान के विशेष प्रयत्न किए जाना है, जो वास्तव में सामाजिक रूप से पिछड़े हुए हैं। आम तौर पर सामाजिक रूप से ऐसे पिछड़े लोग आर्थिक रूप से भी कमजोर होते हैं। आरक्षण में क्रीमी लेयर के सिद्धांत को लागू करने के विरोध में यह तर्क दिया जाता है कि आरक्षित वर्ग के किसी व्यक्ति के उच्च पद पर पहुंच जाने के बाद भी कई बार उसे उपेक्षा या भेदभाव का सामना करना पड़ता है।

-- भारत में भ्रष्टाचार कोई नई घटना नहीं है और न ही यह केवल भारत तक सीमित है बल्कि वास्तव में, भ्रष्टाचार दुनिया भर में पाया जाता है। हालांकि, जैसे-जैसे देश विकास की सीढ़ी पर चढ़ते हैं, भ्रष्टाचार आमतौर पर कम होता जाता है। भारत आजादी की अपनी 100वीं वर्षगांठ मनाने के वक्त तक एक विकसित राष्ट्र बनने की आकांक्षा भी रखता है इसलिए उसे इस स्थानिक समस्या से निपटना ही होगा। यह देश की विकास की आकांक्षाओं को जो नुकसान पहुंचा रहा है, उसे अनदेखा करना बहुत बड़ी भूल होगी।

- 1990 के दशक से, कई शोधकर्ताओं ने भ्रष्टाचार के देश की आर्थिक वृद्धि पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन किया है। अध्ययनों से यह बात साबित हुई है कि भ्रष्टाचार वास्तव में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को आकर्षित करने, निजी निवेश, रोजगार सृजन और आय समानता के लिए कितना हानिकारक है। कुछ शोधकर्ताओं ने दिखाया है कि कैसे भ्रष्टाचार खराब गुणवत्ता वाले उत्पादों और सेवाओं, नागरिकों के लिए जीवन की निम्न गुणवत्ता और कुछ कंपनियों के ताकतवर समूह के दबदबे को बढ़ावा देता है।

- यह सर्वविदित है कि अधिकांश विकसित अर्थव्यवस्थाओं में बहुत कम भ्रष्टाचार है, हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि क्या विकास स्वचालित रूप से कम भ्रष्टाचार की स्थिति पैदा करता है या कम भ्रष्टाचार किसी देश को विकास की सीढि़यों की ओर ले जाता है। सहज ज्ञान कहता है कि बाद वाला अधिक संभावित है

- भ्रष्टाचार को कैसे कम किया जाए? कुछ विद्वान और प्रभावशाली व्यक्ति कहते हैं कि शिक्षा में, खासकर प्राथमिक स्तर से ही नैतिकता और सदाचार की एक मजबूत नींव, इस दिशा में मददगार साबित हो सकती है। हालांकि यह भी एक परिकल्पना ही है।

- आपके इस स्तंभकार का मानना है कि तीन चीजें भ्रष्टाचार को कम करने में मदद कर सकती हैं। पहला, नियामकीय जटिलता को हर क्षेत्र में सरल बनाना, चाहे वह भूमि अधिग्रहण हो या सीमा शुल्क से जुड़ा वर्गीकरण हो। इससे अफसरशाही की मदद लेने के अवसर कम होंगे।

- मजबूत सुरक्षा कवच कम करना होगा जिसका लाभ अफसरशाह, खासकर वरिष्ठ अधिकारी, जांच और मुकदमे के खिलाफ उठाते हैं। आज, जब तक सरकार मुकदमा चलाने की मंजूरी नहीं देती है तब तक कोई भ्रष्ट अधिकारी भी काफी हद तक सुरक्षित रहता है और सतर्कता विभागों को अक्सर ऐसी मंजूरी हासिल करना बहुत कठिन लगता है।
- हालांकि  ये सुरक्षा अच्छे इरादों से तय की गई थी ताकि अफसरशाहों को उनके पेशेवर कर्तव्यों के दौरान लिए गए निर्णयों के लिए गलत तरीके से दोषी ठहराए जाने से बचाया जा सके। लेकिन समय के साथ इनका विपरीत प्रभाव पड़ा है। शायद अब एक आय और संपत्ति ऑडिट की आवश्यकता है जो हर 10 साल में किया जाना चाहिए और यह उन अधिकारियों के खिलाफ स्वचालित जांच और मुकदमे को मंजूरी दे जिनकी संपत्ति का स्रोत आय, निवेश रिटर्न या विरासत के आधार पर साबित न किया जा सके
- अंत में  में, कानूनी प्रणाली में बड़े बदलाव की आवश्यकता है ताकि भ्रष्टाचार के मामले तीन दशक या उससे अधिक समय तक न खिंचें। भारत यदि एक विकसित देश बनना चाहता है तो इसे भ्रष्टाचार से निपटना होगा, लेकिन इसके लिए केंद्र और राज्य स्तर पर सरकारों को कठिन फैसले लेने होंगे भले ही वे राजनीतिक रूप से जोखिम भरे हों


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उम्मीद 15.11.2025

सेवा निर्यात की मौजूदा प्रगति देश में हो रहे संरचनात्मक सुधारों, तकनीकी विकास और नई पीढ़ी की उच्च कौशल युक्त क्षमताओं का परिणाम है। गौरतलब है कि सेवा निर्यात में सूचना प्रौद्योगिकी, वाणिज्य, बैंकिंग, वित्त, बीमा, पर्यटन, आतिथ्य, शिक्षा, चिकित्सा और कृत्रिम मेधा जैसी सेवाओं का निर्यात शामिल है
- भारत में बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर (जीसीसी) खोलने में आई तेजी से भी सेवा निर्यात बढ़ रहा है। नैसकाम और जिनोव की ओर से जारी इंडिया जीसीसी-लैडस्केप रपट के मुताबिक, जीसीसी के लिए भारत दुनिया का सबसे बड़ा केंद्र बन रहा है।
- फिलहाल देश में 1800 से अधिक जीसीसी हैं, जिनसे 21 लाख से अधिक लोगों को रोजगार मिल रहा है। दुनिया के करीब पचास फीसद जीसीसी सिर्फ भारत में हैं। देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में जीसीसी का योगदान 1.5 फीसद से अधिक है, जो वर्ष 2030 तक 3.5 फीसद हो जाएगा। जीसीसी प्रमुख रूप से सूचना प्रौद्योगिकी, उपभोक्ता सेवाएं, वित्त, मानव संसाधन और अनुसंधान एवं विकास पर ध्यान केंद्रित करते हैं।

- यह बात भी महत्त्वपूर्ण है कि भारत में कृत्रिम बुद्धिमता और डेटा विश्लेषण जैसे क्षेत्रों में शोध एवं विकास तथा नवउद्यम के अनुकूल माहौल से अमेरिका, यूरोप और एशियाई देशों की बड़ी-बड़ी कंपनियां अपने केंद्र यहां खोलना चाहती हैं।
- इसमें दोराय नहीं कि सेवा निर्यात भारतीय अर्थव्यवस्था का एक अहम पहलू बन गया है। इससे न केवल विदेशी व्यापार घाटे को थामे रखने में मदद मिल रही है, बल्कि देश में रोजगार निर्माण में भी इसका महत्त्वपूर्ण योगदान है। नीति आयोग की नई रपट में कहा गया है कि देश के सकल घरेलू उत्पाद में सेवा क्षेत्र का योगदान 55 फीसद से अधिक है और लगभग 18.8 करोड़ लोगों को यह रोजगार से जोड़ता है। सेवा क्षेत्र ने पिछले छह वर्षों में चार करोड़ अतिरिक्त रोजगार पैदा किए हैं। देश का सेवा निर्यात 14.8 फीसद की चक्रवृद्धि वार्षिक दर से बढ़ रहा है, जो वस्तु निर्यात के 9.8 फीसद से कहीं ज्यादा है।


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जानकारी 14.11.2025

पिछले कुछ वर्षों से जलवायु परिवर्तन का भारत समेत पूरी दुनिया में प्रभाव साफ दिखने लगा है। ब्राजील के बेलेम में आयोजित काप 30 सम्मेलन में बुधवार को जारी 'जलवायु जोखिम सूचकांक-2026' की रपट में कहा गया है कि जलवायु आपदाओं से सबसे अधिक प्रभावित देशों में भारत नौवें स्थान पर है। पिछले तीन दशकों में देश में जलवायु आपदाओं के कारण करीब अस्सी हजार लोगों की जान जा चुकी है। 
- अगर वैश्विक स्तर पर बात करें तो पिछले तीन दशकों में नौ हजार से अधिक मौसमी आपदाओं ने आठ लाख से ज्यादा लोगों की जिंदगी लील ली है। यह बात छिपी नहीं है कि जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा असर उन्हीं विकासशील देशों को झेलना पड़ रहा है, जिनकी वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में भागीदारी सबसे कम है। विकासशील देश कमजोर सहन क्षमता और अनुकूलन के सीमित संसाधनों के कारण ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं।
- भारत सहित कई विकासशील देशों में जलवायु आपदाएं सामान्य स्थिति बनती जा रही हैं, जिसके लिए तत्काल और व्यापक वित्त पोषित अनुकूलन उपायों की जरूरत है। यह जगजाहिर है कि कार्बन उत्सर्जन के मामले में विकसित देशों का योगदान सबसे ज्यादा है, इसलिए अनुकूलन उपायों को लेकर उनकी जिम्मेदारी भी अधिक होनी चाहिए। उनकी भूमिका सिर्फ वित्तीय सहायता और तकनीकी सहयोग तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें कार्बन उत्सर्जन में कमी और कमजोर देशों के अनुकूलन प्रयासों का समर्थन करना भी शामिल है।
- भारत सेवा निर्यात में भले ही नई ऊंचाई हासिल करते हुए वैश्विक सेवा निर्यात का एक प्रमुख केंद्र बनने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है, मगर इस मामले में उसके सामने चुनौतियां भी कम नही हैं। इनमें सेवाओं की गुणवत्ता, दक्षता, सभी क्षेत्रों में कारोबार बढ़ाने, ग्रामीण और छोटे शहरों में शोध एवं नवाचार के साथ-साथ युवाओं में कृत्रिम मेधा (एआइ) जैसे कौशल विकसित करने की चुनौतियां प्रमुख हैं। 
- सेवा निर्यात की मौजूदा प्रगति देश में हो रहे संरचनात्मक सुधारों, तकनीकी विकास और नई पीढ़ी की उच्च कौशल युक्त क्षमताओं का परिणाम है। गौरतलब है कि सेवा निर्यात में सूचना प्रौद्योगिकी, वाणिज्य, बैंकिंग, वित्त, बीमा, पर्यटन, आतिथ्य, शिक्षा, चिकित्सा और कृत्रिम मेधा जैसी सेवाओं का निर्यात शामिल है
- भारत में बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर (जीसीसी) खोलने में आई तेजी से भी सेवा निर्यात बढ़ रहा है। नैसकाम और जिनोव की ओर से जारी इंडिया जीसीसी-लैडस्केप रपट के मुताबिक, जीसीसी के लिए भारत दुनिया का सबसे बड़ा केंद्र बन रहा है।
- - फिलहाल देश में 1800 से अधिक जीसीसी हैं, जिनसे 21 लाख से अधिक लोगों को रोजगार मिल रहा है। दुनिया के करीब पचास फीसद जीसीसी सिर्फ भारत में हैं। देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में जीसीसी का योगदान 1.5 फीसद से अधिक है, जो वर्ष 2030 तक 3.5 फीसद हो जाएगा। जीसीसी प्रमुख रूप से सूचना प्रौद्योगिकी, उपभोक्ता सेवाएं, वित्त, मानव संसाधन और अनुसंधान एवं विकास पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
- ओपन एआइ के प्रमुख सैम आल्ट मैन के मुताबिक, कृत्रिम बुद्धिमता के लिए दुनिया में भारत दूसरा सबसे बड़ा बाजार है। वहीं, गुगल के सीईओ सुंदर पिचाई का मानना है कि भारत इस क्षेत्र में दुनिया का नेतृत्व कर सकता है। इस समय भारत में कृत्रिम बुद्धिमता पारिस्थितिकी तंत्र का काफी तेजी से विस्तार हो रहा है। इस वर्ष भारत का कृत्रिम बुद्धिमता का बाजार 13.05 अरब डालर मूल्य की ऊंचाई पर है, जिसका आकार वर्ष 2032 में 130.63 अरब डालर तक पहुंचने का अनुमान लगाया जा रहा है। भारत में प्रौद्योगिकी और कृत्रिम बुद्धिमता पारिस्थितिकी तंत्र में वर्तमान में साठ लाख से अधिक लोग कार्यरत हैं। देश में लगभग 1.8 लाख नवउद्यम हैं और पिछले वर्ष शुरू किए गए नवउद्यमों में से करीब 89 फीसद ने अपने उत्पादों या सेवाओं में कृत्रिम बुद्धिमता का उपयोग किया है।
-इसमें दोराय नहीं कि सेवा निर्यात भारतीय अर्थव्यवस्था का एक अहम पहलू बन गया है। इससे न केवल विदेशी व्यापार घाटे को थामे रखने में मदद मिल रही है, बल्कि देश में रोजगार निर्माण में भी इसका महत्त्वपूर्ण योगदान है। नीति आयोग की नई रपट में कहा गया है कि देश के सकल घरेलू उत्पाद में सेवा क्षेत्र का योगदान 55 फीसद से अधिक है और लगभग 18.8 करोड़ लोगों को यह रोजगार से जोड़ता है। सेवा क्षेत्र ने पिछले छह वर्षों में चार करोड़ अतिरिक्त रोजगार पैदा किए हैं। देश का सेवा निर्यात 14.8 फीसद की चक्रवृद्धि वार्षिक दर से बढ़ रहा है, जो वस्तु निर्यात के 9.8 फीसद से कहीं ज्यादा है।
- ऐसे में भारत को सेवा क्षेत्र को और मजबूत करते हुए सेवा निर्यात में तेजी लाने की नई रणनीति के साथ आगे बढ़ना होगा। इस बात पर ध्यान देना होगा कि अभी भी भू-राजनीतिक रूप से भारत का सेवा क्षेत्र देश की व्यापक आर्थिक असमानता को दर्शाता है। देश में कर्नाटक, महाराष्ट्र, तेलंगाना और तमिलनाडु उच्च मूल्य वाली सेवाओं मसलन- सूचना प्रौद्योगिकी, वित्त और अचल संपत्ति में दबदबा रखते हैं
- इसमें कोई संदेह नहीं हैं कि देश अपने संरचनात्मक परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है, और अर्थव्यवस्था के औपचारिक एवं शहरीकृत होने के साथ-साथ सेवा क्षेत्र में और भी ज्यादा कर्मचारियों को शामिल करने की क्षमता मौजूद है।
- सेवा क्षेत्र में लैंगिक समानता पर भी ध्यान देना जरूरी है। ग्रामीण क्षेत्रों में केवल 10.5 फीसद महिलाएं सेवा क्षेत्र में कार्यरत हैं, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह आंकड़ा 60 फीसद है।
- यह बात भी ध्यान में रखनी होगी कि अब सेवा निर्यात के क्षेत्र में भी प्रतिस्पर्धा लगातार बढ़ रही है। ऐसी स्थिति में भारत के सेवा निर्यात में तेजी लाने के लिए सेवाओं की गुणवत्ता, दक्षता, उत्कृष्टता तथा सुरक्षा को लेकर और अधिक प्रयास करने होंगे


विभिन्न समाचार पत्रों और पब्लिक डोमेन में उपलब्ध रिपोर्ट्स एवं दस्तावेजों पर आधारित तथा जन जागरूकता के उद्देश्य से संकलित, संकलन कर्ता भौतिकी में परास्नातक हैं ।

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उम्मीद 14.11.2025

जलवायु परिवर्तन पर शुरू हुई 'संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन' की 30वीं वार्षिक बैठक में दोनों देशों, भारत और चीन की परिवर्तनकारी भूमिका की सराहना की गई। 

- साथ ही कहा गया कि इन देशों ने जलवायु कार्रवाई को स्पष्ट तरीके से अपनाया है और वे दुनियाभर में स्वच्छ प्रौद्योगिकियों की लागत कम करने में मदद कर रहे हैं ।

- महाराष्ट्र के सांगली जनपद के मोहित्यांचे वडगांव (जिसे संक्षेप में वडगांव कहा जाता है) में हर शाम सात बजे भैरवनाथ मंदिर से 45 सेकंड के लिए एक सायरन ध्वनि गूंजती है, जो किसी चीनी मिल या अन्य औद्योगिक इकाई के कर्मचारियों के लिए बजने वाले सायरन से भिन्न है। यह ध्वनि दरअसल एक सूचना है कि अगले 90 मिनट (7 से 8:30 बजे तक) सभी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण- मोबाइल, टीवी इत्यादि बंद रहेंगे। दूसरा बजने वाला सायरन इस अवधि की समाप्ति की सूचना देता है।

- वर्तमान दौर में स्मार्टफोन और टीवी हमारे रोजमर्रा के जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा बन चुके हैं, पर वडगांव ने इसको चुनौती दी है। इस गांव में लगभग 3,000 से 3,500 लोग रहते हैं। अधिकतर किसान या चीनी मिल श्रमिक हैं, जो प्रत्येक शाम डेढ़ घंटे के लिए 'डिजिटल डिटॉक्स' का पालन करते हैं । 15 अगस्त, 2022 को देश के स्वतंत्रता दिवस पर प्रारंभ हुई यह पहल अब न केवल ग्रामीण संस्कृति का हिस्सा बन चुकी है, बल्कि आस-पास के गांवों के लिए भी प्रेरणास्त्रोत बन गई है।

- जब लक्ष्य सकारात्मक बदलाव का हो, तब समाज भी साथ आ खड़ा होता है। डिजिटल डिटॉक्स मुहिम का परिणाम यह हुआ कि एक माह में ही अंतर साफ दिखने लगा। छात्रों के अध्ययन में सुधार हुआ, रचनात्मकता में वृद्धि हुई और स्कूल में उनके व्यवहार में और स्पष्ट बदलाव नोटिस किया गया। 

- जैसे-जैसे डिजिटल दुनिया विस्तृत हो रही है, वडगांव मॉडल जैसे प्रयोगों की अहमियत बढ़ती जा रही है। समाज को फिर से जोड़ने और संबंधों को पुनर्जीवित करने में ये रामबाण बन सकते हैं। इस पहल ने एक बार फिर हमें स्मरण कराया है कि तकनीक मनुष्य की सहजता के लिए है, न कि स्वामी बनने के लिए।


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जानकारी 13.11.2025

जलवायु परिवर्तन से उपजे संकट से निपटने के लिए वर्ष 2015 में वैश्विक स्तर पर एक महत्वपूर्ण समझौता हुआ था। इसका मुख्य लक्ष्य वैश्विक औसत तापमान में वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करना था

- विकासशील देश इस दिशा में आगे बढ़ने का इरादा रखते हैं, लेकिन वित्तीय और तकनीकी चुनौतियां उनकी राह में रोड़े अटका रही हैं। इसके बावजूद भारत और चीन जैसे देश पेरिस समझौते के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए अपनी जिम्मेदारी निभाने की कोशिश कर रहे हैं।

- जलवायु परिवर्तन पर शुरू हुई 'संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन' की 30वीं वार्षिक बैठक में इन दोनों देशों की परिवर्तनकारी भूमिका की सराहना की गई। 

- पेरिस समझौते में तय हुआ था कि विकसित देश जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए विकासशील देशों की वित्तीय और तकनीकी रूप से मदद करेंगे। मगर संयुक्त राष्ट्र की हाल की एक रपट बताती है कि यह वित्तीय मदद लगातार घट रही है । विकासशील देशों को वर्ष 2035 तक अपने लक्ष्यों को पाने के लिए हर साल 365 अरब डालर की जरूरत है, लेकिन वर्ष 2023 में इन देशों को केवल 26 अरब डालर की अंतरराष्ट्रीय सहायता मिल पाई, जो वर्ष 2022 के 28 अरब डालर से भी कम है। 

- महाराष्ट्र के सांगली जनपद के मोहित्यांचे वडगांव (जिसे संक्षेप में वडगांव कहा जाता है) में हर शाम सात बजे भैरवनाथ मंदिर से 45 सेकंड के लिए एक सायरन ध्वनि गूंजती है, जो किसी चीनी मिल या अन्य औद्योगिक इकाई के कर्मचारियों के लिए बजने वाले सायरन से भिन्न है। यह ध्वनि दरअसल एक सूचना है कि अगले 90 मिनट (7 से 8:30 बजे तक) सभी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण- मोबाइल, टीवी इत्यादि बंद रहेंगे। दूसरा बजने वाला सायरन इस अवधि की समाप्ति की सूचना देता है। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए क्षेत्रवार समूहों का गठन किया गया है, जो हर घर जाकर इस पहल का महत्व समझाते हैं। इस 'डिजिटल कर्फ्यू' का उल्लंघन करने वालों को शुरू में चेतावनी दी जाती थी, लेकिन अब पूरा समाज इसका पालन करने का प्रयास करता है। माता-पिता भी नियम का अनुपालन करते हैं, ताकि बच्चे अकेला न अनुभव करें | इस 90 मिनट में बच्चे अध्ययन करते हैं, युवा पुस्तकें पढ़ते हैं या घर से बाहर निकलकर सामाजिक-सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग लेते हैं।

- दरअसल, कोविड-19 के संक्रमण काल में मानव व्यवहार में अप्रत्याशित परिवर्तन देखा गया। इसने 2020 से 2022 तक शिक्षा के ऑनलाइन माध्यम को अनिवार्य बना दिया, जिससे कम आयु के बच्चों और युवाओं में मोबाइल फोन के प्रयोग को लेकर एक बुरे व्यवहार ने जन्म लिया। एक सर्वेक्षण के अनुसार, 18 वर्ष से कम के आयु के 65 प्रतिशत बच्चों में फोन चलाते रहने की मानो लत पड़ गई, जो 30 मिनट से अधिक समय तक फोन से दूर रहने में असमर्थ थे।

- हमारी राष्ट्रीय और आंतरिक सुरक्षा आतंकियों के रडार पर है। वैसे, यह खतरा तो हमेशा से रहा है। हां, उसकी निरंतरता व तीव्रता ऊपर-नीचे होती रही है। कभी खतरा बढ़ गया, तो कभी कम होता प्रतीत हुआ। पिछले एक-डेढ़ साल की तेजी से बदली भू- राजनीति भी हमारे सुरक्षा बलों की परीक्षा लेती रही है। बांग्लादेश के घरेलू हालात, नेपाल के उपद्रव और पाकिस्तान परस्त आतंकी संगठनों की नई रणनीति (विशेषकर सीमा रेखा के पास बड़े आतंकी शिविरों के बजाय सुदूर इलाकों में छोटे-छोटे ठिकाने बनाना, ताकि भारतीय एजेंसियों की निगरानी से बचा जा सके) ने क्षेत्र में ऐसी अस्थिरता को जन्म दिया है, जिसमें भारत के सामने चुनौतियां बढ़ गई हैं। नतीजतन, हमने अपनी सुरक्षात्मक रणनीति भी तेजी से बदली है।


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जानकारी 12.11.2025

 देश में प्रति 1000 आबादी पर सरकारी कर्मियों (दोनों केंद्र और राज्यों के) का अनुपात मात्र 16 है, जबकि जापान में 39, यूके और कनाडा में 39 से 46, फ्रांस में 55, चीन में 57, इंडोनेशिया में 60, यूएस में 77, ब्राजील में 111 और नॉर्वे में 150 है

- भूटान को चीनी चंगुल से बचाने की चुनौती

- प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दो दिन के लिए भूटान के दौरे पर हैं। भूटान क्षेत्रफल में भारत का सबसे छोटा पड़ोसी है, परंतु इसका सामरिक महत्व अत्यधिक है, क्योंकि यह चीनी कब्जे वाले तिब्बत और भारत के बीच ऊंचे हिमालयों में स्थित महत्वपूर्ण मध्यवर्ती देश है। गत 11 वर्षों में प्रधानमंत्री मोदी का वहां चार बार जाना और इसी तरह भूटान के प्रधानमंत्रियों और राजाओं का लगातार भारत में आगमन का क्रम दर्शाता है कि इस संवेदनशील रिश्ते को उचित ही सर्वोच्च राजनीतिक महत्व दिया जा रहा है। भूटान अगर कमजोर और बेसहारा बन जाए तो विस्तारवादी चीन न केवल उसे निगल जाएगा, बल्कि भारत की सीमा पर एक और मोर्चा खोल देगा।

- सीलाइट’ नामक अंतरराष्ट्रीय शोध संस्थान के अनुसार हाल के वर्षों में चीन ने भूटान की पारंपरिक सीमाओं के भीतर कम से कम 22 कृत्रिम गांव बसाए हैं, जो इस छोटे से देश के लगभग दो प्रतिशत भूभाग पर कब्जा हैं। इन चीनी बस्तियों में सड़कें, सैन्य चौकियां और प्रशासनिक केंद्र भी शामिल हैं, जिससे जमीनी स्तर पर ऐसे नए तथ्य अंकित कर दिए गए हैं, जिन्हें नकारना मुश्किल है।

- 2007 में संशोधित भारत-भूटान स्थायी मैत्री संधि के अनुसार दोनों देश “राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए हानिकारक गतिविधियों” का मुकाबला करेंगे। चीन द्वारा भूटान में घुसपैठ करने और उसे अपने अधीन लाने के मंसूबों के कारण प्रतिरक्षा भारत-भूटान संबंधों का प्रमुख स्तंभ बना रहेगा। चूंकि भूटान को भारतीय सैन्य सहायता संवेदनशील मामला है, इसलिए उसके बारे में सार्वजनिक रूप से घोषणाएं नहीं होती हैं

- दक्षिण एशिया में भारत के पड़ोसियों में भूटान एकमात्र देश है, जो चीन की ‘बेल्ट एंड रोड’ पहल में शामिल नहीं हुआ है

- भूटान की अपनी चौथी यात्रा में मोदी जी ने भारत की मदद से बने पुनतसंगचु जलविद्युत परियोजना का अनावरण किया 

- भारत अपने उत्तर-पूर्वी राज्य असम के कोकराझार से भूटान के प्रतिष्ठित ‘न्यू गेलेफू माइंडफुलनेस सिटी’ तक 58 किलोमीटर लंबी रेल लाइन का भी निर्माण कर रहा है, जिससे आपसी कारोबार और पर्यटन का विकास होगा।

- भूटान की आठ लाख से भी कम आबादी अत्यंत धर्मपरायण है और अपनी अद्वितीय बौद्ध विरासत के संरक्षण के प्रति सचेत है।

- मोदी जी अपनी इस भूटान यात्रा में एक विशेष ‘वैश्विक शांति प्रार्थना’ समारोह में भी भाग ले रहे हैं, जो दोनों देशों की सरकारें साझा तौर पर आयोजित कर रही हैं।

- नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका और मालदीव की तरह भूटान में भी चीन घुसपैठ करके भारत-विरोधी भावनाओं को भड़काने की कोशिश कर रहा है।


विभिन्न समाचार पत्रों और पब्लिक डोमेन में उपलब्ध रिपोर्ट्स एवं दस्तावेजों पर आधारित तथा जन जागरूकता के उद्देश्य से संकलित, संकलन कर्ता भौतिकी में परास्नातक हैं ।

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समझ 11.11.2025

प्रतिबद्ध व्यय का उच्च स्तर विकासात्मक कार्यों को करने की राज्य सरकारों की क्षमता को सीमित करता है।
- सोचने की क्षमता वह विलक्षण गुण है, जो हमें अन्य प्राणियों से अलग कर इंसान बनाती है।
-  लिहाजा चीन पाकिस्तान को किस किस्म के गुप्त परमाणु परीक्षण में मदद कर रहा है, यह देखना होगा। केवल ट्रम्प के खुलासों पर भरोसा करके भारत अपनी कूटनीति नहीं बदल सकता।
- हमें दूसरों की आस्थाओं का सम्मान करना सीखना होगा
- किसी भी देश की लंबे समय तक चलने वाली समृद्धि और मजबूती का रहस्य क्या है, इसके बारे में नोबेल अर्थशास्त्र पुरस्कार समिति लगातार बताती रही है। जोएल मोकिर, फिलिप एगियों और पीटर हॉविट को यह बताने के लिए पुरस्कृत किया गया कि कैसे संस्कृति, संस्थान और 'रचनात्मक विध्वंस' यानी, पुराने और कम कुशल तरीकों को नए और बेहतर विचारों से लगातार बदलना, हमेशा नए आविष्कारों को उत्पादकता में बदलते रहते हैं।
- राष्ट्र निर्माण में अनुसंधान प्रयोगशालाएं हैं अहम
- कंपनियों को प्रतिभाशाली लोगों को आकर्षित करने और ऐसे लोगों की खेप तैयार करने की आवश्यकता है जो हमारी अनुसंधान प्रयोगशालाओं को ताकत देंगे। हमें शोधकर्ताओं को वैश्विक वेतन का भुगतान करने, उन्हें कॉरपोरेट सलाहकारों के साथ जोड़ने और लैब तक पहुंच की गारंटी देने की आवश्यकता है। 
- रूस और अमेरिका पर निर्भरता का खामियाजा हम पूर्व में भुगत चुके हैं, लिहाजा यह आवश्यक था कि हम अपने हथियार खुद बनाएं। सुखद बात है कि पिछले कुछ समय से इस दिशा में जरूरी सक्रियता दिखाई गई है और अबहम न सिर्फ कई हथियार खुद बनाने लगे हैं, बल्कि निर्यात भी करने लगे हैं।


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समझ 10.11.2025

आवारा श्वान मामले को संवेदना और गंभीरता से देखने की जरूरत है। आवारा श्वान और मवेशियों की सुरक्षा सुनिश्चित करना भी जरूरी है। हम अगर उन्हें सड़कों पर रहने की मंजूरी दें, तो वास्तव में उन्हें मौत की ओर ढकेलेंगे। अगर आवारा पशुओं से इंसानों को नुकसान होता है, तो खुद पशुओं की जिंदगी भी खतरे में पड़ती है। अत: बेहतर मानवीय बदलाव के लिए न्यायालय की सक्रियता जरूरी है, इसमें राज्यों को पूरा साथ देना चाहिए

- भारत का प्रजातंत्र एडवर्सेरियल डेमोक्रेसी (द्वंद्वात्मक या प्रतिस्पर्धी प्रजातंत्र ) के सिद्धांत पर आधारित है, जिसमें लगातार जनमत तैयार कराने के लिए विचार सम्प्रेषण होता है।

- विज़न 2032 की सफलता का अर्थ केवल तकनीक का विस्तार नहीं, बल्कि सामाजिक नीतियों और संसाधनों के पुनर्गठन से नागरिकों तक लाभ पहुँचाने की सरकार की प्रतिबद्धता है। लोकतांत्रिक जवाबदेही और समावेशन के मानदंडों को अक्षुण्ण रखना सरकार की सर्वोपरि जिम्मेदारी होती है। यदि विजन 2032 के सिद्धांतों पर नीति- निर्माता, तकनीकी संस्थान और नागरिक समाज एकजुट होकर कार्य करें, तो भारत न केवल डिजिटल पहचान के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनेगा, बल्कि वैश्विक स्तर पर विश्वसनीयता, पारदर्शिता और नैतिक शासन का उदाहरण भी स्थापित करेगा। यदि सरकार की यह महत्वाकांक्षी योजना सफल होती है, तो भारत का डिजिटल भविष्य ही नहीं लोकतांत्रिक मूल्यों की भी रक्षा होगी।

- आज जब हम वंदे मातरम् की रचना के 150 वर्ष पूर्ण होने का पावन अवसर मना रहे हैं, यह केवल स्मरण का नहीं, बल्कि आत्मावलोकन का क्षण भी है। क्या हम उस भाव को जी पा रहे हैं, जिसके लिए असंख्य देशभक्तों ने अपने प्राणों की आहुति दी ? क्या हम अपने जीवन में वही समर्पण, वही अनुशासन और वही मातृभूमि भक्ति स्थापित कर पाए हैं?

- प्रतिबद्ध व्यय का उच्च स्तर विकासात्मक कार्यों को करने की राज्य सरकारों की क्षमता को सीमित करता है।

 - एफआरबीएम समीक्षा समिति ने 2017 में अनुशंसा की थी कि राज्यों का कर्ज 20 फीसदी तक रहना चाहिए। इसके अलावा राज्य सरकारें सरकारी उपक्रमों द्वारा लिए गए ऋण की भी गारंटी देती हैं जो 2023-24 में जीएसडीपी का 4.2 फीसदी था। यह राज्यों की वित्तीय हालत के लिए एक जोखिम है। उल्लेखनीय है कि हिमाचल प्रदेश और पंजाब जैसे कुछ राज्य कुल आंकड़ों से कहीं अधिक गंभीर वित्तीय संकट में हैं और इन्हें अलग नीतिगत हस्तक्षेप की आवश्यकता हो सकती है।


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