अलग-अलग रंगरूप हमारे, दिल की धड़कन एक है।
जाति अलग है, धर्म अलग है, छत पर आकाश एक है।
अलग-अगल है धन की माया,
अलग-अगल है सबकी काया,
पर सबके पैरों के नीचे, देखो धरती एक है।
अलग-अलग है भाषा सबकी,
अलग-अलग हैं व्यंजन सबके,
'थोड़ा सा और लीजिए न' ये भाव तो एक है।
अलग-अलग है ईष्ट हमारे,
अलग-अलग है मंदिर - मस्जिद,
पर सभी ईष्टों का संदेश 'सेवा भाव' भी एक है।
-सौम्या गुप्ता
बाराबंकी, उत्तर प्रदेश
सौम्या गुप्ता जी इतिहास मे परास्नातक हैं और शिक्षण का अनुभव रखने के साथ समसामयिक विषयों पर लेखन और चिंतन उनकी दिनचर्या का हिस्सा हैं |
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शुभकामनाएं
स्वर्गीय प्रदीप ताऊ जी ( पापा उन्हें पप्पू दादा कहते थे ) पापा की बुआ जी के बड़े बेटे थे |
पापा को वो बहुत स्नेह करते थे इसलिए हर होली उनका हमारे घर आना तय था, क्योंकि वो कभी पीलीभीत तो कभी बरेली पोस्टेड रहे तो त्यौहार में ही लखीमपुर आ पाते थे ( वह एक ग्रामीण बैंक में प्रबंधक थे ) त्यौहार और परिवार का क्या सम्बन्ध होता है यह वो बखूबी जानते थे इसलिए त्यौहार के लिए वो लखीमपुर आते ही थे |
यहाँ उनके बारे में लिखने का कारण उनसे मिलने वाला प्रोत्साहन, स्नेह और रिकग्निशन है :
पापा, उम्र में बड़े और पढ़े लिखे लोगों को ख़ास “अहमियत” देते थे, ये हमें ताऊजी के आने पर भी दिखता था इसिलए मेरी नज़र में भी ताऊ जी की एक अलग ही छवि थी, मेरा बालमन भी उनकी तरह ही पढ़ लिखकर मान-सम्मान पाना चाहता था|
आप लोग इस बात को जरुर महसूस किये होंगे की जब कोई आपसे बड़ा जिसे आप भी बड़ा और खुद से बेहतर मानते हो वो आपकी तारीफ कर दे या आपके काम की तारीफ कर दे तो बहुत अच्छा महसूस होता है और आपका स्वयं पर विश्वास बढ़ जाता है और आप सोंचते हैं कि हाँ "मै सही तरीके से काम कर रहा हूँ और ऐसे ही काम करता रहा तो एक दिन जरूर बेहतर करूँगा " ऐसा ही कुछ उस वक़्त भी हुआ ;
मै उस वक़्त ग्यारहवीं में था और अपने साथियों में ज्यादातर की तरह मै भी आईआईटी से इंजीनियरिंग करने के सपने संजो रहा था, उस वक़्त जब मै ताऊ जी से मिला तो उन्होने उस वक़्त की IITs के बारे मे मुझसे बात की और मेरा उत्साह बढ़ाया कि मै एक साल तैयारी कर बेहतर के लिए प्रयास करूँ, उनका मेरी क्षमताओं मे विश्वास प्रकट करना मेरे लिए बहुत बड़ी बात थी, इससे मेरा पढ़ाई मे और ज्यादा मन लग गया क्योंकि अब लग रहा था कि सेलेक्शन पक्का है | हालांकि बाद मे तैयारी के दौरान मैं अपनी समझ के उस गैप को न भर सका जो ग्यारहवीं-बारहवीं के अध्ययन के दौरान रह गया था क्योंकि मेरे लिए उस गैप को एक साल मे भर पाना आसान न था, लेकिन बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी की प्रवेश परीक्षा मे मैंने अखिल भारतीय रैंक 46 हांसिल की और वहाँ से मैंने भौतिकी मे बीएससी ( आनर्स ) किया और आगे चलकर आईआईटी मे पढ़ने का सपना भी पूरा किया, जॉइंट एड्मिशन टेस्ट फॉर एमएससी (JAM) मे अखिल भारतीय रैंक 75 हांसिल करके आईआईटी दिल्ली मे प्रवेश लेकर, उस वक़्त भी ताऊ जी का प्रोत्साहन मिला और पिता जी के देहांत के बाद उनकी तरफ से हर संभव मदद कि पेशकश भी, इससे मुझे अपनेपन और अकेला न होने का एहसास मिला |
उन्होने मुझे कई बार अपने पास मिलने के लिए दिल्ली से लौटते वक़्त बरेली बुलाया लेकिन मै व्यस्तता कहिए या फिर अव्यवस्था के चलते उनसे मिल न सका, अगर मिल पाता तो उनके सानिध्य मे काफी कुछ सीख पाता क्योंकि वो अपनी व्यस्तता के बावजूद भी, जो भी उन्हे अप्रोच करता उन्हे समय देते और हर संभव मदद कर जरूरी और तर्कसंगत तथा व्यावहारिक सुझाव/सलाह देते थे |
सरकारी सेवा मे आने के बाद जब मैंने उन्हे बताया कि मुझे कोलकाता क्षेत्र मिला है तो उन्होने एक बात कही थी जो मुझे आज भी याद है और मै उसका अनुसरण करने का पूरा प्रयास भी करता हूँ, वो बात थी कि, “ कहीं भी जाओ वहाँ का जो उपेक्षित तबका है उसे अगर मौका दे सको उनकी अगर तकलीफ को संबोधित कर सको तो कभी अकेले न रहोगे ”
मै अपने सिक्किम टेन्योर के दौरान सोंचा करता था कि जल्द ताऊ जी से मिलने जाऊंगा लेकिन उसी बीच कोविड की लहर ने ताऊ जी को हमसे छीन लिया, कल ताऊ जी की पुण्य तिथि थी, ताऊ जी का शरीर तो नहीं है हमारे बीच लेकिन वो अपनी बातों और एक खुशमिजाज़, उदार और मददगार व्यक्ति की मिसाल के तौर पर हमेशा हमारे बीच रहेगें, काश उनका सानिध्य पाकर मै कुछ और भी सीख पाता |
उनकी छोटी बहन, अंजना बुआ उन्हे याद करती हुयी कहती हैं कि वो उनका ऐसे ख्याल रखते थे जैसे एक जिम्मेदार पिता अपने बच्चों का ख्याल रखता है और छोटे भाई के प्रति जो उनका प्रेम था उसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि उनके छोटे भाई सुनील चाचा, अपने बड़े भाई के असमय देहांत पर एक ही बात कहते हैं कि उनकी तो दुनिया ही उजड़ गयी |
कहते हैं न कि कहने से ज्यादा करने का प्रभाव पड़ता है वो मैंने ताऊ जी के घर भी देखा, अपने व्यवहार और जीवन से जो उन्होने छाप छोड़ी वो आज भी आदरणीय ताई जी, दीदी और भैया लोगों के आत्मीय व्यवहार मे दिखती है, ये देख अभी भी लगता है कि ताऊ जी हमारे बीच ही है|
स्वर्गीय ताऊ जी के बारे मे यहाँ लिखने का उद्देश्य उनकी बातों को और उस मिसाल को जिंदा रखना है जो मानवीय सदगुणो मे एक हीरे की तरह हैं जिसने भी ऐसे गुणो को खुद के व्यक्तित्व मे पिरोया वो हमेशा भीड़ से अलग चमका |
उन्ही के प्रयासों के संदर्भ मे एक शेर याद आता है :
माना कि इस जमीं को न गुलज़ार कर सके
कुछ खार कम तो कर गए गुजरे जिधर से हम " खार = काँटा "
विनम्र श्रद्धांजलि
लोगों के मनमाने व्यवहार और असीमित उपभोग की आकांक्षाओं ने धरती और सभ्यता को संकट में डाल दिया है - ग्लोबल वार्मिंग, बिखरते रिश्ते, तनाव, बेरोजगारी और असुरक्षा की भावना, सामाजिक प्रतिष्ठा की चाह के चलते समाज से रिकग्निशन पाने की गैर जरूरी हद तक कामना इत्यादि।
जब अमूमन वाट्सैप स्टेटस पर पर्यटन के फोटोज या सतही ज्ञान के वीडियो/फोटो दिख रहे हों उस बीच " जीवन, मानव मन और दुनिया की बारिकियों या फिर इंसान की विरोधाभासों से भरी जिंदगी पर एक नजर डालने का इशारा है। "
हो सकता है कि २५० लोगों में ऐसे भी लोग हों जो स्टेटस में लेख या उक्ति देख बिना पढ़े आगे बढ़ा देते हों
कुछ ऐसे होंगे जो सहमत न होते होंगे और इन्हें किताबी बातें बोलकर चिढ़ जाते हों
कुछ ऐसे होंगे जो आंशिक रूप से सहमत होते होंगे
कुछ तो इन्हें जीवन में उतारते होंगे
कुछ के दिमाग के किसी कोने में पड़ जाते होंगे, ताकि वक्त जरूरत स्पष्टता में काम आयें
कुछ के जीवन में चल रहे झंझावातों और उलझनों का समाधान मिल जाता होगा
कुछ तो मेरे स्टेटस को रिपोस्ट करते हैं अपनी वाल पर
या वो खुद भी उक्तियों को स्टेटस में लगाना आदत में ले आते हैं।
मेरी कल्पना में है वो एक दिन जब आपकी कांटैक्ट लिस्ट के कई लोगों के वाट्सैप स्टेटस में होंगी ऐसी पंक्तियां जो हमारी समस्या का हल हो सकती हैं
या हमें हमारी मानसिक गुलामी का एहसास करा सकती हैं
या हमें हमारे जीवन के झूठ को आयने में दिखा सकने की क्षमता रखती होंगी
या फिर वो हमारे जीवन और समाज की असली और केंद्रीय समस्या की तरफ हमारा ध्यान खींच सकती हैं
या वो हमें ये अहसास दिला सकती हैं कि हमें कोई अधिकार नहीं अपनी आराम और विलासिता के लिए, समाज और वातावरण को खतरे में डालने का
या वो लोगों, स्वयं और दुनिया को लेकर हमारे भ्रम को तोड़ हमें तनाव और दबाव से मुक्त कर सकती हैं।
अगर आप भी किसी बिंदु से सहमत हैं तो उठाइए एक कदम खुद की और उस माहौल और उस हवा को बेहतर करने को जिसमें हम सांस लेते हैं।
जब हमारे कार्य के पीछे जनहित होता है फिर हमें ये न सोचना चाहिए कि लोग ( संकीर्ण समझ के लोग) हमारे बारे में क्या सोचते हैं।
शुभकामनाएं
- लवकुश कुमार
शिक्षा का महत्व क्या है इसकी झलक इस तरह भी मिल सकती है कि इसके लिए प्रयास कितने जा रहें।
मध्य प्रदेश के दमोह के एक शिक्षक ने इस महत्व को दर्शाने के लिए गांव की दीवारों को ब्लैकबोर्ड बनाया और चौराहों को क्लासरूम।
इस पहल और योगदान के लिए माधव सर को माननीय राष्ट्रपति जी द्वारा सम्मानित किया जाएगा। विस्तृत खबर के लिए दैनिक भास्कर का आर्टिकल जरूर पढ़ें, लिंक नीचे है।