नीलेश को सामने देख कर पायल को विश्वास नहीं हो रहा था कि ये वही लड़का है जो स्कूल के दिनों में हमेशा उसे परेशान करता रहता था।नीलेश और वो दोनों जब एक ही कक्षा में पढ़ते थे,तब एक दिन वह उसके पीछे ही पड़ गया था।
" पायल मुझे तुम बहुत अच्छी लगती हो "।
" अच्छा!! " पायल ने हंसते हुए जवाब दिया था।
"सीमा बता रही थी,तुम ये शहर छोड़ कर जा रही हो,"
" हां! वो ठीक कह रही थी "।
प्लीज़!. ऐसा मत करना पायल...,मै तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ, तुम्हारे बिना रह नहीं सकूंगा "।
" अरे कैसी पागलों वाली बातें कर रहा है तू, अभी तो हमने बारहवीं भी पास नहीं की है। अभी बहुत कुछ करना है लाइफ में, प्यार व्यार की बातें तो बाद में सोचेंगें, पहले पढ़ाई तो पूरी कर लें।समझा ?पायल ने चौंक कर हंसते हुए नीलेश की बात को टालना चाहा।
"लेकिन पायल तुम नहीं जानतीं,मैं तुम्हें दिलो-जान से प्यार करता हूं, बस कभी कह नहीं पाया। यदि यकीन न हो तो चलो मेरे रूम पर" ।
कमरे का कोई कोना ऐसा न था,जहाँ पायल की तस्वीरें न चिपकी हों। हंसती, रोती, खिलखिलाती, उदास, दौड़ती, भागती, हर पोजिशन के फोटो वहाँ लगे थे। कुछ छूटे हुए स्थानों पर पायल,पायल और सिर्फ पायल ही लिखा था । नीलेश की ऐसी दीवानगी देख कर पायल की आंखें विस्मय से फटी की फटी रह गयीं।
" ओ माइ गॉड! ये क्या पागलपन है नीलेश!! पायल ने आश्चर्य से झिड़कते हुए कहा _ क्या सच में तुम मुझे इतना चहते हो!! "।
" आजमा कर देख लो!! तुम कहो तो मैं अपनी जान भी दे दूं , बस एक बार ये कह दो कि तुम भी मुझे..... "।
" अरे अभी तुम्हारी औकात ही क्या है। फिर भी! मैं जो कहूँगी, क्या तुम वही करोगे " ? पायल ने कटाक्ष करते हुए पूछा ।
" तुम कहो तो सही "।
" तो फिर मुझसे ये वादा करो, कि जब तक तुम पढ़ लिख कर मेरे योग्य नहीं बन जाओगे, मुझसे कभी नहीं मिलोगे "।
पायल की बातों ने नीलेश के भीतर गहरे तक वार कर दिया था। फिर वह कुछ न बोल सका।
आज वही नीलेश लेफ्टिनेंट नीलेश के रूप में पायल केे सामने खड़ा था।
" हैलो! मैडम! कहां खो गयीं, अन्दर आने को नहीं कहोगी " ।
ओss सौरी आइये! मि. पागल ,। पायल के मुंह से अनायास ही निकल गया। वर्षों से मुर्झाये रिश्ते की लता से आज प्यार के फूलों की भीनी महक फूट रही थी।
© सुनीता त्यागी
राजनगर एक्सटेंशन गाजियाबाद
ईमेल : sunitatyagi2014@gmail.com
आदरणीय सुनीता जी की रचनाएं हमे मानवीय संवेदना, मानवीय भावना के विभिन्न रूप और तीव्रताएं यथा प्रेम, परवाह, चाह और संकल्प इत्यादि , नज़र की सूक्ष्मता, सामाजिक संघर्ष और विसंगतियों पर प्रकाश डालती और लोगों मे संवेदना और जागरूकता जगाने का सफल प्रयत्न करती दिखती हैं, इनकी रचनाएँ पढ़कर खुद को एक संवेदी और व्यापक सोंच और दृष्टिकोण वाला इंसान बनाने मे मदद मिलती है |
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