|
पटकनी - ममता कालिया |
सह जीवन |
|
|
भिखारिन - जयशंकर प्रसाद |
साहब, दो दिन में एक पैसा तो दिया नहीं, गाली क्यों देते हो ? |
|
|
हींग वाला - सुभद्रा कुमारी चौहान |
बाहर माहौल खराब है अम्मा ........ |
|
|
अंधे : खुदा के बन्दे - रमेश बत्रा |
जो आदमी होकर आदमी को नहीं पहचानते ......... अँधा हो चूका हूँ, मोहताज नहीं होना चाहता | |
|
|
अनुभवी - रमेश बत्रा |
बाप मर गया है ....... |
|
|
नदियाँ और समुद्र - रामधारी सिंह दिनकर |
गंभीर और मर्यादावान |
|
|
चलोगे- रमेश बत्रा |
आप तो ऐसे कह रहे हैं जैसे कि मै कोई मुहर मांग लूँगा |
आनंद लीजिये इन कहानियों का चेतना को छूने वाली कथावस्तु और मन को बाँधने वाली आवाज में |
धन्यवाद की पात्र हैं वह लेखिका/लेखिका जिन्होंने ये कहानियां लिखी और वह वक्ता यानी नम्रता जी जिन्होंने अपनी आवाज में इन्हें हमारे लिए और सुलभ तथा रोचक बनाया |
बोलते तो सब हैं एक बोलना ये भी है कि आप किसी चेतना को छूने वाली कहानी को आवाज दें |
अगर आपके पास भी कुछ ऐसा है जो लोगों के साथ साझा करने का मन हो तो हमे लिख भेजें नीचे दिए गए लिंक से टाइप करके या फिर हाथ से लिखकर पेज का फोटो Lovekushchetna@gmail.com पर ईमेल कर दें
फीडबैक / प्रतिक्रिया या फिर आपकी राय, के लिए यहाँ क्लिक करें |
शुभकामनाएं