आँगन में इधर-उधर फुदकती हुई गौरैया अपने बच्चे को उड़ना सिखा रही थी। बच्चा कभी फुदक कर खूंटी पर बैठ जाता तो कभी खड़ी हुई चारपायी पर, और कभी गिरकर किसी सामान के पीछे चला जाता।
संगीता अपना घरेलू काम निपटाते हुई, ये सब देख कर मन ही मन आनन्दित हो रही थी। उसे लग रहा था, मानो वह भी अपने बेटे रुद्रांश के साथ लुका-छिपी खेल रही है।
आँखों से ओझल हो जाने पर जब गौरैया शोर करने लगती तब संगीता भी डर जाती कि जैसे रुद्रांश ही कहीं गुम हो गया है, और घबरा कर वह गौरैया के बच्चे को श..श. करके आगे निकाल देती।
बच्चा अब अच्छी तरह उड़ना सीख गया था। इस बार वह घर की मुंडेर पर जाकर बैठ गया और अगले ही पल उसने ऐसी उड़ान भरी कि वह दूर गगन में उड़ता चला गया।
गौरैया उसे ढूंढ रही थी और चीं- चीं, चूं - चूं के शोर से उसने घर सिर पर उठा लिया।
सन्तान के बिछोह में चिड़िया का करुण क्रन्दन देखकर संगीता का दिल भी धक से बैठ गया। वो भी एक माँ जो ठहरी! उसके बेटे रुद्र ने भी तो विदेश जाने के लिए पासपोर्ट बनवा लिया है औरअब कई दिनों से अमेरिका का वीजा पाने के प्रयास में लगा है।
© सुनीता त्यागी
राजनगर एक्सटेंशन गाजियाबाद
ईमेल : sunitatyagi2014@gmail.com
आदरणीय सुनीता जी की रचनाएं हमे मानवीय संवेदना, मानवीय भावना के विभिन्न रूप और तीव्रताएं यथा प्रेम, परवाह, चाह और संकल्प इत्यादि, नज़र की सूक्ष्मता, सामाजिक संघर्ष और विसंगतियों पर प्रकाश डालती और लोगों मे संवेदना और जागरूकता जगाने का सफल प्रयत्न करती दिखती हैं, इनकी रचनाएँ पढ़कर खुद को एक संवेदी और व्यापक सोंच और दृष्टिकोण वाला इंसान बनाने मे मदद मिलती है |
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