काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के ह्रदय क्षेत्र वी.टी. ( विश्वनाथ टेम्पल ) के पीछे आम के पेड़ों से घिरे हुये
आर० के० हॉस्टल के वार्डन-ऑफिस के सामने हॉल में 15-20 लड़के खड़े हैं इधर उधर,
कोई ऑफिस के गेट के पास, कोई सीढ़ी के पास तो कोई हॉस्टल गेट के पास, क्या चल रहा है ?
लोग आपस में अपने लिए एक मुफीद रूममेट की तलाश में हैं, रूम अलाटमेंट की प्रक्रिया चल रही है |
विपुल भी अपने लिए एक अच्छे रूममेट की तलाश में है जो डिस्टर्बिंग भी न हो और यदि पढाई में सहयोग कर सके
तो सोने पे सुहागा | एक से एक लड़के हैं, कोई बात करने में एक्सपर्ट तो कोई देखने सुनने में प्रभावशाली,
कोई मजाकिया है तो कोई अति गंभीर की जैसे बोलना ही न जानते हो |
इन सब आकर्षणों/विकर्षणों के बीच विपुल अपने पुराने निर्णय को री-कंसीडर कर रहा है
क्योंकि वो तो पहले ही कानपुर में कोचिंग के वक़्त के अपने एक बैचमेट ध्रुव को
रूममेट बनने के लिए बोल चुका है, इन सब उधेड़ बुन से दूर ध्रुव शांत और निश्चिंत भाव से
अपना डोजिअर फॉर्म भरने में लगा है |
अंततः विपुल सारे आकर्षणों को किनारे कर ध्रुव को चुन लेता है उसकी साफगोई (साफ़ बात कहना) और मेधा के चलते|
साल दर साल आगे बढे, हॉस्टल बदले , कमरा नंबर बदले लेकिन वो दोनों एक दूसरे के रूममेट रहे |
तीन साल के कोर्स में केवल एक पेपर की क्लासेज ही उन्हें साथ करने का मौका मिला |
आखिर कोर्स पूरा होने पर रूम के दरवाजे पर दोनों की सहमती से दर्ज हुआ “ बेस्ट रूममेट ”
-लवकुश कुमार
जानव, एक सरकारी कार्यालय में बैठा पिछले दिन से चले आ रहे
एक प्रपोजल के मसौदे को अंतिम रूप देने में लगा था कि
उसका फोन बजता है, भावना का फोन था, उसकी ग्रेजुएशन के वक्त से दोस्त।
कुछ दिनों पहले ही भावना अपनी माँ की ह्दयाघात से मृत्यु के सदमें से गुजरी थी,
इस बात को ध्यान में लेकर जानव ने तुरंत ही अपना काम रोककर भावना की काल अटेंड की।
जानव कल मैं राजधानी गई थी जीएम से मिलने, अपने गृहनगर में तबादले की अर्जी लेकर,
भावना ने चिंतित स्वर में कहा।
अच्छा किया जो व्यक्तिगत रूप से मिलकर अपनी परिस्थिति की जानकारी दी,
जानव ने जवाब दिया |
जानव मेरा तबादला हो जाएगा न, जी०एम० सर कह तो रहे थी कि
अगले रोस्टर में नाम डाल देंगे आपका, भावना ने कुछ आशा पाने की उम्मीद में कहा।
सरकारी विभाग में कई साल बिता चुके जानव ने सारी संभावनाओं
पर विचार करते हुए कहा कि, भावना तुम्हारा केस जेन्युइन है, इसलिए
तुम्हे तबादला मिलना चाहिए ताकि तुम अपने बीमार पिताजी का ख्याल रख सको,
लेकिन वादा करने और एक्जीक्यूशन में अंतर है, कई फैक्टर्स चेक करने होते हैं जैसे
कि तुम्हारा रिप्लेसमेंट तैयार करना होगा आदि आदि, इसीलिए वक्त भी लग सकता है।
ये सुनकर भावना दुखी हो गई क्योंकि वो अपना दिमाग उस तरफ लगाने की हालत में
खुद को नहीं पाती थी कि जब उसके तबादले में देरी के चलते उसके बीमार पिताजी कि
देखभाल की कुछ व्यवस्था करनी होगी, आखिर आफिस से छुट्टी भी तो एक लिमिट तक ही मिलेंगी।
-लवकुश कुमार
हैलो
नमस्ते दादा
नमस्ते भइया, कैसे हो ?
ठीक हूं दादा, आज जा रहा हूं रिपोर्ट लेनें, दिल्ली
पता नहीं क्या निकलेगा रिपोर्ट में, वैसे सब कुछ ठीक ही होना चाहिए, है न दादा
हां सब कुछ ठीक ही होना चाहिए, बाकी तुम परेशान न हों, कोई अगर थोड़ी बहुत दिक्कत होगी भी तो मेडिकल साइंस बहुत आगे है, डाक्टर ठीक कर देंगे, आनंद ने अपने छोटे भाई आशीष को हिम्मत देते हुए कहा।
ठीक है दादा नमस्ते, इतना कहकर आशीष ने फोन काट दिया।
आशीष को आनंद दादा कि ये बात बुरी लग गयी कि " थोड़ा बहुत कुछ दिक्कत होगी तो......."
क्योंकि उसने तो ये सुनने के लिए फोन किया था कि ," तुम परेशान न हों रिपोर्ट नार्मल आएगी "
इधर अचानक से फोनकाल पूरी होने से, आनंद दादा को भी शंका हुई कि उनका प्रयास, छोटे भाई को हर परिस्थिति के लिए तैयार करने का था, लेकिन असर तो कुछ और ही हो गया शायद!
-लवकुश कुमार
क्या बात है कनिष्क किन यादों में डूबे हो ?
निशीथ ने अपने रूममेट से पूंछा।
यही कि लोग कितने अजीब हैं, जो लोग उन्हें तरह तरह के झूठ बोलकर अंधेरे में रखते हैं,
असहमत होने पर भी अपनी असहमति व्यक्त नहीं करते और पीठ पीछे बुराई करते हैं
और तो और ऐसे लोग उनसे अपने मन मुताबिक काम भी करवा लेते हैं, ऐसों से तो वो
बहुत नज़दीक रहते हैं और मेरे जैसे लोग ( गहरी सांस लेते हुये )
जो उनका भला चाहते हैं, उनकी सुविधा असुविधा का ख्याल रखते हैं
उनसे वो दूरी बना लेते हैं क्या केवल इसलिए कि मैं उनकी बात से
सहमत न होने पर तुरंत अपना पक्ष रख देता हूं, कितना अजीब है न ?
हां अजीब तो है, निशीथ ने एक लंबी सांस लेते हुए कहा।
ये और भी अजीब होगा अगर तुम ऐसे " अंधेर-पसंद " इंसान से मेल जोल न बढ़ पाने पर
दुखी होते रहोगे जो सामने वाले से हर बात में केवल
" हां बिल्कुल सही " सुनना चाहते हैं और सामने वाले के "जीवन में सत्य के स्थान" के
बजाय अपने प्रति "तथाकथित समर्पण" को ही मानदंड मानते हैं।
यह सुन कनिष्क कमरे से बाहर निकल आया और हास्टल की बालकनी पर खड़ा हो
नीचे से गुलाब के फूलों की महक से सनी ठंडी हवा के झोंके को अपने गालों पर महसूस
करते हुए अपनी पसंद की समीक्षा करने लगा।
-लवकुश कुमार