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सियाटिका- एक लघुकथा

यही दिन देखने को रह गए थे, पोंछा नहीं लगा सकती! भारी सामान नहीं उठा सकती !, वैभव की 65 वर्षीय माता जी ने अपनी सियाटिका दर्द के चलते डाक्टर द्वारा सुझाए परहेज़ को लेकर अपनी खिन्नता व्यक्त की।

 

वैभव को पहले तो यह सुनकर तकलीफ़ हुई कि अम्मा परहेज़ नहीं करना चाहती, फिर कुछ सोचकर मुस्कुराने लगे और बोले अम्मा कुछ 2-4 काम नहीं कर सकती उसका अफसोस करने के बजाय ये सोचो कि बहुत से जरूरी काम तो अभी भी कर सकती हो‌।

 

वैभव समझ चुके थे कि अम्मा की तकलीफ़ परहेज़ नहीं, देहभाव से जुड़ा अहंकार था, जिसे अब चोट लग रही थी क्योंकि अब उनका शरीर एक स्वस्थ व्यक्ति जैसा नहीं रहा था, जबकि शरीर तो एक साधन है और कई ऐसे महत्वपूर्ण कार्य अभी भी किए जा सकते हैं जिनमें शारीरिक रूप से पूर्ण सशक्तता आवश्यक नहीं होती।

 

- लवकुश कुमार