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तबादला - एक लघुकथा

 

जानव, एक सरकारी कार्यालय में बैठा पिछले दिन से चले आ रहे

एक प्रपोजल के मसौदे को अंतिम रूप देने में लगा था कि

उसका फोन बजता है, भावना का फोन था, उसकी ग्रेजुएशन के वक्त से दोस्त। 

 

कुछ दिनों पहले ही भावना अपनी माँ की ह्दयाघात से मृत्यु के सदमें से गुजरी थी,

इस बात को ध्यान में लेकर जानव ने तुरंत ही अपना काम रोककर भावना की काल अटेंड की। 

 

जानव कल मैं राजधानी गई थी जीएम से मिलने, अपने गृहनगर में तबादले की अर्जी लेकर,

भावना ने चिंतित स्वर में कहा। 

अच्छा किया जो व्यक्तिगत रूप से मिलकर अपनी परिस्थिति की जानकारी दी,

जानव ने जवाब दिया |

जानव मेरा तबादला हो जाएगा न, जी०एम०  सर कह तो रहे थी कि

अगले रोस्टर में नाम डाल देंगे आपका, भावना ने कुछ आशा पाने की उम्मीद में कहा। 

 

सरकारी विभाग में कई साल बिता चुके जानव ने सारी संभावनाओं

पर विचार करते हुए कहा कि, भावना तुम्हारा केस जेन्युइन है, इसलिए

तुम्हे तबादला मिलना चाहिए ताकि तुम अपने बीमार पिताजी का ख्याल रख सको, 

लेकिन वादा करने और एक्जीक्यूशन में अंतर है, कई फैक्टर्स चेक करने होते हैं जैसे

कि तुम्हारा रिप्लेसमेंट तैयार करना होगा आदि आदि, इसीलिए वक्त भी लग सकता है। 

 

ये सुनकर भावना दुखी हो गई क्योंकि वो अपना दिमाग उस तरफ लगाने की हालत में

खुद को नहीं पाती थी कि जब उसके तबादले में देरी के चलते उसके बीमार पिताजी कि

देखभाल की कुछ व्यवस्था करनी होगी, आखिर आफिस से छुट्टी भी तो एक लिमिट तक ही मिलेंगी। 

 

-लवकुश कुमार