Article

पिता – एक लघुकथा

क्या हुआ विभू ? इतना परेशान क्यों लग रहा है ? मम्मी ने मुरझाया सा मुह लेकर बैठे अपने बेटे से पूंछा |

कुछ नहीं मम्मी, लग रहा है की मै जेईई की कोचिंग के लिए दिल्ली नहीं जा पाउँगा |

ऐसा क्यों कह रहे हो बेटा, पापा प्रयास कर रहे हैं न, फिर तुम्हे स्कालरशिप भी तो मिली है |

हाँ मम्मी स्कालरशिप तो मिली है फिर भी फीस काफी ज्यादा है, और आजकल तो पापा का काम भी बढ़िया नहीं चल रहा |

माँ, विभू के बाल सहलाती हुयी बोली, बेटा तेरी कोचिंग वाली बात तो तेरे पापा को तब से याद है जब तू 11th में ही था, आखिर

उनका भी तो सपना है की तुझे बेहतर से बेहतर शिक्षा मिले, भले ही हम तुझे बड़े स्कूल में न पढ़ा सके, लेकिन तेरी लगन देखकर

तेरे पापा कह रहे थे की एक साल की तो बात है करा देंगे कोचिंग | दरवाजे से पापा की आवाज आई, माँ दरवाजा खोलने गयी, पिता

ने अपनी जेब से बड़ी सावधानी से एक हरे रंग का नोट के आकर का कागज़ निकाला और बड़े गर्व से पत्नी के हाँथ में देते हुए बोले की

विभू की माँ विभू की तैयारी की व्यवस्था हो गयी है ! माँ समझ न पाई की ये कैसा कागज़ है, पापा ने बताया ये डीडी है विभू की कोचिंग

की फीस के लिए | महेश भाई साहब से बात हो गयी है, विभू पीतमपुरा में उनके घर ही रुककर तैयारी करेगा |

माँ पापा की बात सुन विभू ऐसे खुश हो गया जैसे उसे पंख लग आये हों अथाह आकाश में उड़ने को, बेटा पिता की

उपस्थिति में बहुत सुरक्षित महसूस कर रहा था |

पापा ने अपने काम में सहयोग के लिए एक पुरानी लोडर खरीदने के लिए जो पैसा जमा किया था

उसे निकाल अपने बेटे को बेहतर अवसर मुहैया कराने को खर्च कर दिया क्योकि वो अच्छे से समझते थे

की लोडर तो दो साल बाद भी आ जाएगी लेकिन विभू दो साल बाद जेईई में न बैठ पायेगा |

 

लवकुश कुमार