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काश और वर्तमान - सौम्या गुप्ता

इंसान कई बार 'काश' में फंसकर रह जाता है

इसीलिए वह उदास रह जाता है

काश ऐसा होता, काश वैसा होता

पर जो है जैसा है सिर्फ अभी है।

-सौम्या गुप्ता 

सौम्या गुप्ता जी इतिहास मे परास्नातक हैं और शिक्षण का अनुभव रखने के साथ समसामयिक विषयों पर लेखन और चिंतन उनकी दिनचर्या का हिस्सा हैं |


यह कविता  'काश' में फंसने और वर्तमान में न जीने के मानवीय स्वभाव पर प्रकाश डालती है, जिससे निराशा और दुःख की भावनाएँ उत्पन्न होती हैं।

इस कविता के माध्यम से कवयित्री क्या संदेश देना चाह रही है उसे कुछ प्रश्नों के माध्यम से आसानी से समझ सकते है :

इस काव्य का केंद्रीय विचार क्या है?

इस काव्य का केंद्रीय विचार यह है कि मनुष्य अक्सर 'काश' या 'अगर ऐसा होता' की दुनिया में खो जाते हैं, जो उन्हें वर्तमान की वास्तविकता से दूर ले जाता है, जिससे निराशा और उदासी की भावना पैदा होती है।

काव्य में 'काश' का क्या अर्थ है?

'काश' का अर्थ है 'अगर', 'यदि', या 'मैं चाहता हूँ' और यह अतीत या भविष्य की उन स्थितियों का प्रतिनिधित्व करता है जिन्हें बदला नहीं जा सकता है, जिससे व्यक्ति दुखी हो जाता है।

काव्य में उदासी का कारण क्या बताया गया है?

पाठ में उदासी का कारण 'काश' की दुनिया में फंसना और वर्तमान में न जीने को बताया गया है। जब व्यक्ति वर्तमान की सराहना करने के बजाय अतीत या भविष्य में खो जाता है, तो वह उदास हो जाता है।

हम वर्तमान में कैसे रह सकते हैं?

वर्तमान में रहने के लिए, हमें अतीत की गलतियों और भविष्य की अनिश्चितताओं के बारे में चिंता करने के बजाय, वर्तमान क्षण पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। हमें वर्तमान में जो कुछ भी है, उसकी सराहना करनी चाहिए और हर पल को जीना चाहिए।

इस काव्य का संदेश क्या है?

इस पाठ का संदेश है कि हमें वर्तमान में जीना चाहिए और 'काश' की दुनिया से बाहर निकलना चाहिए, क्योंकि यही सच्ची खुशी और संतुष्टि का मार्ग है।


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जीवनसाथी - सौम्या गुप्ता

आज आपने फिर से चाय में चीनी ज्यादा कर दी, कितनी बार कहा है कि कम चीनी की चाय पिया करो.......मीनू ने गुस्से में फिक्र के कारण कहा।

लेकिन प्रेम ने पहले के अंदाज में मुस्कराते हुए उत्तर दिया....मुझे कुछ भी नहीं होगा तुम हो न मेरा ख्याल रखने के लिए, फिर मेरे लिए इतने व्रत भी तो करती हो।

मीनू का गुस्सा शांत हो जाता है और वो बोलती है शादी को 25 साल हो गये पर आपका उत्तर और अंदाज बिल्कुल भी नहीं बदला|

प्रेम ने मुस्कुराते हुए मीनू को एकटक निहारते हुए कहा.....मेरी रोज की आदत पर आज भी तुम मुझे पहले की तरह डांटती हो तुम भी कहाँ बदली हो मीनू?

दोनों ने चाय का कप हाथ में लिया और बालकनी की तरफ़ चल दिये, वहां पहुंचकर प्रेम ने मुस्कुराते हुए पूछा, मीनू हमारे साथ में या हमारे प्रेम में ऐसा क्या था कि हम आज भी पहले की तरह ही है, जैसे शादी के तुरंत बाद थे ?

मीनू ने कहा...आपने मुझे कभी बाँध के नहीं रखा,  मेरी स्वतंत्रता का सम्मान किया....मुझे और मेरे घर वालों को अपने ही परिवार की तरह समझा...इससे मेरी नजरों में आपका सम्मान बहुत बढ़ गया....आपने हमेशा मुझपर विश्वास किया....मेरी जॉब के लिए भी मुझे माहौल दिया.....रोज कुछ न कुछ वक्त हम साथ बिताते हैं |

प्रेम ने कहा हाँ जैसे अभी बिता रहे है....तुम मेरी सुख-दुख की सबसे ख़ास साथी हो...मैंने वहीं किया जो हर पति को करना ही चाहिए....विश्वास, प्रेम और सम्मान ही तो रिश्ते की नींव होते है 

मीनू कहती है, हाँ आप सही कह रहे है हम दोस्त बनकर ही ज्यादा रहे है और अपेक्षाओं का भारी पुलिंदा भी नहीं रखा इसीलिए आज भी हम बेस्ट फ्रेंड हैं, प्रेम में जरूरी है कि हम एक दूसरे को आत्म उन्नती की ओर भी ले जाए,  एक दूसरे के बिना भी हम खुश रह सके, हमारे रिश्ते में डर न हो,....आपने मुझे इस बात में भी सहायता की और स्वतंत्र चेतना समझा....लोगों के जैसी आपके मन मे स्त्री के प्रति पुरानी सामंतवादी सोच भी नहीं थी

प्रेम अपने अंदाज में फिर कहता है, मीनू तुम्हारा जैसा रुख था जीवन में गरिमा, आत्मनिर्भरता और उत्कृष्टता पाने का मैंने बस तुमको वैसा जीवन जीने दिया है, स्त्री और पुरुष दोनों स्वतंत्र चेतना ही है बस सृष्टि के संचालन के लिए  कुछ अन्तर है।

मजाक करते हुए प्रेम कहते हैं, वैसे एक बात और पूछनी है मेरी प्यारी मीनू से, बेस्ट फ्रेंड के बाद बॉय फ्रेंड बनने का भी चांस है क्या ? और हंसने लगते हैं 

मीनू, आप नहीं सुधरने वाले ! हाँ क्यों नहीं....रिश्ता लेकर घर कब आओगे?

फिर दोनों हँसते हुए अपनी चाय खत्म करते हैं |

मीनू और प्रेम साथ मिलकर अपना और बच्चों का लंच पैक करके निकल जाते है अपने-अपने काम पर। 

 

- सौम्या गुप्ता 

बाराबंकी, उत्तर प्रदेश 


सौम्या गुप्ता जी इतिहास मे परास्नातक हैं और शिक्षण का अनुभव रखने के साथ समसामयिक विषयों पर लेखन और चिंतन उनकी दिनचर्या का हिस्सा हैं |


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ख़ुशी - एक लघुकथा

कितनी सोंधी खुशबू आ रही है, लंबी सी सांस खींचकर, सोंधेपन को महसूस करते हुये साधना ने कहा,

हाँ सच्ची कुछ देर पहले ही बूंदा बांदी हुई है गर्म धरती की प्यास का इलाज, खिलखिलाते हुए अमृता ने जवाब दिया जो कि इसी गांव शांतिपुरी की रहने वाली है और अपनी कॉलेज फ्रेंड साधना को स्कूटी पर अपना गांव घुमा रही है|

लो आ गया हमारा शिव मंदिर और वो रही गौला नदी, अमृता ने मुस्कुराते हुए कहा, साधना की आंखों में भी चमक थी, मंद मंद ठंडी हवा, दूर तक दिखता क्षैतिज और फिर पेड़ों की कतार, जैसे कि सोच को विस्तार देने को कह रहे हों।

दोनों मंदिर के प्रांगण में बनी सीमेंट की बेंच पर बैठ जाती हैं। अमृता पहला सवाल दागती है: और साधना तुम फोन पर कुछ कह रही थी कि बहुत कुछ नया सीख रही हो, आओ अब आमने-सामने बात करते हैं, मुझे भी सिखाओ कुछ नया और इतना कहका अमृता अपनी अमर हंसी हंस देती है खिलखिलाकर, यूं की आस पास के मुरझाते फूल भी उसकी खिलखिलाहट से ऊर्जा समेट दुबारा खिल उठने को ललक उठें|

साधना भी अपने धीर और सौम्यता से भरे स्वभाव के अनुरूप मुस्कुराकर अपनी सहेली को उसके नाम से पुकारकार उसकी खिलखिलाहट की तारीफ करने से बिना चूके सधी हुयी आवाज मे कहती है कि देख अमृता मै तुझसे कुछ ऐसा साझा करना चाहती हूँ जो लोग कभी सालों-साल नहीं जान पाते,

अब ये तो संगति और पसंद की बात है कि मुझे सही समय पर ये बातें पता चल गईं|

अरे लेखिका महोदया क्या सीख लिया, अब बताओ भी, ज्यादा न तड़पाओ, अमृता ने बीच मे टोंकते हुये कहा और फिर वही खिलखिलाहट वाली हंसी|

अरे बताती हूँ मैडम, साधना ने मुस्कुराते हुये अपनी बात फिर शुरू की: मैंने पिछले कुछ महीनों से उपनिषद् गंगा सीरियल के कई एपिसोड देखे हैं,जो कुछ मिला वो अब कहे देती हूँ;

मैंने कई बार सुना है कि खुशी, आनंद ये सब अंदर से महसूस किया जा सकता है, और अब मुझे भी बहुत से बाहरी कारण नहीं ढूँढने पड़ते, बाहर बहुत सी गड़बड़ होने पर अंदर खुशी ही रहती है। एक अद्भुत चीज जो मैंने अनुभव की कि खुशियों की मांग जब हम बाहरी चीजों से करते हैं तो खुशियाँ नहीं मिलती लेकिन अंदर से आनंदित हो तो बाहर भी सबसे प्यार, स्नेह मिलता है।

उपनिषद् गंगा स्वयं को जानने का एक बहुत अच्छा साधन है। एक एपिसोड डेली, अंदर के इतने सारे प्रश्नों के उत्तर दे सकता है, ये अकथनीय अनुभव है। मेरे बचपन के जो प्रश्न थे, वो बहुत सारे सुलझ गए।

खिलखिलाने वाली अमृता अब शांत थी और पूछती है कि कुछ खुलकर बताओगी इंटेलिजेंट लेडी, मेरा मतलब है कि बाहरी चीजों से स्थायी ख़ुशी क्यों नहीं मिलती?

ओके बताती हूँ, साधना फिर अपनी बात शुरू करती है: बाहरी चीजों से स्थायी खुशी इसलिए नहीं मिलती क्योंकि यह सतही होती है और बाहरी परिस्थितियों पर निर्भर करती है। जब हम अंदर से खुश होते हैं, तो हम अपने काम को अच्छे से अंजाम देते हैं और उत्कृष्टता पाते हैं जो अपने आप मे ही एक टिकाऊ आनंद देने वाली बात है और जब हम अंदर से आनंदित रहते हैं तो आस पास मुस्कुराकर अच्छे से पेश आते हैं नतीजा हमारे आस पास के लोगों के व्यवहार पर भी इसका प्रभाव पड़ता है और आस पास के लोगों का व्यवहार भी खुशनुमा हो जाए इसकी संभावना बढ़ जाती है और नतीजा हमें प्यार और स्नेह मिलता है।

आंतरिक खुशी आत्म-जागरूकता, संतोष और आत्म-प्रेम से आती है, जो बाहरी दुनिया से मिलने वाली क्षणिक खुशियों से कहीं अधिक स्थायी होती है।

वाह मोहतरमा वाह, क्या बात कही है तुम्हारी बात सुन बादल भी बरसकर तुम्हारा आलिंगन करना चाहते हैं, यह कहकर अमृता फिर खिलखिला उठती है|

अरे बादलों से तो मेरा वैसे ही नजदीकी रिश्ता है, मेरा एक दोस्त मौसम विज्ञान विभाग मे जो है, साधना भी अमृता की तरह ही खिलखिला रही थी बारिश की फुहार को अपने चेहरे पर महसूस करते हुये |

 

- लवकुश कुमार


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जीवन एक यात्रा - सौम्या गुप्ता

जिंद‌गी एक कारवाँ है,

इसमें लोग जुड़ते हैं,

इससे लोग कटते है।

 

माता-पिता, शिक्षक, दोस्त,

हमसफर इसका हिस्सा हैं 

पर वक्त का तकाजा

कभी इन्हें दूर

तो कभी पास लाता है।

 

पर हमें चलना होता है

और लोग जुड़ें  या ना जुड़ें 

हमें आगे बढ़ना होता है

 

कभी किसी साथी के संग

कभी अकेले खुद के हमराही बन

अपनी मंजिल तक पहुंचना होता है।

 

-सौम्या गुप्ता 

सौम्या गुप्ता जी इतिहास मे परास्नातक हैं और शिक्षण का अनुभव रखने के साथ समसामयिक विषयों पर लेखन और चिंतन उनकी दिनचर्या का हिस्सा हैं |


इस कविता के माध्यम से कवयित्री क्या संदेश देना चाह रही है उसे कुछ प्रश्नों के माध्यम से आसानी से समझ सकते है :

इस कविता का मुख्य विषय क्या है?

इस कविता का मुख्य विषय जीवन है, जिसे एक कारवाँ के रूप में प्रस्तुत किया गया है। यह जीवन के सफर में लोगों के साथ आने, बिछड़ने और आगे बढ़ने के बारे में है।

कविता में 'कारवाँ' शब्द का क्या अर्थ है?

यहाँ 'कारवाँ' शब्द जीवन के सफर का प्रतीक है, जिसमें लोग एक साथ चलते हैं, कुछ जुड़ते हैं और कुछ बिछड़ते हैं। यह जीवन की निरंतरता और परिवर्तनशीलता को दर्शाता है।

वक्त का तकाजा' से क्या तात्पर्य है?

वक्त का तकाजा' समय के प्रभाव और परिवर्तनों को दर्शाता है। यह दिखाता है कि कैसे समय के साथ लोग दूर हो जाते हैं या फिर से मिल जाते हैं, और जीवन में बदलाव आते रहते हैं।

हमें आगे क्यों निकलना होता है, चाहे कारवाँ चले या न चले?

हमें आगे निकलना होता है, क्योंकि जीवन एक निरंतर प्रक्रिया है। चाहे हमारे साथ कोई हो या न हो, हमें अपने लक्ष्यों की ओर बढ़ते रहना चाहिए।

इस कविता का संदेश क्या है?

इस कविता का संदेश है कि जीवन एक सफर है, जिसमें हमें अकेले या दूसरों के साथ, आगे बढ़ते रहना चाहिए। हमें अपनी मंजिल तक पहुंचने के लिए हमेशा प्रयास करते रहना चाहिए, चाहे रास्ते में कितनी भी बाधाएं आएं।


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शिक्षक/संत/महात्मा बनाम उनके द्वारा दिया हुआ ज्ञान? एक समीक्षा

आजकल एक बात बहुतायत मे देखने को आ रही है कि समाज के ज़्यादातर वर्ग अपनी पसंद के किसी उपदेशक को इतना मान दे रहे हैं कि उसकी बे सिर पैर की अंधविश्वास फैलाने वाली बातों को भी आँख मूंदकर मान ले रहे हैं, ऐसा अमूमन किसी इंसान को उसकी बात से ज्यादा उसके होने को महत्व दे देने से है, इसमे व्यक्तिगत और सतही  स्वार्थ हो सकता है लेकिन लंबे समय अंतराल मे यह आदत इंसान की विवेचन क्षमता पर नकारात्मक असर डालने वाली साबित हो सकती है|, यह देखना हास्यपाद है कि कुछ लोग तो सत्संग मे भी जीवन की गहराई जानने और उसकी सच्चाई जानने के बजाय हँसाने वाली और मन को अच्छी लागने वाली या अहंकार पुष्ट करने वाली बात सुनने जाते हैं  


आज किसी उपदेशक की बात सही हो सकती है, कल उसकी बात अतार्किक और सतही भी हो सकती है इसीलिए किसी भी उपदेशक की बात तब ही तक सुननी और माननी है जब तक उसकी बातों मे सत्य, तर्क और व्यावहारिकता है जोकि प्राणियों की गरिमा और उन्नयन की संवाहक/सरंक्षक होती  है | 


ऐसा देखा जा रहा है कि कुछ उपदेशक सेलेब्रिटी बन जा रहे हैं, यहाँ तक तो तब भी ठीक है लेकिन वो पल चिंता पैदा करने वाला है जब ऐसा देखा जाता है कि लोगों को लगता है कि अमुक उपदेशक को अगर सामने से देख लिया तो जीवन बन जाएगा और वो उसके भक्त बन जा रहे हैं, मुझे व्यक्तिगत रूप से यही लगता है कि अगर कोई तार्किक उपदेशक मिल गया है तो उसके प्रवचन सुनकर खुद को और तार्किक व समझदार बनाओ उनकी बातों को जीवन मे प्रयुक्त करो लेकिन अच्छे से टटोलकर क्योंकि अच्छा लगना और वास्तव मे अच्छा होना, दोनों मे अंतर है और तो ये तो कभी न सोंचो कि अमुक उपदेशक के सामने बैठ जाने से सब दुख दूर हो जाएंगे या कोई चमत्कार हो जाएगा|


संयोग होते हैं सुखद भी और दुखद भी, आपके जीवन मे भी हो सकते हैं, मानसिक रूप से तैयार रहिए सामना करने को, इस दुनिया मे बहुत कम चीज़ें हैं जिनका आप श्रेय ले सकते हैं या जिन्हे आप नियंत्रित कर सकते हैं |


सच्चाई का जीवन जीना है और सच्चाई की कमाई पर ही निर्वाह करना है, शरीर स्वस्थ रहे इसके प्रयास करने हैं और चेतना उठती रहे इसके लिए नियमित अध्ययन करना है, खुद की काबिलियत बढ़ाते हुये खुद को रचनात्मक कार्यों मे लगते हुये बिना डर औए बिना लालच वाला जीवन जीना है, फिर जो होगा देखा जाएगा ऐसा संकल्प करके चलना है"अशुभ कल्पनाएं उन्हे ही परेशान करती हैं जो यह सोंचते हैं कि सब कुछ अच्छा ही हो उनके साथ" लेकिन मेरा व्यक्तिगत रूप से मानना है हमारे बस मे आज को अच्छे से जीना है और ये संकल्प रखना कि कैसी भी परिस्थिति आ जाए सच और आत्मनिर्भरता का जीवन जीने के सारे प्रयास करने हैं हर हालत मे, "सही प्रयास अपने आपमे में ही जीत है |"  


जितने भी महान उपदेशक/शिक्षक/संत/महात्मा हुये हैं सबके उपदेश मे एक बात साझी रही है कि अपने कार्यों के केंद्र मे आत्मवलोकन, जगभलाई, आत्मनिर्भरता और सच्चाई रखिए | लेकिन होता क्या है कि हम इन महान लोगों के बताए रास्ते पर चलने के प्रयत्न करने के बजाय इनकी पूजा करने लगते हैं इस उम्मीद मे कि इनकी पूजा कर लेने भर से हमारी इच्छाएं पूरी हो जाएंगी और जिंदगी बिना किसी कष्ट के कटती रहेगी|

प्रतीकों का सम्मान जरूरी है लेकिन इसके साथ उनकी बातों को अमल मे लाने के सच्चे प्रयास भी किए जाएँ तब ही आराधना / साधना सार्थक मानी जाएगी 

 

-लवकुश कुमार 

 


इसी विषय पर इतिहास मे परास्नातक सौम्या गुप्ता जी अपनी बात और समझ कुछ इस तरह व्यक्त करती हैं:-

आज हम कई रूपों मे भगवान को पूजते हैं, जैसे- राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर, पैगम्बर मोहम्मद साहब, ईसामसीह, गुरुनानक जी, साई बाबा।

ये जितने भी गुरु या महान लोग धरती पर आए, वो ये बताने आए थे कि कैसे हम अपनी आत्मा के मूल गुणों, वित्रता , प्रेम, करुणा और आनंद आदि , इन सब को खुद में पा सकते है। लेकिन हमने क्या किया हमने मान लिया कि उनकी पूजा करनी है बस और बाकी वो ही सब करेंगे और अपनी जिम्मेदारी से पीछे हट गए।

उन्होंने हमें जो सिखाया अगर हम उस सिखाए हुए पर चलते तो आज लोग/देश सीमाओं में बंटे होते पर. धर्म, पंथ और जाति के नाम पर नहीं। पूरे विश्व में शांति होती, प्रेम, भाईचारा होता और इसी एकता का संदेश उन महान आत्माओं ने दिया था।

वो जीवन जीकर ईश्वर को पाने की कला सिखाने आए थे। हमने उन्हें भगवान माना और हमने अपने हर अच्छे-बुरे के लिए उनको ही जिम्मेदार ठहराया और अपने कर्मों/निर्णयों/प्राथमिकताओं/वृत्तियों  पर ध्यान ही नहीं दिया/अवलोकन नहीं किया |

जैसे हम भगवान की पूजा करते हैं वैसे ही अगर ज्ञान को, प्रकृति को, इंसानों की अच्छाइयों को पूजें, महान लोगों के जीवन के पदचिहनों पर चलें और वैसे ही नेक  काम करें जैसे उन महान आत्माओं ने किया तो दुनिया बेहतर, सुंदर होकर  डर, लालच और घृणा से मुक्त हो जाए |


-सौम्या गुप्ता जी इतिहास मे परास्नातक हैं और शिक्षण का अनुभव रखने के साथ समसामयिक विषयों पर लेखन और चिंतन उनकी दिनचर्या का हिस्सा हैं |

इस लेख के माध्यम से लेखिका क्या संदेश देना चाह रही है उसे कुछ प्रश्नों के माध्यम से आसानी से समझ सकते है :

इस लेख का मुख्य संदेश क्या है?

इस लेख का मुख्य संदेश यह है कि हमें उन महान गुरुओं की शिक्षाओं को याद रखना चाहिए और उनका पालन करना चाहिए। हमें ज्ञान, प्रकृति और मानवता की अच्छाइयों को महत्व देना चाहिए। हमें महान लोगों के जीवन के उदाहरणों से प्रेरित होकर अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने चाहिए।

हमें इन गुरुओं की शिक्षाओं का पालन क्यों करना चाहिए?

हमें इन गुरुओं की शिक्षाओं का पालन इसलिए करना चाहिए क्योंकि उन्होंने हमें जीवन जीने का सही तरीका सिखाया। उनकी शिक्षाएं हमें अपनी आत्मा के मूल गुणों को विकसित करने, दूसरों के प्रति अधिक दयालु होने और दुनिया में शांति और सद्भाव लाने में मदद करती हैं। वे हमें सिखाते हैं कि हमें अपने कर्मों के प्रति जिम्मेदार होना चाहिए।


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दर्शन एक कठिन विषय क्यों है? एक प्रयास इस पर स्पष्टता देने का

देश के जाने माने पूर्व प्रशासनिक सेवा अधिकारी डॉ विजय अग्रवाल सर के आज के लाइफ मैनेजमेंट के ऑडियो का सन्दर्भ लेते हुए मै इस विषय पर अपनी समझ साझा कर रहा हूँ (ऑडियो का लिंक - LM 22-09-25):

इस लेक्चर में डॉ साहब अपनी प्रिय शिष्या सौम्या जी जोकि इतिहास में परास्नातक हैं के एक प्रश्न का जवाब देते हुए कहते हैं कि जैसे हर गाना गाने वाला इंसान गायन की बारीकियों को नहीं समझता, वैसे ही हर जीने वाला शख्स, जीवन की बारीकियों को नहीं समझता, दर्शन इसीलिए एक कठिन विषय है क्योंकि जीवन एक शतरंज की बिसात की तरह है जो हर चाल के बाद बदल जाती है, ऐसे ही हमारे जीवन की परिस्थितियां बदलने से, तरीके, कदम और निर्णय बदलने पड़ सकते हैं |(सन्दर्भ के लिए ऊपर के लिंक से ऑडियो सुनें)


अब कुछ अपनी बात, मेरा व्यक्तिगत रूप से मानना है की जीवन जीने के कई तरीके  हैं ( तरीका निर्भर करता हैं  दर्शन पर माने आप जीवन को लेते कैसे हैं, कैसे देखते हैं आप जीवन को, उच्च प्राथमिकता में किस चीज़ को रखते हैं  ) अब क्योंकि आपके द्वारा जीवन को देखने का नजरिया उस वक़्त की परिस्थितियों पर भी निर्भर करता है, इसीलिए दर्शन एक कठिन विषय जान पड़ता है क्योंकि इसमें अनुभव करने का पहलू शामिल है| 


भारतीय दर्शन की दो मुख्य धाराएँ आस्तिक और नास्तिक हैं। आस्तिक दर्शनों में छह मुख्य दर्शन शामिल हैं : न्याय, वैशेषिक, सांख्य, योग, मीमांसा (पूर्वमीमांसा) और वेदान्त। वहीं, नास्तिक दर्शनों में चार्वाक, बौद्ध और जैन दर्शन प्रमुख हैं।  


जब जीवन ही कठिन जान पड़ता है तो दर्शन भी कठिन जान पड़ता है, एक कारण हो सकता है लम्बे समय से चला आ रहा झूठ, हमारे जीवन की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए डर, लालच और मोह से मुक्ति जोकि स्पष्टता (स्वयं को लेकर और इस दुनिया को लेकर ) और आत्मनिर्भरता से मिलनी है और आनंद के लिए कार्य में उत्कृष्टता, लेकिन आजकल क्या हो रहा है लोग मन बहलाने वाले सतही सुख को पाना चाहते हैं', अहंकार को पुष्ट करने को दिखावा करके लोगों से तारीफ पाना चाहते हैं और डर और असुरक्षा की भावना के चलते एक दूसरे से भेदभाव करते हैं अनैतिक तरीके से दूसरों की असुविधा और गरिमा की परवाह किये बिना बस असीमित धन और शक्ति हांसिल करना चाहते हैं, ऐसा ही होने के चलते जीवन जटिल होता जा रहा है लोगों का |


आपके स्तर पर आवश्यक चिंतन हेतु प्रस्तुत, आपकी राय  आमंत्रित है नीचे दिए गए लिंक से टाइप कर भेज दीजिये | या फिर lovekush@lovekushchetna.in पर ईमेल कर दीजिये 

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Life management ( जीवन प्रबंधन) - इस श्रेणी का एक परिचय

यह श्रेणी, मैंने डॉ विजय अग्रवाल सर से प्रेरित होकर बनायीं है, उनका कहना है की जैसे हर गाना गाने वाला इंसान गायन की बारीकियों को नहीं समझता, वैसे ही हर जीने वाला शख्स, जीवन की बारीकियों को नहीं समझता, प्रयास रहेगा की डॉक्टर साहब द्वारा जीवन प्रबंधन पर ऑडियो लेक्चर के लिंक को टॉपिक के अनुसार यहाँ उपलब्ध कराया जाये |

उदाहरण के लिए जीवन दर्शन विषय पर डॉक्टर साहब के एक कमेंट वाले ऑडियो का लिंक यहाँ दिया जा रहा है जिसमे वह अपनी एक स्टूडेंट सौम्य गुप्ता जी के सवाल का जवाब दे रहे हैं  : LM 22-09-25 

शुभकामनाएं  

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जीवन एक नदी है- सौम्या गुप्ता

जीवन एक नदी है,

इसको तुम बहने दो,

मत पकड़ो इसको मुट्ठी में,

स्वच्छंद हवा सा बहने दो।

 

नदियों की सुन्दर कल-कल हो,

ऊंचे से गिरता निर्झर हो,

रास्तें हो चाहे कंकटाकीर्ण,

जो कहता है ये कहने दो।

 

ये सोचो मत कल क्या होगा,

जो कल था वो था अच्छा,

या जो आएगा वो अच्छा होगा,

तुम आज से करके दोस्ती,

प्यारी राहों को चलने दो।

 

माना मंजिलें अभी मिली नहीं है,

हो हर पल सुकून ये जरूरी नहीं है,

पर कुछ क्षण तो खुद को ठहरने दो।

 

ये जीवन नदी है बहने दो,

जो कहता है ये कहने दो,

आज को बेहतर करो 

और खुद को खुलकर जीने दो।

 

घूमो- टहलो दुनिया देखो,

जीवन को तुम बहने दो,

 

दौड़ो- भागो मजबूत बनो,

पढ़ो लिखो और समझदार बनो,

व्यक्त करो दैवीयता को, 

और जीवन को बहने दो।

 

-सौम्या गुप्ता

बाराबंकी, उत्तर प्रदेश 

सौम्या गुप्ता जी इतिहास मे परास्नातक हैं और शिक्षण का अनुभव रखने के साथ समसामयिक विषयों पर लेखन और चिंतन उनकी दिनचर्या का हिस्सा हैं |

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अवनीश त्रिपाठी- काबिलियत बेहतर की तरफ ध्यान खींच निश्चिन्त महसूस कराने की

अवनीश भाई बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में बी.एस.सी. के दौरान मेरे साथी रहे

और आजकल भारत सरकार के एक विभाग में अपनी सेवाएँ दे रहे हैं |

अवनीश भाई की जिन बातों/ व्यवहार के लिए मै कृतज्ञ हूँ और जो बातें उन्हें मेरी नज़रों में 

खास बनाती उन्हें इस उद्देश्य के साथ यहाँ साझा कर रहा हूँ ताकि उनके जैसे ही और लोग बने और तमाम लोगों को उनके जैसे मित्र मिल सकें; 

  1.  हंसमुख - मिलते ही मुस्कुराकर हाल चाल पूछना, " और लव भाई कैसे हैं आप? " 

जब कोई आपसे मुस्कुराकर मिलता है तो इससे सन्देश जाता है की उसे आपसे मिलकर ख़ुशी हुयी 

नतीजतन आपकी सेल्फ एस्टीम बढ़ जाती है और आप खुद को महत्व का समझते हैं, अच्छा और बेहतर महसूस करते हैं और साथ ही  ये भावना आपमें एक जिम्मेदारी का भाव लाती है  जिससे आप अपने काम में और बेहतर करते हैं, अपने व्यवहार को और बेहतर बनाते ताकि आप ऐसे ही लोगों के लिए समाज के लिए महत्व के बने रहें |

इसीलिए अगर आपके आस-पास मुस्कुराकर मिलने वाले लोग हैं तो आपके लिए अपने काम में मन लगाना आसान हो जाता है |

        2. किसी दिक्कत के वक़्त पूरी बात इत्मीनान से सुनना और बारीकी से विश्लेषण करके हल सुझाना -

अगर आप किसी दिक्कत में हैं और अवनीश भाई के पास पहुँच जाएँ और उन्हें अपनी दिक्कत बताएं तो पहले तो आपको पूरी बात सुनी जाएगी ताकि आप हल्का महसूस कर सकें और उसके बाद आपकी दिक्कत की जड़ का विश्लेषण होगा अपने अनुभव और समझ के आधार पर और जरुरी उपाय और मदद तुरंत या जल्द से जल्द की जाएगी |

       3. सामजिक और पेशेगत मुद्दों पर बातचीत करने वाला साथी-

जहाँ अमूमन लोग अपनी यादों में खोये रहते हैं वहां कम हैं ऐसे लोग जो अपनी दिनचर्या, अपने काम, उसकी गुणवत्ता और उसमे इनोवेशन ( नवाचार ) पर तथा सामाजिक स्थितियों की बेहतरी के लिए बात करते हों, अवनीश भाई ने हमेशा इन मुद्दों पर बात करके और जरुरी कदम उठाकर समय को सही जगह लगाने की प्रेरणा दी |

      4. मदद के लिए हमेशा हाज़िर -

अवनीश भाई के कितने ही खुद के काम पेंडिंग पड़े हों, कल किसी परीक्षा में बैठना हो लेकिन अगर आपने फ़ोन कर दिया या उनके पास पहुँच गये अपनी किसी दिक्कत या जरुरत के साथ तो फिर पहले आपकी बात सुनी जाएगी और अंतरिम हल देकर फिर बताया जायेगा की कल तो एक परीक्षा है उसके लिए पढ़ रहा हूँ, बाकि की कार्यवाही बाद के लिए .......  

      5. खुशमिजाज़ स्वभाव और मजाकिया लहजे में बड़ी बड़ी बात कह जाने की कला में माहिर -

नाराजगी तो अवनीश भाई के स्वभाव में कभी दिखी नहीं क्योंकि नाराज़गी भी वो ऐसे शब्दों में कहते हैं कि आपके पास मुस्कुराकर अपनी गलती मान लेने के अलावा कोई और विकल्प नहीं होता, उनकी बातों के सामने गुस्सा होने का सवाल ही नहीं उठता और हाँ आपने अगर टोंकने वाला काम किया है तो मीठी झिडकी देने में भी महारथ हांसिल है उन्हें , सब प्रैक्टिस और संगति की बात है , फणीश्वर नाथ रेनू की मैला आँचल  पढने का विचार उन्होंने ही दिया  |

      6. मानव मन के पारखी-

मानव मन के पारखी ऐसे कि किस इन्सान को किस दिक्कत में क्या जरुरत होगी या उसे किस तरह की बातें हल्का महसूस कराएंगी और शांतचित्त होकर दिक्कत के मूल और तीव्रता पर सम्यक विचार करने लायक बना सकें |


अवनीश भाई ने लोगों से जुड़ते वक़्त ये कभी न सोंचा कि कौन उनके क्षेत्र, जाति, भाषा का है या अन्य का निष्पक्ष इंसान का उदाहरण, इसिलिए वो भारत के किसी भी हिस्से में रहे हों, उनके आस पास के लोग उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके, सीमित संसाधनों और व्यक्तिगत संघर्षों के  बावजूद लोगों की मदद कैसे की जाती है, उनसे सीखा जा सकता है | 

"एक अच्छा दोस्त आपके अन्दर की बेहतर करने की संभावनाओ को बाहर लाता है और आपमें सतही चिंताओं से हटाकर अपनी उर्जा ठोस काम और ठोस मुद्दों पर लगाने की हिम्मत भरता है स्पष्टता देकर"

-लवकुश कुमार 

 

 

 

 

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नाम में क्या रखा है ! बात करने को ज्यादा जीवंत बनाने के सम्बन्ध में

एक दृश्य में एक शायर, अपनी शायरी पाठ के बीच में  बार-2 उस जलसे के आयोजक जोकि एक ज्ञानी इंसान थे उनका नाम ले रहा था और उनके जनहित के कार्यों को उद्धृत कर रहा था |

इसी घटना का सन्दर्भ लेते हुए क्या हम ये नहीं कर सकते कि जब किसी से बात करें तो उनका नाम लें बीच बीच में जरुरत के अनुसार, क्या होगा इससे ? इससे सामने वाले इंसान को अच्छा महसूस होगा और उसकी तरफ से बेहतर प्रतिक्रिया और बेहतर प्रदर्शन मिलेगा |

"वो फाइल उठा देना" से बेहतर है कि आप कहो कि " मोहन वो फाइल उठा देना" 

"ठीक है"  कहकर फ़ोन रखने से बेहतर है की आप कहो " ठीक है मोहन फ़ोन रखता हूँ "  या "ठीक है मोहन फ़ोन रखता हूँ फिर बात होगी " या  "ठीक है सोहन फ़ोन रखा जाये अब ? " या "ओके बाय मोहन रखता हूँ अब " |

नोट- हर किसी न किसी का कोई महत्व होता है, किसी को अपने व्यवहार से महत्वहीन न महसूस कराएँ 

हर किसी से इंटरैक्ट करना जरुरी नहीं लेकिन जिससे इंटरेक्शन कर रहें हैं कम से कम उससे बात करते वक़्त उसकी गरिमा का ध्यान रखें और उसके कार्यों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करें अगर कोई शब्द नहीं कह सकते तो एक प्यारी सी मुस्कान क्योंकि मुस्कान से हर्ष का पता चलता है और " हर्ष कृतज्ञता का सरलतम रूप है  "

-लवकुश कुमार

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