आजकल एक बात बहुतायत मे देखने को आ रही है कि समाज के ज़्यादातर वर्ग अपनी पसंद के किसी उपदेशक को इतना मान दे रहे हैं कि उसकी बे सिर पैर की अंधविश्वास फैलाने वाली बातों को भी आँख मूंदकर मान ले रहे हैं, ऐसा अमूमन किसी इंसान को उसकी बात से ज्यादा उसके होने को महत्व दे देने से है, इसमे व्यक्तिगत और सतही स्वार्थ हो सकता है लेकिन लंबे समय अंतराल मे यह आदत इंसान की विवेचन क्षमता पर नकारात्मक असर डालने वाली साबित हो सकती है|, यह देखना हास्यपाद है कि कुछ लोग तो सत्संग मे भी जीवन की गहराई जानने और उसकी सच्चाई जानने के बजाय हँसाने वाली और मन को अच्छी लागने वाली या अहंकार पुष्ट करने वाली बात सुनने जाते हैं
आज किसी उपदेशक की बात सही हो सकती है, कल उसकी बात अतार्किक और सतही भी हो सकती है इसीलिए किसी भी उपदेशक की बात तब ही तक सुननी और माननी है जब तक उसकी बातों मे सत्य, तर्क और व्यावहारिकता है जोकि प्राणियों की गरिमा और उन्नयन की संवाहक/सरंक्षक होती है |
ऐसा देखा जा रहा है कि कुछ उपदेशक सेलेब्रिटी बन जा रहे हैं, यहाँ तक तो तब भी ठीक है लेकिन वो पल चिंता पैदा करने वाला है जब ऐसा देखा जाता है कि लोगों को लगता है कि अमुक उपदेशक को अगर सामने से देख लिया तो जीवन बन जाएगा और वो उसके भक्त बन जा रहे हैं, मुझे व्यक्तिगत रूप से यही लगता है कि अगर कोई तार्किक उपदेशक मिल गया है तो उसके प्रवचन सुनकर खुद को और तार्किक व समझदार बनाओ उनकी बातों को जीवन मे प्रयुक्त करो लेकिन अच्छे से टटोलकर क्योंकि अच्छा लगना और वास्तव मे अच्छा होना, दोनों मे अंतर है और तो ये तो कभी न सोंचो कि अमुक उपदेशक के सामने बैठ जाने से सब दुख दूर हो जाएंगे या कोई चमत्कार हो जाएगा|
संयोग होते हैं सुखद भी और दुखद भी, आपके जीवन मे भी हो सकते हैं, मानसिक रूप से तैयार रहिए सामना करने को, इस दुनिया मे बहुत कम चीज़ें हैं जिनका आप श्रेय ले सकते हैं या जिन्हे आप नियंत्रित कर सकते हैं |
सच्चाई का जीवन जीना है और सच्चाई की कमाई पर ही निर्वाह करना है, शरीर स्वस्थ रहे इसके प्रयास करने हैं और चेतना उठती रहे इसके लिए नियमित अध्ययन करना है, खुद की काबिलियत बढ़ाते हुये खुद को रचनात्मक कार्यों मे लगते हुये बिना डर औए बिना लालच वाला जीवन जीना है, फिर जो होगा देखा जाएगा ऐसा संकल्प करके चलना है, "अशुभ कल्पनाएं उन्हे ही परेशान करती हैं जो यह सोंचते हैं कि सब कुछ अच्छा ही हो उनके साथ" लेकिन मेरा व्यक्तिगत रूप से मानना है हमारे बस मे आज को अच्छे से जीना है और ये संकल्प रखना कि कैसी भी परिस्थिति आ जाए सच और आत्मनिर्भरता का जीवन जीने के सारे प्रयास करने हैं हर हालत मे, "सही प्रयास अपने आपमे में ही जीत है |"
जितने भी महान उपदेशक/शिक्षक/संत/महात्मा हुये हैं सबके उपदेश मे एक बात साझी रही है कि अपने कार्यों के केंद्र मे आत्मवलोकन, जगभलाई, आत्मनिर्भरता और सच्चाई रखिए | लेकिन होता क्या है कि हम इन महान लोगों के बताए रास्ते पर चलने के प्रयत्न करने के बजाय इनकी पूजा करने लगते हैं इस उम्मीद मे कि इनकी पूजा कर लेने भर से हमारी इच्छाएं पूरी हो जाएंगी और जिंदगी बिना किसी कष्ट के कटती रहेगी|
प्रतीकों का सम्मान जरूरी है लेकिन इसके साथ उनकी बातों को अमल मे लाने के सच्चे प्रयास भी किए जाएँ तब ही आराधना / साधना सार्थक मानी जाएगी
-लवकुश कुमार
इसी विषय पर इतिहास मे परास्नातक सौम्या गुप्ता जी अपनी बात और समझ कुछ इस तरह व्यक्त करती हैं:-
आज हम कई रूपों मे भगवान को पूजते हैं, जैसे- राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर, पैगम्बर मोहम्मद साहब, ईसामसीह, गुरुनानक जी, साई बाबा।
ये जितने भी गुरु या महान लोग धरती पर आए, वो ये बताने आए थे कि कैसे हम अपनी आत्मा के मूल गुणों, पवित्रता , प्रेम, करुणा और आनंद आदि , इन सब को खुद में पा सकते है। लेकिन हमने क्या किया हमने मान लिया कि उनकी पूजा करनी है बस और बाकी वो ही सब करेंगे और अपनी जिम्मेदारी से पीछे हट गए।
उन्होंने हमें जो सिखाया अगर हम उस सिखाए हुए पर चलते तो आज लोग/देश सीमाओं में बंटे होते पर. धर्म, पंथ और जाति के नाम पर नहीं। पूरे विश्व में शांति होती, प्रेम, भाईचारा होता और इसी एकता का संदेश उन महान आत्माओं ने दिया था।
वो जीवन जीकर ईश्वर को पाने की कला सिखाने आए थे। हमने उन्हें भगवान माना और हमने अपने हर अच्छे-बुरे के लिए उनको ही जिम्मेदार ठहराया और अपने कर्मों/निर्णयों/प्राथमिकताओं/वृत्तियों पर ध्यान ही नहीं दिया/अवलोकन नहीं किया |
जैसे हम भगवान की पूजा करते हैं वैसे ही अगर ज्ञान को, प्रकृति को, इंसानों की अच्छाइयों को पूजें, महान लोगों के जीवन के पदचिहनों पर चलें और वैसे ही नेक काम करें जैसे उन महान आत्माओं ने किया तो दुनिया बेहतर, सुंदर होकर डर, लालच और घृणा से मुक्त हो जाए |
-सौम्या गुप्ता जी इतिहास मे परास्नातक हैं और शिक्षण का अनुभव रखने के साथ समसामयिक विषयों पर लेखन और चिंतन उनकी दिनचर्या का हिस्सा हैं |
इस लेख के माध्यम से लेखिका क्या संदेश देना चाह रही है उसे कुछ प्रश्नों के माध्यम से आसानी से समझ सकते है :
इस लेख का मुख्य संदेश क्या है?
इस लेख का मुख्य संदेश यह है कि हमें उन महान गुरुओं की शिक्षाओं को याद रखना चाहिए और उनका पालन करना चाहिए। हमें ज्ञान, प्रकृति और मानवता की अच्छाइयों को महत्व देना चाहिए। हमें महान लोगों के जीवन के उदाहरणों से प्रेरित होकर अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने चाहिए।
हमें इन गुरुओं की शिक्षाओं का पालन क्यों करना चाहिए?
हमें इन गुरुओं की शिक्षाओं का पालन इसलिए करना चाहिए क्योंकि उन्होंने हमें जीवन जीने का सही तरीका सिखाया। उनकी शिक्षाएं हमें अपनी आत्मा के मूल गुणों को विकसित करने, दूसरों के प्रति अधिक दयालु होने और दुनिया में शांति और सद्भाव लाने में मदद करती हैं। वे हमें सिखाते हैं कि हमें अपने कर्मों के प्रति जिम्मेदार होना चाहिए।
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