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ख़ुशी - एक लघुकथा

कितनी सोंधी खुशबू आ रही है, लंबी सी सांस खींचकर, सोंधेपन को महसूस करते हुये साधना ने कहा,

हाँ सच्ची कुछ देर पहले ही बूंदा बांदी हुई है गर्म धरती की प्यास का इलाज, खिलखिलाते हुए अमृता ने जवाब दिया जो कि इसी गांव शांतिपुरी की रहने वाली है और अपनी कॉलेज फ्रेंड साधना को स्कूटी पर अपना गांव घुमा रही है|

लो आ गया हमारा शिव मंदिर और वो रही गौला नदी, अमृता ने मुस्कुराते हुए कहा, साधना की आंखों में भी चमक थी, मंद मंद ठंडी हवा, दूर तक दिखता क्षैतिज और फिर पेड़ों की कतार, जैसे कि सोच को विस्तार देने को कह रहे हों।

दोनों मंदिर के प्रांगण में बनी सीमेंट की बेंच पर बैठ जाती हैं। अमृता पहला सवाल दागती है: और साधना तुम फोन पर कुछ कह रही थी कि बहुत कुछ नया सीख रही हो, आओ अब आमने-सामने बात करते हैं, मुझे भी सिखाओ कुछ नया और इतना कहका अमृता अपनी अमर हंसी हंस देती है खिलखिलाकर, यूं की आस पास के मुरझाते फूल भी उसकी खिलखिलाहट से ऊर्जा समेट दुबारा खिल उठने को ललक उठें|

साधना भी अपने धीर और सौम्यता से भरे स्वभाव के अनुरूप मुस्कुराकर अपनी सहेली को उसके नाम से पुकारकार उसकी खिलखिलाहट की तारीफ करने से बिना चूके सधी हुयी आवाज मे कहती है कि देख अमृता मै तुझसे कुछ ऐसा साझा करना चाहती हूँ जो लोग कभी सालों-साल नहीं जान पाते,

अब ये तो संगति और पसंद की बात है कि मुझे सही समय पर ये बातें पता चल गईं|

अरे लेखिका महोदया क्या सीख लिया, अब बताओ भी, ज्यादा न तड़पाओ, अमृता ने बीच मे टोंकते हुये कहा और फिर वही खिलखिलाहट वाली हंसी|

अरे बताती हूँ मैडम, साधना ने मुस्कुराते हुये अपनी बात फिर शुरू की: मैंने पिछले कुछ महीनों से उपनिषद् गंगा सीरियल के कई एपिसोड देखे हैं,जो कुछ मिला वो अब कहे देती हूँ;

मैंने कई बार सुना है कि खुशी, आनंद ये सब अंदर से महसूस किया जा सकता है, और अब मुझे भी बहुत से बाहरी कारण नहीं ढूँढने पड़ते, बाहर बहुत सी गड़बड़ होने पर अंदर खुशी ही रहती है। एक अद्भुत चीज जो मैंने अनुभव की कि खुशियों की मांग जब हम बाहरी चीजों से करते हैं तो खुशियाँ नहीं मिलती लेकिन अंदर से आनंदित हो तो बाहर भी सबसे प्यार, स्नेह मिलता है।

उपनिषद् गंगा स्वयं को जानने का एक बहुत अच्छा साधन है। एक एपिसोड डेली, अंदर के इतने सारे प्रश्नों के उत्तर दे सकता है, ये अकथनीय अनुभव है। मेरे बचपन के जो प्रश्न थे, वो बहुत सारे सुलझ गए।

खिलखिलाने वाली अमृता अब शांत थी और पूछती है कि कुछ खुलकर बताओगी इंटेलिजेंट लेडी, मेरा मतलब है कि बाहरी चीजों से स्थायी ख़ुशी क्यों नहीं मिलती?

ओके बताती हूँ, साधना फिर अपनी बात शुरू करती है: बाहरी चीजों से स्थायी खुशी इसलिए नहीं मिलती क्योंकि यह सतही होती है और बाहरी परिस्थितियों पर निर्भर करती है। जब हम अंदर से खुश होते हैं, तो हम अपने काम को अच्छे से अंजाम देते हैं और उत्कृष्टता पाते हैं जो अपने आप मे ही एक टिकाऊ आनंद देने वाली बात है और जब हम अंदर से आनंदित रहते हैं तो आस पास मुस्कुराकर अच्छे से पेश आते हैं नतीजा हमारे आस पास के लोगों के व्यवहार पर भी इसका प्रभाव पड़ता है और आस पास के लोगों का व्यवहार भी खुशनुमा हो जाए इसकी संभावना बढ़ जाती है और नतीजा हमें प्यार और स्नेह मिलता है।

आंतरिक खुशी आत्म-जागरूकता, संतोष और आत्म-प्रेम से आती है, जो बाहरी दुनिया से मिलने वाली क्षणिक खुशियों से कहीं अधिक स्थायी होती है।

वाह मोहतरमा वाह, क्या बात कही है तुम्हारी बात सुन बादल भी बरसकर तुम्हारा आलिंगन करना चाहते हैं, यह कहकर अमृता फिर खिलखिला उठती है|

अरे बादलों से तो मेरा वैसे ही नजदीकी रिश्ता है, मेरा एक दोस्त मौसम विज्ञान विभाग मे जो है, साधना भी अमृता की तरह ही खिलखिला रही थी बारिश की फुहार को अपने चेहरे पर महसूस करते हुये |

 

- लवकुश कुमार


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