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काम से मिलने वाला सर्वोत्तम पुरस्कार - आनंद

काम की बारीकियों को समझें, प्रक्रिया पर ध्यान दें। काम में आनंद आएगा।

काम से मिलने वाला आनंद ही काम से मिलने वाला सर्वोत्तम पुरस्कार है।

यह लेख कार्य के प्रति दृष्टिकोण पर प्रकाश डालता है, जिसमें कार्य की बारीकियों को समझना और आनंद की खोज पर जोर दिया गया है। यह सर्वोत्तम पुरस्कार के रूप में काम से मिलने वाले आनंद पर बल देता है।

 

- सौम्या गुप्ता 

बाराबंकी, उत्तर प्रदेश 


सौम्या गुप्ता जी इतिहास मे परास्नातक हैं और शिक्षण का अनुभव रखने के साथ समसामयिक विषयों पर लेखन और चिंतन उनकी दिनचर्या का हिस्सा हैं |


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काश और वर्तमान - सौम्या गुप्ता

इंसान कई बार 'काश' में फंसकर रह जाता है

इसीलिए वह उदास रह जाता है

काश ऐसा होता, काश वैसा होता

पर जो है जैसा है सिर्फ अभी है।

-सौम्या गुप्ता 

सौम्या गुप्ता जी इतिहास मे परास्नातक हैं और शिक्षण का अनुभव रखने के साथ समसामयिक विषयों पर लेखन और चिंतन उनकी दिनचर्या का हिस्सा हैं |


यह कविता  'काश' में फंसने और वर्तमान में न जीने के मानवीय स्वभाव पर प्रकाश डालती है, जिससे निराशा और दुःख की भावनाएँ उत्पन्न होती हैं।

इस कविता के माध्यम से कवयित्री क्या संदेश देना चाह रही है उसे कुछ प्रश्नों के माध्यम से आसानी से समझ सकते है :

इस काव्य का केंद्रीय विचार क्या है?

इस काव्य का केंद्रीय विचार यह है कि मनुष्य अक्सर 'काश' या 'अगर ऐसा होता' की दुनिया में खो जाते हैं, जो उन्हें वर्तमान की वास्तविकता से दूर ले जाता है, जिससे निराशा और उदासी की भावना पैदा होती है।

काव्य में 'काश' का क्या अर्थ है?

'काश' का अर्थ है 'अगर', 'यदि', या 'मैं चाहता हूँ' और यह अतीत या भविष्य की उन स्थितियों का प्रतिनिधित्व करता है जिन्हें बदला नहीं जा सकता है, जिससे व्यक्ति दुखी हो जाता है।

काव्य में उदासी का कारण क्या बताया गया है?

पाठ में उदासी का कारण 'काश' की दुनिया में फंसना और वर्तमान में न जीने को बताया गया है। जब व्यक्ति वर्तमान की सराहना करने के बजाय अतीत या भविष्य में खो जाता है, तो वह उदास हो जाता है।

हम वर्तमान में कैसे रह सकते हैं?

वर्तमान में रहने के लिए, हमें अतीत की गलतियों और भविष्य की अनिश्चितताओं के बारे में चिंता करने के बजाय, वर्तमान क्षण पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। हमें वर्तमान में जो कुछ भी है, उसकी सराहना करनी चाहिए और हर पल को जीना चाहिए।

इस काव्य का संदेश क्या है?

इस पाठ का संदेश है कि हमें वर्तमान में जीना चाहिए और 'काश' की दुनिया से बाहर निकलना चाहिए, क्योंकि यही सच्ची खुशी और संतुष्टि का मार्ग है।


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ख़ुशी - एक लघुकथा

कितनी सोंधी खुशबू आ रही है, लंबी सी सांस खींचकर, सोंधेपन को महसूस करते हुये साधना ने कहा,

हाँ सच्ची कुछ देर पहले ही बूंदा बांदी हुई है गर्म धरती की प्यास का इलाज, खिलखिलाते हुए अमृता ने जवाब दिया जो कि इसी गांव शांतिपुरी की रहने वाली है और अपनी कॉलेज फ्रेंड साधना को स्कूटी पर अपना गांव घुमा रही है|

लो आ गया हमारा शिव मंदिर और वो रही गौला नदी, अमृता ने मुस्कुराते हुए कहा, साधना की आंखों में भी चमक थी, मंद मंद ठंडी हवा, दूर तक दिखता क्षैतिज और फिर पेड़ों की कतार, जैसे कि सोच को विस्तार देने को कह रहे हों।

दोनों मंदिर के प्रांगण में बनी सीमेंट की बेंच पर बैठ जाती हैं। अमृता पहला सवाल दागती है: और साधना तुम फोन पर कुछ कह रही थी कि बहुत कुछ नया सीख रही हो, आओ अब आमने-सामने बात करते हैं, मुझे भी सिखाओ कुछ नया और इतना कहका अमृता अपनी अमर हंसी हंस देती है खिलखिलाकर, यूं की आस पास के मुरझाते फूल भी उसकी खिलखिलाहट से ऊर्जा समेट दुबारा खिल उठने को ललक उठें|

साधना भी अपने धीर और सौम्यता से भरे स्वभाव के अनुरूप मुस्कुराकर अपनी सहेली को उसके नाम से पुकारकार उसकी खिलखिलाहट की तारीफ करने से बिना चूके सधी हुयी आवाज मे कहती है कि देख अमृता मै तुझसे कुछ ऐसा साझा करना चाहती हूँ जो लोग कभी सालों-साल नहीं जान पाते,

अब ये तो संगति और पसंद की बात है कि मुझे सही समय पर ये बातें पता चल गईं|

अरे लेखिका महोदया क्या सीख लिया, अब बताओ भी, ज्यादा न तड़पाओ, अमृता ने बीच मे टोंकते हुये कहा और फिर वही खिलखिलाहट वाली हंसी|

अरे बताती हूँ मैडम, साधना ने मुस्कुराते हुये अपनी बात फिर शुरू की: मैंने पिछले कुछ महीनों से उपनिषद् गंगा सीरियल के कई एपिसोड देखे हैं,जो कुछ मिला वो अब कहे देती हूँ;

मैंने कई बार सुना है कि खुशी, आनंद ये सब अंदर से महसूस किया जा सकता है, और अब मुझे भी बहुत से बाहरी कारण नहीं ढूँढने पड़ते, बाहर बहुत सी गड़बड़ होने पर अंदर खुशी ही रहती है। एक अद्भुत चीज जो मैंने अनुभव की कि खुशियों की मांग जब हम बाहरी चीजों से करते हैं तो खुशियाँ नहीं मिलती लेकिन अंदर से आनंदित हो तो बाहर भी सबसे प्यार, स्नेह मिलता है।

उपनिषद् गंगा स्वयं को जानने का एक बहुत अच्छा साधन है। एक एपिसोड डेली, अंदर के इतने सारे प्रश्नों के उत्तर दे सकता है, ये अकथनीय अनुभव है। मेरे बचपन के जो प्रश्न थे, वो बहुत सारे सुलझ गए।

खिलखिलाने वाली अमृता अब शांत थी और पूछती है कि कुछ खुलकर बताओगी इंटेलिजेंट लेडी, मेरा मतलब है कि बाहरी चीजों से स्थायी ख़ुशी क्यों नहीं मिलती?

ओके बताती हूँ, साधना फिर अपनी बात शुरू करती है: बाहरी चीजों से स्थायी खुशी इसलिए नहीं मिलती क्योंकि यह सतही होती है और बाहरी परिस्थितियों पर निर्भर करती है। जब हम अंदर से खुश होते हैं, तो हम अपने काम को अच्छे से अंजाम देते हैं और उत्कृष्टता पाते हैं जो अपने आप मे ही एक टिकाऊ आनंद देने वाली बात है और जब हम अंदर से आनंदित रहते हैं तो आस पास मुस्कुराकर अच्छे से पेश आते हैं नतीजा हमारे आस पास के लोगों के व्यवहार पर भी इसका प्रभाव पड़ता है और आस पास के लोगों का व्यवहार भी खुशनुमा हो जाए इसकी संभावना बढ़ जाती है और नतीजा हमें प्यार और स्नेह मिलता है।

आंतरिक खुशी आत्म-जागरूकता, संतोष और आत्म-प्रेम से आती है, जो बाहरी दुनिया से मिलने वाली क्षणिक खुशियों से कहीं अधिक स्थायी होती है।

वाह मोहतरमा वाह, क्या बात कही है तुम्हारी बात सुन बादल भी बरसकर तुम्हारा आलिंगन करना चाहते हैं, यह कहकर अमृता फिर खिलखिला उठती है|

अरे बादलों से तो मेरा वैसे ही नजदीकी रिश्ता है, मेरा एक दोस्त मौसम विज्ञान विभाग मे जो है, साधना भी अमृता की तरह ही खिलखिला रही थी बारिश की फुहार को अपने चेहरे पर महसूस करते हुये |

 

- लवकुश कुमार


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अभिव्यक्ति - एक लघुकथा

अरे रंगोली, कैसी हो?, प्रेम ने अचानक बस स्टॉप पर अपनी ग्रेजुएशन की बैचमेट को देखते हुये खुश होकर आवाज देते हुये कहा|

ओ हाय... प्रेम, मै बढ़िया तुम कैसे हो ? यहाँ कैसे ? अच्छा तुम तो केंद्र सरकार के किसी विभाग मे कार्यरत हो न ? रंगोली ने भी खुशी और आश्चर्य से भरे हुये चेहरे के साथ सवालों की झड़ी लगा दी|

मै भी एकदम अच्छा हूँ, रंगोली, महत्व दर्शाने के लिए नाम ओर ज़ोर देते हुये प्रेम ने जवाब दिया, हाँ यहीं पंतनगर मे पोस्टेड हूँ, तुम यहाँ कैसे? तुम भी तो किसी प्रशासनिक कार्यालय मे हो? इधर ? कहाँ जा रही हो ?

वाउ ग्रेट, सो क्लोज़ टू ब्यूटीफुल नैनीताल !, रंगोली मुस्कुराकर जवाब देते हुये, हाँ मै भी बरेली पोस्टेड हूँ नैनीताल जा रही हूँ घूमने और तुम कहाँ जा रहे हो ?

बहुत बढ़िया, मै हल्द्वानी आया था किसी काम से, काम तो हुआ नहीं वापस जा रहा हूँ, अच्छा हुआ तुम मिल गयी हल्द्वानी आना सफल हो गया, दोनों एक साथ हंसने लगते हैं | चाय पियोगी, नैनीताल की बस अभी रुकेगी कुछ देर, प्रेम आग्रह करता है |

क्यों नहीं ! ऐसे मौके कम ही आते हैं, रंगोली ने मुस्कुराते हुये जवाब दिया| दोनों पास की एक चाय की गुमटी से चाय लेते हैं |

हल्द्वानी की ठंड के बीच कडक चाय की चुस्की के साथ रंगोली पूछती है और सुनाओ प्रेम क्या चल रहा है आजकल ?

दो ही काम, नौकरी और लेखन, सामाजिक मुद्दों, शिक्षा और भ्रष्टाचार पर, रिएक्शन की अपेक्षा करते हुये प्रेम रंगोली को देख जवाब देता है|

बढ़िया, लेकिन सरकारी सेवा मे होकर भी भ्रष्टाचार पर लिखते हो ! डर नहीं लगता है ? रंगोली आश्चर्य के साथ पूछती है|

नहीं डर किस बात का, जैसे हम अपने आस पास की हवा/मिट्टी को शुद्ध करने के लिए लिखते बोलते हैं क्योंकि वो एक जरूरी काम है वैसे ही भ्रष्टाचार पर लिखना और बात करना भी जरूरी है क्योंकि हम सब उससे प्रभावित हैं, ये किसी एक सरकार या एक देश की समस्या नहीं, ये तो समाज की समस्या है, सरकार में लोग समाज से ही आते हैं, न तो हमारे बात न करने से भ्रष्टाचार खत्म होगा और न केवल कड़ी सजा से, इसके लिए लोगों की समझ पर काम करना होगा, जो लोग बीमार होकर मर जाने या अथाह पैसे के बिना सामाजिक प्रतिष्ठा ने मिलने के डर या दबाव मे रहते हैं या जो जीवन की अनिश्चितता के सत्य को स्वीकार नहीं करना चाहते वही डर और लालच मे भ्रष्ट आचरण करते हैं, मै फिर दोहराता हूँ ये केवल सरकार की नहीं समाज की और मानव मन की समस्या है |  जो इंसान मन से उत्पीड़क है, अज्ञानी है वो हिंसक भी होगा और भ्रष्टाचारी भी, फिर वो न धरती की परवाह करेगा न पानी, पेड़ और इंसान की |

रही बात सरकारी सेवा मे होने की तो इससे मेरी अभिव्यक्ति की आज़ादी नहीं जाती, समाज के हित मे जरूरी मुद्दों पर विचार और राय व्यक्त करना हर जिम्मेदार नागरिक का कर्तव्य है, बशर्ते इससे आपके कार्यालयी कार्य/दायित्व प्रभावित न हो, और फिर मेरी शिक्षा और चेतना मुझे इस बदलते हुये समाज के सामने मूक दर्शक बने रहने या लोगों की प्रतिक्रिया से डरकर अपनी बात न रखने की सीख नहीं देती |

प्रेम की गहरी बातें सुन, रंगोली अपनी समझ पर पुनर्विचार करने को विवश हो जाती है|

हॉर्न बजता है, बस चलने को तैयार हो चुकी थी, दोनों दोस्त बेहतर स्पष्टता की खातिर आगे की चर्चा और संपर्क के लिए अपने मोबाइल नंबर साझा करते हैं..............

 

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जीवन एक यात्रा - सौम्या गुप्ता

जिंद‌गी एक कारवाँ है,

इसमें लोग जुड़ते हैं,

इससे लोग कटते है।

 

माता-पिता, शिक्षक, दोस्त,

हमसफर इसका हिस्सा हैं 

पर वक्त का तकाजा

कभी इन्हें दूर

तो कभी पास लाता है।

 

पर हमें चलना होता है

और लोग जुड़ें  या ना जुड़ें 

हमें आगे बढ़ना होता है

 

कभी किसी साथी के संग

कभी अकेले खुद के हमराही बन

अपनी मंजिल तक पहुंचना होता है।

 

-सौम्या गुप्ता 

सौम्या गुप्ता जी इतिहास मे परास्नातक हैं और शिक्षण का अनुभव रखने के साथ समसामयिक विषयों पर लेखन और चिंतन उनकी दिनचर्या का हिस्सा हैं |


इस कविता के माध्यम से कवयित्री क्या संदेश देना चाह रही है उसे कुछ प्रश्नों के माध्यम से आसानी से समझ सकते है :

इस कविता का मुख्य विषय क्या है?

इस कविता का मुख्य विषय जीवन है, जिसे एक कारवाँ के रूप में प्रस्तुत किया गया है। यह जीवन के सफर में लोगों के साथ आने, बिछड़ने और आगे बढ़ने के बारे में है।

कविता में 'कारवाँ' शब्द का क्या अर्थ है?

यहाँ 'कारवाँ' शब्द जीवन के सफर का प्रतीक है, जिसमें लोग एक साथ चलते हैं, कुछ जुड़ते हैं और कुछ बिछड़ते हैं। यह जीवन की निरंतरता और परिवर्तनशीलता को दर्शाता है।

वक्त का तकाजा' से क्या तात्पर्य है?

वक्त का तकाजा' समय के प्रभाव और परिवर्तनों को दर्शाता है। यह दिखाता है कि कैसे समय के साथ लोग दूर हो जाते हैं या फिर से मिल जाते हैं, और जीवन में बदलाव आते रहते हैं।

हमें आगे क्यों निकलना होता है, चाहे कारवाँ चले या न चले?

हमें आगे निकलना होता है, क्योंकि जीवन एक निरंतर प्रक्रिया है। चाहे हमारे साथ कोई हो या न हो, हमें अपने लक्ष्यों की ओर बढ़ते रहना चाहिए।

इस कविता का संदेश क्या है?

इस कविता का संदेश है कि जीवन एक सफर है, जिसमें हमें अकेले या दूसरों के साथ, आगे बढ़ते रहना चाहिए। हमें अपनी मंजिल तक पहुंचने के लिए हमेशा प्रयास करते रहना चाहिए, चाहे रास्ते में कितनी भी बाधाएं आएं।


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अस्तित्व - सौम्या गुप्ता 

अक्सर हम रिश्तों में उलझकर खो बैठते है खुद को और अपना अस्तित्व

खो जाते है " हम " खुद को किसी न किसी रिश्ते में छुपा कर,

मिट जाता है" मैं", रह जाता है सिर्फ रिश्ता

लेकिन

रहना चाहिए "हम" में भी एक "मैं"

अहम वाला नहीं "अस्तित्व" वाला

हर रिश्ते में देखना चाहिए खुद को भी

औरों से पहले, अपने अस्तित्व के लिए।

 

- सौम्या गुप्ता 

बाराबंकी उत्तर प्रदेश


सौम्या गुप्ता जी इतिहास मे परास्नातक हैं और शिक्षण का अनुभव रखने के साथ समसामयिक विषयों पर लेखन और चिंतन उनकी दिनचर्या का हिस्सा हैं |

इस कविता के माध्यम से कवयित्री क्या संदेश देना चाह रही है उसे कुछ प्रश्नों के माध्यम से आसानी से समझ सकते है :

 

संदेश में किस बारे में बात की गई है?

संदेश में रिश्तों के महत्व, व्यक्तिगत अस्तित्व, और दूसरों से पहले खुद को देखने की आवश्यकता पर चर्चा की गई है। यह रिश्तों में खो जाने के खतरे और अपनी पहचान को बनाए रखने के महत्व पर प्रकाश डालता है।

संदेश में 'मैं' और 'हम' का क्या अर्थ है?

'मैं' व्यक्तिगत पहचान और आत्म-सम्मान का प्रतीक है, जबकि 'हम' रिश्तों और समुदाय का प्रतीक है। संदेश 'मैं' को 'हम' के साथ संतुलित करने की बात करता है, ताकि रिश्तों में खोने के बजाय अपनी पहचान को बनाए रखा जा सके।

संदेश में 'अस्तित्व' का क्या महत्व है?

'अस्तित्व' का अर्थ है अपनी पहचान, मूल्यों और लक्ष्यों को बनाए रखना। संदेश में कहा गया है कि रिश्तों में शामिल होने के दौरान हमें अपने अस्तित्व को नहीं खोना चाहिए। दूसरों से पहले, हमें खुद को पहचानना और महत्व देना चाहिए।


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पारस्परिक सम्मान - बिना किसी शर्त के

अमूमन ऐसा देखा गया है कि किसी इंसान से कोई ग़लती या चूक हो गई या फिर कोई आंकड़ा बताने में कोई मानवीय गलती हो गई, इस पर ही कुछ लोग उस इंसान को नीचा दिखाने में लगे जाते हैं या अपमानजनक तरीके से बात करना शुरू कर देते हैं, जैसे कि बस इंतजार कर रहे हों कि अमुक इंसान से कोई ग़लती हो और इसे नीचा दिखाएं।

इससे कोई लाभ नहीं, न तो इस तरह कोई सामने वाले से कुछ अन्य चीजें जिसमें वो बेहतर है सीख सकता है और नहीं ऐसे इंसान से देशहित में या समाज हित में कोई कार्य ले सकता है।

पारस्परिक सम्मान बिना शर्त होना चाहिए, तब ही हम मिलकर कुछ बेहतर कर सकते हैं और एक दूसरे को निखारने में परस्पर सहयोग कर सकते हैं।

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जागरूकता, स्पष्टता और उत्साह के संचार के लिए "हारिए न हिम्मत" पुस्तक का वितरण

जागरूकता, स्पष्टता और उत्साह के संचार के लिए "हारिए ना हिम्मत" पुस्तिका के वितरण का कार्य मैं अपने पंतनगर में तैनाती से कर रहा हूँ और यहाँ  पिथौरागढ़ में भी अपने संपर्क में आने वाले लोगों/कर्मियों/अधिकारियों,कलाकारों और छात्रों को इसका वितरण किया हूँ ताकि वो इसे पढ़कर जीवन के मामलों में स्पष्टता हांसिल कर सकें और इस तरह खुद को  परेशान, निरोत्साहित, अधीर करने और उधेड़ बुन में डालने वालों से विचारों से मुक्त हो सकें, अपने सामाजिक रिश्तों को सही परिप्रेक्ष्य में देखकर उन्हें उचित तरीके से बेहतर रूप में निभा सकें, अपने काम और तैयारी के बीच उचित प्राथमिकता लाकर उसमे संतुलन बैठा सकें और तो और अपने आस पास, मिलने वालों को बेहतर तरीके से जीवन से जुड़े मुद्दों पर राय दे सकें |

अगर आप भी स्वयं के लिए या अपने स्वजनों को भेंट स्वरुप इस पुस्तक को देना चाहते हैं तो नीचे दिए गए लिंक से इसे  गायत्री परिवार की वेबसाइट पर इस पुस्तक को खरीद सकते हैं -

https://awgpstore.com/product?id=SC17

आपके निर्णय निर्माण के लिए इस किताब से मेरी कुछ सीख साझा कर रहा हूँ ताकि आप इसके महत्व को आसानी से समझ सकें :

  1. दूसरों की निंदा करने में जितना समय हम देते हैं उतना ही अगर हम खुद की कमियां देख उन्हें ठीक करने में लगायें तो महानता की और बढ़ चलें |
  2. अध्यात्मिक चिंतन के बिना मनुष्य में विनीत भाव नहीं आता और ना उसमे अपने को सुधारने की क्षमता रह जाती है |
  3. राजनीतिक शक्ति आपके अधिकारों की रक्षा कर सकती है, पर जिस स्थान से हमारे सुख-दुःख की उत्पत्ति होती है उसका नियंत्रण राजनीतिक शक्ति नहीं कर सकती | यह कार्य अध्यात्मिक उन्नति से ही संपन्न हो सकता है |
  4. जब कोई मनुष्य अपने आपको अद्वितीय व्यक्ति समझने लगता है और अपने आपको चरित्र में सबसे श्रेष्ठ मानने लगता है, तब उसका अध्यात्मिक पतन होता है |
  5. जो व्यक्ति अपनी मानसिक शक्ति स्थिर रखना चाहते हैं, उनको दूसरों द्वारा आलोचनाओं से चिढना नहीं चाहिए |
  6. दूसरों का विश्वास तुम्हे अधिकाधिक असहाय और दुखी बनाएगा| मार्गदर्शन के लिए अपनी ही और देखो, दूसरों की और नहीं|
  7. तुम्हारी सत्यता तुम्हे दृढ बनाएगी और तुम्हारी दृढ़ता तुम्हे लक्ष्य तक लेकर जायेगी |
  8. महान व्यक्ति सदैव अकेले चले हैं और इस अकेलेपन के कारण ही वो दूर तक चले हैं| अकेले व्यक्तियों ने अपने सहारे ही संसार के महानतम कार्य संपन्न किये हैं | उन्हें एकमात्र अपनी ही प्रेरणा प्राप्त हुयी है | वे अपने ही आंतरिक सुख से सदैव प्रफुल्लित रहे हैं 
  9. जिस दिन तुम्हे अपने हाथ-पैर और दिल पर भरोसा हो जावेगा, उसी दिन तुम्हारी अंतरात्मा कहेगी की बाधाओं को कुचलकर तू अकेला चल अकेला |
  10. लोभों के झोकें, मोहों के झोंके, नामवरी के झोंके, यश के झोंके, दबाव के झोंके ऐसे हैं कि आदमी को लम्बी राह पर चलने के लिए मजबूर कर देते हैं और कहाँ से कहाँ घसीट ले जाते हैं, बचो इनसे | 

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शिक्षक/संत/महात्मा बनाम उनके द्वारा दिया हुआ ज्ञान? एक समीक्षा

आजकल एक बात बहुतायत मे देखने को आ रही है कि समाज के ज़्यादातर वर्ग अपनी पसंद के किसी उपदेशक को इतना मान दे रहे हैं कि उसकी बे सिर पैर की अंधविश्वास फैलाने वाली बातों को भी आँख मूंदकर मान ले रहे हैं, ऐसा अमूमन किसी इंसान को उसकी बात से ज्यादा उसके होने को महत्व दे देने से है, इसमे व्यक्तिगत और सतही  स्वार्थ हो सकता है लेकिन लंबे समय अंतराल मे यह आदत इंसान की विवेचन क्षमता पर नकारात्मक असर डालने वाली साबित हो सकती है|, यह देखना हास्यपाद है कि कुछ लोग तो सत्संग मे भी जीवन की गहराई जानने और उसकी सच्चाई जानने के बजाय हँसाने वाली और मन को अच्छी लागने वाली या अहंकार पुष्ट करने वाली बात सुनने जाते हैं  


आज किसी उपदेशक की बात सही हो सकती है, कल उसकी बात अतार्किक और सतही भी हो सकती है इसीलिए किसी भी उपदेशक की बात तब ही तक सुननी और माननी है जब तक उसकी बातों मे सत्य, तर्क और व्यावहारिकता है जोकि प्राणियों की गरिमा और उन्नयन की संवाहक/सरंक्षक होती  है | 


ऐसा देखा जा रहा है कि कुछ उपदेशक सेलेब्रिटी बन जा रहे हैं, यहाँ तक तो तब भी ठीक है लेकिन वो पल चिंता पैदा करने वाला है जब ऐसा देखा जाता है कि लोगों को लगता है कि अमुक उपदेशक को अगर सामने से देख लिया तो जीवन बन जाएगा और वो उसके भक्त बन जा रहे हैं, मुझे व्यक्तिगत रूप से यही लगता है कि अगर कोई तार्किक उपदेशक मिल गया है तो उसके प्रवचन सुनकर खुद को और तार्किक व समझदार बनाओ उनकी बातों को जीवन मे प्रयुक्त करो लेकिन अच्छे से टटोलकर क्योंकि अच्छा लगना और वास्तव मे अच्छा होना, दोनों मे अंतर है और तो ये तो कभी न सोंचो कि अमुक उपदेशक के सामने बैठ जाने से सब दुख दूर हो जाएंगे या कोई चमत्कार हो जाएगा|


संयोग होते हैं सुखद भी और दुखद भी, आपके जीवन मे भी हो सकते हैं, मानसिक रूप से तैयार रहिए सामना करने को, इस दुनिया मे बहुत कम चीज़ें हैं जिनका आप श्रेय ले सकते हैं या जिन्हे आप नियंत्रित कर सकते हैं |


सच्चाई का जीवन जीना है और सच्चाई की कमाई पर ही निर्वाह करना है, शरीर स्वस्थ रहे इसके प्रयास करने हैं और चेतना उठती रहे इसके लिए नियमित अध्ययन करना है, खुद की काबिलियत बढ़ाते हुये खुद को रचनात्मक कार्यों मे लगते हुये बिना डर औए बिना लालच वाला जीवन जीना है, फिर जो होगा देखा जाएगा ऐसा संकल्प करके चलना है"अशुभ कल्पनाएं उन्हे ही परेशान करती हैं जो यह सोंचते हैं कि सब कुछ अच्छा ही हो उनके साथ" लेकिन मेरा व्यक्तिगत रूप से मानना है हमारे बस मे आज को अच्छे से जीना है और ये संकल्प रखना कि कैसी भी परिस्थिति आ जाए सच और आत्मनिर्भरता का जीवन जीने के सारे प्रयास करने हैं हर हालत मे, "सही प्रयास अपने आपमे में ही जीत है |"  


जितने भी महान उपदेशक/शिक्षक/संत/महात्मा हुये हैं सबके उपदेश मे एक बात साझी रही है कि अपने कार्यों के केंद्र मे आत्मवलोकन, जगभलाई, आत्मनिर्भरता और सच्चाई रखिए | लेकिन होता क्या है कि हम इन महान लोगों के बताए रास्ते पर चलने के प्रयत्न करने के बजाय इनकी पूजा करने लगते हैं इस उम्मीद मे कि इनकी पूजा कर लेने भर से हमारी इच्छाएं पूरी हो जाएंगी और जिंदगी बिना किसी कष्ट के कटती रहेगी|

प्रतीकों का सम्मान जरूरी है लेकिन इसके साथ उनकी बातों को अमल मे लाने के सच्चे प्रयास भी किए जाएँ तब ही आराधना / साधना सार्थक मानी जाएगी 

 

-लवकुश कुमार 

 


इसी विषय पर इतिहास मे परास्नातक सौम्या गुप्ता जी अपनी बात और समझ कुछ इस तरह व्यक्त करती हैं:-

आज हम कई रूपों मे भगवान को पूजते हैं, जैसे- राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर, पैगम्बर मोहम्मद साहब, ईसामसीह, गुरुनानक जी, साई बाबा।

ये जितने भी गुरु या महान लोग धरती पर आए, वो ये बताने आए थे कि कैसे हम अपनी आत्मा के मूल गुणों, वित्रता , प्रेम, करुणा और आनंद आदि , इन सब को खुद में पा सकते है। लेकिन हमने क्या किया हमने मान लिया कि उनकी पूजा करनी है बस और बाकी वो ही सब करेंगे और अपनी जिम्मेदारी से पीछे हट गए।

उन्होंने हमें जो सिखाया अगर हम उस सिखाए हुए पर चलते तो आज लोग/देश सीमाओं में बंटे होते पर. धर्म, पंथ और जाति के नाम पर नहीं। पूरे विश्व में शांति होती, प्रेम, भाईचारा होता और इसी एकता का संदेश उन महान आत्माओं ने दिया था।

वो जीवन जीकर ईश्वर को पाने की कला सिखाने आए थे। हमने उन्हें भगवान माना और हमने अपने हर अच्छे-बुरे के लिए उनको ही जिम्मेदार ठहराया और अपने कर्मों/निर्णयों/प्राथमिकताओं/वृत्तियों  पर ध्यान ही नहीं दिया/अवलोकन नहीं किया |

जैसे हम भगवान की पूजा करते हैं वैसे ही अगर ज्ञान को, प्रकृति को, इंसानों की अच्छाइयों को पूजें, महान लोगों के जीवन के पदचिहनों पर चलें और वैसे ही नेक  काम करें जैसे उन महान आत्माओं ने किया तो दुनिया बेहतर, सुंदर होकर  डर, लालच और घृणा से मुक्त हो जाए |


-सौम्या गुप्ता जी इतिहास मे परास्नातक हैं और शिक्षण का अनुभव रखने के साथ समसामयिक विषयों पर लेखन और चिंतन उनकी दिनचर्या का हिस्सा हैं |

इस लेख के माध्यम से लेखिका क्या संदेश देना चाह रही है उसे कुछ प्रश्नों के माध्यम से आसानी से समझ सकते है :

इस लेख का मुख्य संदेश क्या है?

इस लेख का मुख्य संदेश यह है कि हमें उन महान गुरुओं की शिक्षाओं को याद रखना चाहिए और उनका पालन करना चाहिए। हमें ज्ञान, प्रकृति और मानवता की अच्छाइयों को महत्व देना चाहिए। हमें महान लोगों के जीवन के उदाहरणों से प्रेरित होकर अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने चाहिए।

हमें इन गुरुओं की शिक्षाओं का पालन क्यों करना चाहिए?

हमें इन गुरुओं की शिक्षाओं का पालन इसलिए करना चाहिए क्योंकि उन्होंने हमें जीवन जीने का सही तरीका सिखाया। उनकी शिक्षाएं हमें अपनी आत्मा के मूल गुणों को विकसित करने, दूसरों के प्रति अधिक दयालु होने और दुनिया में शांति और सद्भाव लाने में मदद करती हैं। वे हमें सिखाते हैं कि हमें अपने कर्मों के प्रति जिम्मेदार होना चाहिए।


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जीवन में कुछ अच्छा करना चाहते हैं, वाकई? लेकिन कैसे ? एक नजरिया

कई लोग मिलते हैं जो कहते हैं कि जीवन में कुछ अच्छा, कुछ बड़ा करना चाहते हैं, लेकिन जब ध्यान से देखो तो पता चलता है कि जो काम उन्होंने अपने हाँथ में ले रखा है फिल-हाल वो उसे ही अच्छे से नहीं करते क्योंकि उस काम में उनका मन नहीं लगता(क्योंकि उसे वो छोटा समझते हैं, जिम्मेदारी का भाव नदारद है ) |

मेरा मानना है कि जो भी काम हाँथ में लिया है उसे आप बेहतर से बेहतर तरीके से करके ही अपने आज को सार्थक बना सकते हो, आगे के जीवन का तो पता नहीं कि कब आपको अपने सपनो का बड़ा  और अच्छा काम करने का मौका मिले लेकिन जो काम आपने आज हाँथ में लिया है उसे तो अच्छा करिए ताकि आज का दिन सार्थक हो सके और मुझे पूरा अनुभव है की इससे आपको संतुष्टि भी मिलेगी और आगे के रास्ते खुलेंगे, उत्कृष्टता आएगी और साथ में आनंद, "जीवन आज को बेहतर से जीने में है नाकि सपने देखते रहने में", बेहतर का सपना भी देखें और प्रयास भी करें लेकिन आज के काम जिसको आपने हाँथ में ले रखा है उसे बेहतरीन तरीके और जिम्मेदारी से करें निपटाऊ नहीं, तब ही देश महानता की तरफ बढेगा जब हर कोई अपने काम को करीने से करे तब ही वो दूसरों से भी एक्स्पेक्ट कर सकता है की वो उसे अच्छी और उत्कृष्ट सेवा दे |

कुछ बड़ा कर पायें, कोई बड़ी जिम्मेदारी मिले संभालने को उससे पहले जरुरी है कि जो आपकी नज़रों में छोटे छोटे काम या जिम्मेदारियां हैं उन्हें अच्छे से निभाओ यही हैं  नीव की ईटें जिनसे भवन निर्माण का आगे का मार्ग प्रशस्त होगा, हर काम में उत्कृष्टता की चाह और प्रयास बहुत जरुरी तकनीकी और अन्य एडवांसमेंट के लिए |

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