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पथिक - सौम्या गुप्ता

है युद्ध की रण गर्जना या हाथ में मशाल है,
तू खोज रास्तों को, क्योंकि हर मुश्किल का समाधान है।

माना कि टूटी है शमशीरे,
माना रूठी है तकदीरें,
माना तेरे कोई साथ नहीं,
फिर भी कोई बात नहीं,

तू खड़ा हो जा खुद के वास्ते,
अपनी मुश्किलों के सामने लोहे की दीवार की तरह,
बेड़ियों से तू शमशीर का निर्माण कर ले,

है पथिक तू चलने का ध्यान धर ले।
गर आज गया रुक तू कि है कोई राह नहीं,
भविष्य में पछताने के सिवा रह जाएगा कुछ नहीं,

तू मंजिल तक न रुकेगा ये खुद से वादा कर ले,
मिलेगी मंजिल ये विश्वास कर ले।

-सौम्या गुप्ता 

सौम्या गुप्ता जी इतिहास मे परास्नातक हैं और शिक्षण का अनुभव रखने के साथ समसामयिक विषयों पर लेखन और चिंतन उनकी दिनचर्या का हिस्सा हैं |


इस कविता के माध्यम से कवयित्री क्या संदेश देना चाह रही है उसे कुछ प्रश्नों के माध्यम से समझ सकते है :

इस कविता का मुख्य विषय क्या है?

इस कविता का मुख्य विषय संघर्षों का सामना करना, दृढ़ संकल्प रखना और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करना है। यह हमें हार न मानने, चुनौतियों का सामना करने और खुद पर विश्वास करने के लिए प्रेरित करता है।

कविता में 'पथिक' किसे संबोधित किया गया है?

कविता में 'पथिक' एक ऐसे व्यक्ति को संबोधित किया गया है जो जीवन के मार्ग पर चल रहा है और चुनौतियों का सामना कर रहा है। यह हर उस व्यक्ति का प्रतिनिधित्व करता है जो अपने सपनों को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहा है।

कविता हमें किस तरह से प्रेरित करती है?

यह कविता हमें हार न मानने, चुनौतियों का सामना करने, खुद पर विश्वास करने और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए प्रेरित करती है। यह हमें याद दिलाती है कि सफलता के लिए दृढ़ संकल्प और आत्मविश्वास आवश्यक हैं।

कविता में 'मंजिल' का क्या अर्थ है?

कविता में 'मंजिल' का अर्थ लक्ष्य या उद्देश्य है। यह उस अंतिम स्थान का प्रतीक है जहाँ पथिक पहुँचना चाहता है, चाहे वह व्यक्तिगत सफलता हो या कोई बड़ा सपना।

इस कविता में किस भावना पर जोर दिया गया है?

इस कविता में आशा, साहस और दृढ़ संकल्प की भावना पर जोर दिया गया है। यह हमें विपरीत परिस्थितियों में भी उम्मीद रखने और आगे बढ़ते रहने के लिए प्रोत्साहित करता है।

कविता का संदेश क्या है?

कविता का संदेश है कि जीवन में आने वाली मुश्किलों से डरो मत, उनका सामना करो और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए हमेशा प्रयास करते रहो। खुद पर विश्वास रखो, और सफलता निश्चित है।


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फिर से जिंदगी को जी लेना चाहती हूं - सौम्या गुप्ता

हर रोज सोचती थी आपसे बात करू

फिर सोचा मुझे कोई क्या समझेगा

 

जिसे नहीं समझते खुद के अपने

एक अंजान सख्स उसे क्या समझेगा

 

एक बार मैंने जान देने की सोची

फिर सोचा एक बार जीने की कोशिश कर लू थोड़ी

 

फिर सोचा बात भी होगी

या पहले की तरह ही निराशा मिलेगी

 

बात हुई आपसे और जैसे जीवन के नये रास्ते बन गए

फिर से जीने के मायने मिल गए

 

अब फिर से जिंदगी को जी लेना चाहती हूं 

अब मैं हँसना हसाना चाहती हूं 

 

सदियों की जैसे कोई जड़ता टूटी

मान गयी जैसे जिंदगी रूठी

 

ममता की जैसे छाव मिल गयी

एक भटके मुसाफिर को राह मिल गयी

 

हमेशा खलती थी जो माँ की कमी

आपके कारण वह कमी भर गयी

 

हर उलझन में आप साथ होती हो

कभी कल्पनाओं में कभी विचारों मे आप दूर होकर भी पास होती हो

 

एक माँ जितना ही प्यार है मुझे आपसे

पर नहीं चाहती कुछ भी इसके बदले में आपसे

 

आज भी आपको वो पहली बार सुनना याद है

मेरे बात ना सुनने पर आपका  डांटना याद है

 

सबको साथ लेकर चलने की सीख याद है

आपका मुझे भगवान मे विश्वास दिलाना याद है

 

आपकी आवाज सुनकर मुस्कुराना और 

दिल तक पहुँचने वाली काव्य पंक्तिया याद है

 

जब भी होती हूं तन्हा तो कल्पनाओं में करती हूं आपसे बातें

हर रोज आपके बारे मे सोचने मे निकल जाती है आधी रातें

 

सुबह उठते ही पहला ख्याल आपका

आपकी प्रार्थना के बारे मे दी गयी सीख

तृषित मे लिखे सर के संघर्ष

और जीवन जीने की आपकी अद्भुत सीख

 

आपके बारे मे लिखूँ कितना, जितना लिखूँ वो कम लगता है

आपका साथ है इतना प्यारा कि अब छोटा हर गम लगता है

 

अगर हो पुनर्जन्म तो आपकी गोद चाहती हूं 

मैं सर रखकर आपकी गोद में सोना चाहती हूं 

 

मैं आपकी बेटी बनना चाहती हूं 

और आपके हिस्से की हर पीड़ा मैं खुद पर लेना चाहती हूं 

अगर कभी लगे कि आप हो तन्हा

मैं उस पल मे आपके साथ खड़ी रहना चाहती हूं 

कभी प्यार से फेरो आप मेरे सर पर हाथ

कभी आपके आँचल में  मैं सो जाना चाहती हूं।

 

इस कविता में कवयित्री ने जोकि इतिहास में परास्नातक हैं, उन लड़कियों की आवाज बनने का प्रयास किया है, जिन्हें परिस्थितिवश स्नेह नहीं मिल पाता और वे जीवन से निराश हो जाती हैं, लेकिन उम्मीद की एक किरन उनकी पसंद उन्हें किसी ऐसे इंसान से मिला देती है जिससे उन्हें ऐसा स्नेह और स्पष्टता मिलती है कि जीवन में कुछ लोकहित का करने का जरिया मिल जाता है उन्हें समझ आ जाता है कि जीवन में कितने ही अभाव क्यों न हों, मुस्कुराते हुए, खुलकर जीने और ठसक से जीने की च्वाइस हमेशा मौजूद रहती है क्योंकि ये तो च्वाइस का मामला है।

 

कवियत्री  इस बात पर जोर देती है कि अगर आपको लाइफ में कभी भी लगे कि आप अवसाद से ग्रसित है या आत्महत्या जैसे ख्याल आपके मन में आये तो आप counselor या किसी दोस्त की मदद जरूर ले और उनसे सब कुछ कहे। हमें कई बार लगता है कि दुनिया मे कोई हमें नहीं समझता लेकिन वास्तविकता में यह दुनिया बाहें फैलाए हमारा इंतजार करती है बस हम ही अपने दरवाजे को बंद कर लेते हैं और अपनी ही कल्पनाओं में जीते है। 

 

ऐसे कई जीवंत उदाहरण हैं जो अवसाद की आखिरी stage से बाहर निकले हैं 

बाहर निकालिये इस पूरी सृष्टि को आपकी बहुत जरूरत है आपसे प्रकृति जो कहें सुनिए और कीजिए।

सौम्या गुप्ता जी इतिहास मे परास्नातक हैं और शिक्षण का अनुभव रखने के साथ समसामयिक विषयों पर लेखन और चिंतन उनकी दिनचर्या का हिस्सा हैं |

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मानविकी का समाज के स्थायित्व में महत्व और इस क्षेत्र के लोगों के लिए जीविका के सीमित साधन !

मानविकी में हम कई विषयों में तरह तरह के परिप्रेक्ष्य में मानव, समाज के अंतर्संबंध, परिवर्तनों, भावों, संघर्षों, आकांक्षाओं और मानव और मानव सभ्यता के विकास को समझते हैं और इस विषय के लोग मानवीय संघर्ष या समस्याओं को सुलझाने में बेहतर साबित हो सकते हैं लेकिन दुर्भाग्यवश इनके लिए जीविका की संभावनाएं बहुत ही सीमित हैं वहीँ पर तकनीकी पृष्ठभूमि के व्यक्तियों के लिए असीमित संभावनाएं हैं जीविका की, ऐसा मेरा व्यक्तिगत मानना है, इस पर विस्तृत लेख बाद में लिखा जायेगा, आपकी राय चाहे वो भिन्न क्यों ना हो आमंत्रित है नीचे दिए गए लिंक से टाइप कर भेज दीजिये | या फिर lovekush@lovekushchetna.in पर ईमेल कर दीजिये 

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आपकी राय के इंतज़ार में

आपका

लवकुश कुमार

धन्यवाद 

 

 

 

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दूसरों की परवाह या खुद को आराम ?

अगर किसी इंसान की प्रकृति ही ऐसी है कि उसे बस अपनी सुविधा असुविधा दिखती है, दूसरों की उसे कोई परवाह नहीं है तो उसकी यह प्रकृति उसके एक-एक कार्य में दिखाई देंगी।

 

जैसे अगर वो किसी सड़क को रिपेयर करेगा तो बजडी वहीं छोड़ देगा, उसे इस बात से कोई सरोकार नहीं कि कोई वाहन उस पर फिसलकर गिर सकता है।

जैसे अगर उसके बालू खनन के डंपर चल रहे हैं तो वो ड्राइवर को पैसे नहीं देगा, उस डंपर को ढकने के लिए भले ही बालू उड़कर सड़क को गंदा करे या किसी की आंखों और फेफड़ों में जाए ‌।

 

अगर वो किसी सड़क के डिवाइडर बनाएगा तो उसमें पाइप और सरिया ऐसे ही छोड़ देगा भले ही किसी राहगीर के गिरते ही उसके सीने में घुस जाए।

 

सड़क ऐसी बनाएगा कि एक ही बरसात में ही उसमें गड्ढे बन जायें

 

स्वाद बढ़ाने के लिए मसालों में ऐसा रसायन मिला देगा कि उससे लोगों को कैंसर तक हो जाए‌।

एक दृष्टि डालते हैं खुद पर जब हमें कोई दिखता है जो लोगों के हित अहित को लेकर चिन्तित हो तो उससे हम क्या कहते हैं?

कि संयत होकर सोचो और बीच का रास्ता निकालो, जनहित को ऊपर रखो या फिर 

हम कहते हैं कि " अपना देखो दूसरों के बारे में इतना क्यों सोचना! "

हमारा जवाब क्या होगा इससे ही निर्धारित होता है कि समाज में किस तरह के लोगों की संख्या ज्यादा होगी।

 

विरोधाभास देखिए कि जो इंसान खुद दूसरों की सुविधा - असुविधा का ध्यान नहीं रखता वो भी दूसरों से अपेक्षा रखता है कि लोग उसकी सुविधा असुविधा का ध्यान रखें।

 

आप किस तरह का उदाहरण बनना चाहतें हैं?

 

किन लोगों में खुद की गिनती करवाना चाहते हैं ?

उनमें जो जो दूसरों की चिंता करते हैं और दिमाग पर जोर देकर रास्ता निकालते हैं या उनमें जो बस अपना आराम और अपना वित्तीय फायदा नुकसान देखते हैं और दूसरों की परवाह नहीं करते ?

 

जरूर विचार करिए और दूसरों से भी चर्चा करिए, समय निकालकर करिए |

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व्यवहार नहीं कार्य की गुणवत्ता, जिम्मेदारी और जवाबदेही का भाव देखिए

लोगों का आंकलन करते वक्त उनका व्यवहार नहीं उनके कार्य की गुणवत्ता, जिम्मेदारी लेनी की इच्छा और जवाबदेही का भाव देखिए।

जो इंसान कार्य के प्रति समर्पित है, संभावना है कि डेडलाइन के चलते या ज्यादा काम के चलते वो कभी-कभी अपने व्यवहार को संयत न रख पाए वहीं जो लोग कामचोर प्रवृत्ति के होते हैं, उनके लिए अपने व्यवहार को संयत रखना अपेक्षाकृत आसान होता है।

इसीलिए ये न देखिए कि कौन आपको हर त्योहार बधाई संदेश भेज रहा है या आपकी आत्मप्रशंसा की बातों में हां में हां मिला रहा है, बल्कि ये देखिए कि कौन अपने कार्यों और जिम्मेदारियों को अच्छे से पूरा कर रहा।

देश और समाज में समृद्धि और संपन्नता गुणवत्तापूर्ण और जिम्मेदारी के साथ किए गए कार्यों से आती है नकि बधाई संदेश फारवर्ड करने से।

-लवकुश कुमार 

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जिंदगी को अर्थ और एडवेंचर देना चाहते हो- एक विकल्प

जहां कहीं भी झूठ, उत्पीड़न, दबाव, लापरवाही या असंवेदनशीलता देखो, भिड़ जाओ।

 

ये है असली एडवेंचर जब आप अन्यायी लोगों से भिड़ते हो फिर कुछ जरुरी काम अपने आप होने लगते हैं:

१. आलस भाग जाएगा क्योंकि अब आपको शरीर भी मजबूत रखना है और मन भी।

२. अध्ययन में लग जाओगे क्योंकि अब बारिकियों में जाना पड़ेगा।

३. दोस्त बदल जाएंगे क्योंकि अब झूठे, सतही, मक्कार और डरपोक लोगों से दूर ही रहने का मन करेगा।

४. आवाज़ में मजबूती, दृढ़ता और संकल्प दिखेगा ।

माने जिंदगी में ठसक आ जाएगी, बस आप एक सही दिशा चुन लो जीवन के लिए। 

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सही काम और तारीफ

सही काम में लगे रहो, बिना तारीफ की आकांक्षा के क्योंकि अमूमन लोग तारीफ और समर्थन आपकी नहीं अपनी जरूरत और सहूलियत के हिसाब से करते हैं, जिस दिन आपका काम जिस इंसान को महत्व का लग जायेगा फिर उसकी तरफ से तारीफ भी होगी और समर्थन की पेशकश भी।

-लवकुश कुमार 

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सलाम क्यों और किसे ?
  • सलाम पाने के लालच में सलाम न करें।
  • सलाम उसे करें जो सच के समर्थन में खड़ा हो और दूसरों की तकलीफ़ समझने का प्रयास करता हो।
  • अपमान नहीं करना है किसी का लेकिन सलाम भी नहीं करना हर किसी को ‌।

 

 

 

 

 

 

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सियाटिका- एक लघुकथा

यही दिन देखने को रह गए थे, पोंछा नहीं लगा सकती! भारी सामान नहीं उठा सकती !, वैभव की 65 वर्षीय माता जी ने अपनी सियाटिका दर्द के चलते डाक्टर द्वारा सुझाए परहेज़ को लेकर अपनी खिन्नता व्यक्त की।

 

वैभव को पहले तो यह सुनकर तकलीफ़ हुई कि अम्मा परहेज़ नहीं करना चाहती, फिर कुछ सोचकर मुस्कुराने लगे और बोले अम्मा कुछ 2-4 काम नहीं कर सकती उसका अफसोस करने के बजाय ये सोचो कि बहुत से जरूरी काम तो अभी भी कर सकती हो‌।

 

वैभव समझ चुके थे कि अम्मा की तकलीफ़ परहेज़ नहीं, देहभाव से जुड़ा अहंकार था, जिसे अब चोट लग रही थी क्योंकि अब उनका शरीर एक स्वस्थ व्यक्ति जैसा नहीं रहा था, जबकि शरीर तो एक साधन है और कई ऐसे महत्वपूर्ण कार्य अभी भी किए जा सकते हैं जिनमें शारीरिक रूप से पूर्ण सशक्तता आवश्यक नहीं होती।

 

- लवकुश कुमार

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रूममेट - एक लघुकथा

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के ह्रदय क्षेत्र वी.टी. ( विश्वनाथ टेम्पल ) के पीछे आम के पेड़ों से घिरे हुये

आर० के० हॉस्टल के वार्डन-ऑफिस के सामने हॉल में 15-20 लड़के खड़े हैं इधर उधर,

कोई ऑफिस के गेट के पास, कोई सीढ़ी के पास तो कोई हॉस्टल गेट के पास, क्या चल रहा है ?

लोग आपस में अपने लिए एक मुफीद रूममेट की तलाश में हैं, रूम अलाटमेंट की प्रक्रिया चल रही है |

विपुल भी अपने लिए एक अच्छे रूममेट की तलाश में है जो डिस्टर्बिंग भी न हो और यदि पढाई में सहयोग कर सके

तो सोने पे सुहागा |  एक से एक लड़के हैं, कोई बात करने में एक्सपर्ट तो कोई देखने सुनने में प्रभावशाली,

कोई मजाकिया है तो कोई अति गंभीर की जैसे बोलना ही न जानते हो |

इन सब आकर्षणों/विकर्षणों के बीच विपुल अपने पुराने निर्णय को री-कंसीडर कर रहा है

क्योंकि वो तो पहले ही कानपुर में कोचिंग के वक़्त के अपने एक बैचमेट ध्रुव को

रूममेट बनने के लिए बोल चुका है, इन सब उधेड़ बुन से दूर ध्रुव शांत और निश्चिंत भाव से

अपना डोजिअर फॉर्म भरने में लगा है |

 

अंततः विपुल सारे आकर्षणों को किनारे कर ध्रुव को चुन लेता है उसकी साफगोई (साफ़ बात कहना) और मेधा के चलते|

 

 

साल दर साल आगे बढे, हॉस्टल बदले , कमरा नंबर बदले लेकिन वो दोनों एक दूसरे के रूममेट रहे |

तीन साल के कोर्स में केवल एक पेपर की क्लासेज ही उन्हें साथ करने का मौका मिला |

आखिर कोर्स पूरा होने पर रूम के दरवाजे पर दोनों की सहमती से दर्ज हुआ “ बेस्ट रूममेट ”

 

-लवकुश कुमार

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