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जानकारी 13.11.2025

जलवायु परिवर्तन से उपजे संकट से निपटने के लिए वर्ष 2015 में वैश्विक स्तर पर एक महत्वपूर्ण समझौता हुआ था। इसका मुख्य लक्ष्य वैश्विक औसत तापमान में वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करना था

- विकासशील देश इस दिशा में आगे बढ़ने का इरादा रखते हैं, लेकिन वित्तीय और तकनीकी चुनौतियां उनकी राह में रोड़े अटका रही हैं। इसके बावजूद भारत और चीन जैसे देश पेरिस समझौते के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए अपनी जिम्मेदारी निभाने की कोशिश कर रहे हैं।

- जलवायु परिवर्तन पर शुरू हुई 'संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन' की 30वीं वार्षिक बैठक में इन दोनों देशों की परिवर्तनकारी भूमिका की सराहना की गई। 

- पेरिस समझौते में तय हुआ था कि विकसित देश जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए विकासशील देशों की वित्तीय और तकनीकी रूप से मदद करेंगे। मगर संयुक्त राष्ट्र की हाल की एक रपट बताती है कि यह वित्तीय मदद लगातार घट रही है । विकासशील देशों को वर्ष 2035 तक अपने लक्ष्यों को पाने के लिए हर साल 365 अरब डालर की जरूरत है, लेकिन वर्ष 2023 में इन देशों को केवल 26 अरब डालर की अंतरराष्ट्रीय सहायता मिल पाई, जो वर्ष 2022 के 28 अरब डालर से भी कम है। 

- महाराष्ट्र के सांगली जनपद के मोहित्यांचे वडगांव (जिसे संक्षेप में वडगांव कहा जाता है) में हर शाम सात बजे भैरवनाथ मंदिर से 45 सेकंड के लिए एक सायरन ध्वनि गूंजती है, जो किसी चीनी मिल या अन्य औद्योगिक इकाई के कर्मचारियों के लिए बजने वाले सायरन से भिन्न है। यह ध्वनि दरअसल एक सूचना है कि अगले 90 मिनट (7 से 8:30 बजे तक) सभी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण- मोबाइल, टीवी इत्यादि बंद रहेंगे। दूसरा बजने वाला सायरन इस अवधि की समाप्ति की सूचना देता है। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए क्षेत्रवार समूहों का गठन किया गया है, जो हर घर जाकर इस पहल का महत्व समझाते हैं। इस 'डिजिटल कर्फ्यू' का उल्लंघन करने वालों को शुरू में चेतावनी दी जाती थी, लेकिन अब पूरा समाज इसका पालन करने का प्रयास करता है। माता-पिता भी नियम का अनुपालन करते हैं, ताकि बच्चे अकेला न अनुभव करें | इस 90 मिनट में बच्चे अध्ययन करते हैं, युवा पुस्तकें पढ़ते हैं या घर से बाहर निकलकर सामाजिक-सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग लेते हैं।

- दरअसल, कोविड-19 के संक्रमण काल में मानव व्यवहार में अप्रत्याशित परिवर्तन देखा गया। इसने 2020 से 2022 तक शिक्षा के ऑनलाइन माध्यम को अनिवार्य बना दिया, जिससे कम आयु के बच्चों और युवाओं में मोबाइल फोन के प्रयोग को लेकर एक बुरे व्यवहार ने जन्म लिया। एक सर्वेक्षण के अनुसार, 18 वर्ष से कम के आयु के 65 प्रतिशत बच्चों में फोन चलाते रहने की मानो लत पड़ गई, जो 30 मिनट से अधिक समय तक फोन से दूर रहने में असमर्थ थे।

- हमारी राष्ट्रीय और आंतरिक सुरक्षा आतंकियों के रडार पर है। वैसे, यह खतरा तो हमेशा से रहा है। हां, उसकी निरंतरता व तीव्रता ऊपर-नीचे होती रही है। कभी खतरा बढ़ गया, तो कभी कम होता प्रतीत हुआ। पिछले एक-डेढ़ साल की तेजी से बदली भू- राजनीति भी हमारे सुरक्षा बलों की परीक्षा लेती रही है। बांग्लादेश के घरेलू हालात, नेपाल के उपद्रव और पाकिस्तान परस्त आतंकी संगठनों की नई रणनीति (विशेषकर सीमा रेखा के पास बड़े आतंकी शिविरों के बजाय सुदूर इलाकों में छोटे-छोटे ठिकाने बनाना, ताकि भारतीय एजेंसियों की निगरानी से बचा जा सके) ने क्षेत्र में ऐसी अस्थिरता को जन्म दिया है, जिसमें भारत के सामने चुनौतियां बढ़ गई हैं। नतीजतन, हमने अपनी सुरक्षात्मक रणनीति भी तेजी से बदली है।


विभिन्न समाचार पत्रों और पब्लिक डोमेन में उपलब्ध रिपोर्ट्स एवं दस्तावेजों पर आधारित तथा जन जागरूकता के उद्देश्य से संकलित, संकलन कर्ता भौतिकी में परास्नातक हैं ।