यूके की आतंरिक खुफिया एजेंसी एमआई ने अपने देश के सांसदों को चीनी छद्म-नियोक्ताओं से आगाह किया है। एजेंसी को खबर मिली है कि दरअसल ये चीनी जासूस हैं, जो ब्रिटेन सहित कई बड़े देशों में सांसदों व अन्य प्रभावशाली लोगों को किसी काम के बहाने भारी राशि देते हैं और उनसे खुफिया जानकारी लेते हैं। चीन ने इसी स्कीम के तहत पिछले 20 वर्षों में जहां दुनिया के अनेक गरीब देशों को एक ट्रिलियन डॉलर (भारत के बजट से दूना) दिए हैं, वहीं अमेरिका और ब्रिटेन को भी इतना ही पैसा दिया है। लेकिन इन्हें देने का तरीका छद्म है। इस योजना के तहत चीनी बैंक पहले चीनी टेक कंपनियों को कर्ज देती है। फिर ये कंपनियां अमेरिकी टेक कंपनियों से समझौता करती हैं। ताकि उनकी टेक्नोलॉजी हासिल हो सके। शोध संस्था एड्सडाटा के अनुसार अमेरिका की कई कंपनियां इसे सामान्य व्यापारिक समझौता समझकर अपनी टेक्नोलॉजी चीनी कंपनियों से शेयर कर देती हैं, जिसके जरिए चीन अपने टेक ज्ञान को आगे संवर्धित करता है। जबकि ट्रम्प ने अमेरिकी कंपनियों को अपने बेहतरीन सेमी-कंडक्टर्स और जीपीयू को चीन को बेचने से मना किया है। लेकिन चीन मध्यम दर्जे के सेमीकंडक्टर्स के सहारे भी डीपसीक एआई बनाने में सक्षम रहा। चीनी मंसूबों से हमें भी सतर्क रहने की जरूरत है, क्योंकि चीनी चिप्स भारतीय सुरक्षा में सेंध लगा सकते हैं।- दैनिक भास्कर संपादकीय 21.11.2025
- सोलहवें वित्त आयोग ने इस सप्ताह अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी। रिपोर्ट को अब तक सार्वजनिक नहीं किया गया है, हालांकि उम्मीद है कि इसे 2026 के बजट सत्र में संसद के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा। सोलहवें वित्त आयोग की अनुशंसाएं अप्रैल 2026 से शुरू होने वाले पांच वर्ष के लिए होंगी। ये अनुशंसाएं केंद्र और राज्यों के बीच कर राजस्व के वितरण को आकार देने के अलावा विभिन्न श्रेणियों के तहत राज्यों के बीच फंड आवंटन से संबंधित होंगी
- एक संघीय ढांचे में हमेशा यह उम्मीद रहेगी कि जो राज्य पिछड़ रहे हैं उन्हें मदद पहुंचाई जाएगी और यह सुनिश्चित किया जाएगा कि अधिक समतापूर्ण विकास संभव हो सके। इसके अलावा आंकड़े दिखाते हैं कि प्रति व्यक्ति आधार पर दक्षिण भारत के राज्यों के संसाधन बेहतर हैं।
- चालू वर्ष में केरल की प्रति व्यक्ति व्यय 86,000 रुपये से अधिक है, बिहार में यह केवल 24,000 रुपये के करीब है। ध्यान देने वाली बात है कि 2020-21 और 2025-26 के बीच देश के सबसे गरीब राज्यों में प्रति व्यक्ति व्यय आय बढ़कर करीब दोगुना हो गया है। हालांकि इसका आधार कम रहा है जबकि अमीर दक्षिण भारतीय राज्यों में यह समेकित स्तर पर 59 फीसदी तक बढ़ा है।
- यद्यपि, व्यय में तेज वृद्धि आय में तेज वृद्धि में परिवर्तित नहीं हुई है। दक्षिणी राज्यों की औसत प्रति व्यक्ति आय 2009-10 में गरीब राज्यों की तुलना में 2.1 गुना थी, जो अब बढ़कर 2.8 गुना हो गई है। इससे संकेत मिलता है कि गरीब राज्यों को विकास कार्य करने में सक्षम बनाने के लिए कर बंटवारे में अधिक हिस्सेदारी आवश्यक हो सकती है, लेकिन यह तीव्र आर्थिक वृद्धि के लिए पर्याप्त नहीं है। तीव्र आर्थिक वृद्धि ही प्रति व्यक्ति आय बढ़ाकर इस अंतर को कम करने में मदद कर सकती है।
- केंद्र और राज्यों के समक्ष एक और चुनौती है। कुछ राज्यों पर बहुत अधिक ऋण है, जो विकास की संभावनाओं को प्रभावित कर सकता है। पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, 19 राज्यों में बकाया देनदारियां सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) के 30 फीसदी से अधिक हैं, जिनमें केरल भी शामिल है। पंजाब और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में यह जीएसडीपी के 40 फीसदी से भी अधिक है।
विभिन्न समाचार पत्रों और पब्लिक डोमेन में उपलब्ध रिपोर्ट्स एवं दस्तावेजों पर आधारित तथा जन जागरूकता के उद्देश्य से संकलित, संकलन कर्ता भौतिकी में परास्नातक हैं ।