क्या ये कोई ट्रेंड चल रहा है ? कि हर प्रोफेशनल रिलेशन में कई लोग व्यक्तिगत संबंध पाने की कोशिश करते हैं शायद उन्हें भ्रम है कि जो व्यक्तिगत रूप से जुड़ेगा वही उनका हित कर पायेगा, लेकिन वास्तविकता ये है कि संवेदनशील लोग सबका भला करते हैं वह उनसे व्यक्तिगत रूप से जुड़े हो या फिर व्यावसायिक रूप से जड़े हों, इसलिए बेहतर यह है कि हम अपना कार्य अच्छे से करें और अपने व्यावसायिक संबंधों को अच्छा रखें उसके बाद ही हम अपने अधिकारों पर बात करें तो उनकी सुनवाई अच्छे से होगी।
ऐसा देखा गया है कि चापलूसी प्रिय व्यक्ति लोगों के कार्यों की बजाय उनके व्यवहार और उनकी हां मे हां मिलाने की आदत पर ज्यादा ध्यान देते हैं, लेकिन यह एक गलत प्रथा है इससे गुणवत्ता प्रभावित होती है।
अगर हम अपने कार्य की गुणवत्ता और कार्य में ईमानदारी पर ध्यान देने की बजाय व्यक्तिगत रूप से लोगों को खुश करने के चक्कर में पड़ेंगे तो झूठी और सतही औपचारिकताओं, दबाव, समय की बर्बादी और धोखे का सामना करने की परिस्थिति बनाएंगे।
काम में गुणवत्ता की भावना को अपना जीवन मूल्य बनाएं।
- शुभकामनाएं
- लवकुश कुमार
लेखक भौतिकी में परास्नातक हैं और उनके लेखन का उद्देश्य समाज की उन्नति और बेहतरी के लिए अपने विचार साझा करना है ताकि उत्कृष्टता, अध्ययन और विमर्श को प्रोत्साहित कर देश और समाज के उन्नयन में अपना बेहतर योगदान दिया जा सके, साथ ही वह मानते हैं कि सामाजिक विषयों पर लेखन और चिंतन शिक्षित लोगों का दायित्व है और उन्हें दृढ़ विश्वास है कि स्पष्टता ही मजबूत कदम उठाने मे मदद करती है और इस विश्वास के साथ कि अच्छा साहित्य ही युवाओं को हर तरह से मजबूत करके देश को महाशक्ति और पूर्णतया आत्मनिर्भर बनाने मे बेहतर योगदान दे पाने मे सक्षम करेगा, वह साहित्य अध्ययन को प्रोत्साहित करने को प्रयासरत हैं,
जिस तरह बूँद-बूँद से सागर बनता है वैसे ही एक समृद्ध साहित्य कोश के लिए एक एक रचना मायने रखती है, एक लेखक/कवि की रचना आपके जीवन/अनुभवों और क्षेत्र की प्रतिनिधि है यह मददगार है उन लोगों के लिए जो इस क्षेत्र के बारे में जानना समझना चाहते हैं उनके लिए ही साहित्य के कोश को भरने का एक छोटा सा प्रयास है यह वेबसाइट ।
अगर आपके पास भी कुछ ऐसा है जो लोगों के साथ साझा करने का मन हो तो हमे लिख भेजें नीचे दिए गए लिंक से टाइप करके या फिर हाथ से लिखकर पेज का फोटो Lovekushchetna@gmail.com पर ईमेल करें।
अक्सर लोगों को बात करते सुना है कि " दान तो हम भी करते हैं लेकिन बताते नहीं फिरते या वाट्सऐप स्टेटस नही लगाते! "
आज के बदलते परिदृश्य में जब आम इंसान स्व केंद्रित होता जा रहा और उसकी व्यक्तिगत चाह और आवश्यकताएं इतनी बढ़ती जा रही हैं कि दूसरों की तकलीफ़ या सामाजिक सरोकार के कार्यों के लिए उसके लिए समय पैसा या अन्य संसाधन निकाल पाना मुश्किल होता जा रहा है, तब ऐसी हालत में किसी इंसान की व्यक्तिगत मदद में उसकी गोपनीयता का सम्मान करते हुए, अन्य संस्थागत मामलों में सामाजिक सरोकार के किए गए कार्यों का निस्वार्थ प्रचार एक निंदनीय नहीं सराहनीय कार्य है, इससे अन्य लोग प्रेरित होंगे और अपने व्यक्तिगत समस्याओं के साथ सामाजिक सरोकार के कार्यों के लिए भी प्रयत्न करेंगे, यथा: रक्तदान, श्रमदान, संस्था को वित्तीय मदद, वस्त्रदान इत्यादि।
- आरती
लेखिका संस्कृत में परास्नातक हैं और हिंदी में परास्नातक की विद्यार्थी साथ ही सामाजिक मुद्दों और राष्ट्रहित के मामलों पर चिंतन उनकी दिनचर्या की प्राथमिकताओं में शामिल है।
अगर आपके पास भी कुछ ऐसा है जो लोगों के साथ साझा करने का मन हो तो हमे लिख भेजें नीचे दिए गए लिंक से टाइप करके या फिर हाथ से लिखकर पेज का फोटो Lovekushchetna@gmail.com पर ईमेल कर दें
हाल ही में मैंने एक मूवी देखी - "धनक"
पता नहीं क्यों पर उस मूवी की शुरुआत से ही जो दिख रहा था उसे मैंने अलग तरीके से लिया।
परी उसमें मुझे ईश्वर की तरह लगती है और हम जैसा होता है उसका भाई। परी के भाई की आंखें नहीं होती और वो आँखों को पाना चाहता है, उसका आंखों को पाने का जो रास्ता है वो जिंदगी में किसी बड़े लक्ष्य को पाने का रास्ता है। जब हम जिंदगी में कुछ बड़ा पाना चाहते है तो सफर में कुछ लोग अच्छे साथी की तरह मिलते है, कुछ आगे का रास्ता बताते है कुछ उसमें बाधा भी डालते है। कुछ लोग हमें उन बाधाओं से निकालते भी है। जिससे हमारी बड़ी इच्छा पूरी हो जाए उसे हम ईश्वर जैसा मानने लगते है, इस फिल्म में शाहरुख खान अभिनीत पात्र वो ईश्वर है।
लेकिन जिंदगी में कभी कभी ठहरने का मन करता है जैसे वो शादी वाला घर था उस फिल्म में और कभी-कभी पैरों के नीचे तपती रेत हमें तेज चलने को मजबूर करती है।
उस फिल्म का हर पात्र कुछ देर में चला जाता है, ये हमें सिखाता है कि लोग सिर्फ हमें आगे के रास्ते के बारे में बताने के लिए ही आते है, पूरी जिंदगी के लिए एक स्थाई सहारा ईश्वर ही होते है, जैसे उसमें परी होती है,लेकिन कभी-कभी ईश्वर भी हमारी परीक्षा लेने के लिए हमारा साथ छोड़ देते है, जैसे उसे आंखे मिलने से पहले परी बेहोश हो जाती है और उसका छोटा भाई उसे उठाते हुए बेहोश हो जाता है, ईश्वर भी यही चाहते है कि हम अपनी आखिरी साँस तक लड़े फिर वही होगा जो सही होगा उसमें उस बच्चे को आंखें मिल जाती है, हमें हमारी सही मंजिल मिल जाएगी।
उसमें कई बार वो लड़की ऐसी जगह पहुँचती है जहां पर वो उस मुकाम को मंजिल समझ सकती थी जैसे शादी वाले घर में जब उसको और उसके भाई को हमेशा के लिए रखने की और उसकी शादी की बात होती है पर वो विनम्रता से मना कर देती है क्योंकि उसके लिए उसके भाई की आंखे ही जरूरी और पहली प्राथमिकता थी।इसी तरह से हमें जीवन में किसी मंजिल को पाने के लिए छोटे छोटे स्वार्थों को त्यागना होता है तब हम वो बड़ी चीज पाते है जिसकी हमने ज्वलंत इच्छा की थी।
- सौम्या गुप्ता
सौम्या गुप्ता जी इतिहास मे परास्नातक हैं और शिक्षण का अनुभव रखने के साथ समसामयिक विषयों पर लेखन और चिंतन उनकी दिनचर्या का हिस्सा हैं, वो अपनी समझ और लेखन कौशल से समाज में स्पष्टता, दयालुता, संवेदनशीलता और साहस को बढ़ाने के लिए प्रयासरत हैं।
अगर आपके पास भी कुछ ऐसा है जो लोगों के साथ साझा करने का मन हो तो हमे लिख भेजें नीचे दिए गए लिंक से टाइप करके या फिर हाथ से लिखकर पेज का फोटो Lovekushchetna@gmail.com पर ईमेल कर दें
"क्या हुआ बेटा! तेरी आवाज क्यों काँप-सी रही है? जल्दी से बता.. हुआ क्या...?"
"माँ वो गिर गया था सुबह-सुबह...।"
"कैसे, कहाँ गिरा, ज्यादा लगी तो नहीं? डॉक्टर को दिखाया! क्या बताया डॉक्टर ने?"
" माँ ज्यादा तो नहीं लगी, पर डॉक्टर कह रहे थे कि माइनर ऑपरेशन करना पड़ेगा। नाक में भीतरी चोट है।"
"ऑपरेशन…ऽ..ऽ...!"
"अरे मम्मा, परेशान होने वाली बात नहीं है।"
"सुन, अभी मत कराना ऑपरेशन। मैं तुरन्त चलती हूँ, शाम तक पहुँच जाऊँगी।"
प्रभु को याद करती हुई मानसी फोन रखते ही रो पड़ी। तुरन्त ही बेटे के पास जाने की तैयारी में जुट गयी हबड़-तबड़।
अभी दो साल पहले ही मिक्कू के पैरों का ऑपरेशन हुआ था| बस में बैठ वह सोचने लगी- फिर दो-तीन बार और दुर्घटना हुई और अब ये नाक पर चोट! भगवान, तू इस तरह क्यों बार-बार परीक्षा ले रहा है मुझ गरीब की! सोचते-सोचते साड़ी के पल्लू से रास्ते भर अपने आँसू पोंछती रही वह।
घर पहुँचते ही मिक्कू को साथ ले, अस्पताल पहुँची। बरामदों तक में पड़े कराहते हुए, रोते और दर्द से तड़पते हुए मरीजों और उनके तीमारदारों को देख वह भौंचक रह गयी। उसने हँसते हुए उसके साथ चल रहे मिक्कू की ओर देखा। सोचने लगी- मुझे तो काजल की लकीर-सा हल्का धब्बा ही दिया प्रभु ने। इन सब मरीजों के जीवन में तो काली रात का अँधेरा भर रखा है। तू बड़ा दयालु है भगवान, यूँ ही कृपा बनाए रखना मुझ पर।
अपने आँसू पोंछ वह मुस्कराती हुई डॉक्टर की केबिन में घुस गई।
© सविता मिश्रा 'अक्षजा'
जन्म: 1 / 6 / 73, प्रयागराज
प्रकाशित कृतियाँ: 'रोशनी के अंकुर' एवं 'टूटती मर्यादा' लघुकथा संग्रह तथा ‘सुधियों के अनुबंध’ कहानी संग्रह।
अनुवाद : 'अदहने क आखर' अवधी अनुबाद [लघुकथा-संकलन]
सम्पादन : 'खाकीधारी' 2024{लघुकथा संकलन} 'अदृश्य आँसू' 2025 {कहानी संकलन} 'किस्से खाकी के' 2025 {कहानी संकलन} 'उत्तर प्रदेश के कहानीकार' 2025 {कथाकोश}
पुरस्कार : लघुकथा/समीक्षा/कहानी/व्यंग्य / कविता विधा में कई बार पुरस्कृत |
आकाशवाणी आगरा से कहानी प्रसारित
आदरणीय लेखिका के बारे में और इनकी अन्य रचनाओं, योगदान, सम्प्रतियों के बारे में जानने के लिए यहाँ क्लिक करें|
अगर आपके पास भी कुछ ऐसा है जो लोगों के साथ साझा करने का मन हो तो हमे लिख भेजें नीचे दिए गए लिंक से टाइप करके या फिर हाथ से लिखकर पेज का फोटो Lovekushchetna@gmail.com पर ईमेल कर दें
सान्निध्य कौतूहलवश, यथार्थ तुम इतना टाइप कैसे कर लेते हो?
तुम्हारी उंगलियों में दर्द नहीं होता !
यथार्थ (अपनी टाइपिंग लाइन पूरा करते हुए)- सान्निध्य, पहली बात तो यह काम मेरी रुचि का है, मुझे आर्टिकल, लघुकथा लिखना बहुत पसंद है।
दूसरी बात, मैंने लोगों को अक्सर समाज और सरकार की बुराइयाँ करते हुए सुना है, मैं उन शिकायतों से आगे बढ़कर काम करना चाहता हूँ, इसीलिए मैं बिना खाए भी ये काम निरंतर कुछ समय तक कर सकता हूँ, क्योंकि ये काम मुझे बहुत जरूरी लगता है और इस तरह मैं लोगों में संवेदनशीलता बढ़ाने के निमित्त कुछ प्रयास कर पा रहा हू और उन जरूरी बातों की तरफ ध्यान खींच रहा हूं लोगों का जिधर ध्यान जाना चाहिए।और ये काम इतना जरूरी लगता है कि थकान भी मुझे रोक नहीं पाती।
अब सानिध्य समझ चुका था कि यथार्थ समाज और सरकार के बारे में लोगों की शिकायतों पर इसी तरह खूब काम करके प्रतिक्रिया करता है।
-लवकुश कुमार
लेखक भौतिकी में परास्नातक हैं और उनके लेखन का उद्देश्य समाज की उन्नति और बेहतरी के लिए अपने विचार साझा करना है ताकि उत्कृष्टता, अध्ययन और विमर्श को प्रोत्साहित कर देश और समाज के उन्नयन में अपना बेहतर योगदान दिया जा सके, साथ ही वह मानते हैं कि सामाजिक विषयों पर लेखन और चिंतन शिक्षित लोगों का दायित्व है और उन्हें दृढ़ विश्वास है कि स्पष्टता ही मजबूत कदम उठाने मे मदद करती है और इस विश्वास के साथ कि अच्छा साहित्य ही युवाओं को हर तरह से मजबूत करके देश को महाशक्ति और पूर्णतया आत्मनिर्भर बनाने मे बेहतर योगदान दे पाने मे सक्षम करेगा, वह साहित्य अध्ययन को प्रोत्साहित करने को प्रयासरत हैं,
जिस तरह बूँद-बूँद से सागर बनता है वैसे ही एक समृद्ध साहित्य कोश के लिए एक एक रचना मायने रखती है, एक लेखक/कवि की रचना आपके जीवन/अनुभवों और क्षेत्र की प्रतिनिधि है यह मददगार है उन लोगों के लिए जो इस क्षेत्र के बारे में जानना समझना चाहते हैं उनके लिए ही साहित्य के कोश को भरने का एक छोटा सा प्रयास है यह वेबसाइट ।
अगर आपके पास भी कुछ ऐसा है जो लोगों के साथ साझा करने का मन हो तो हमे लिख भेजें नीचे दिए गए लिंक से टाइप करके या फिर हाथ से लिखकर पेज का फोटो Lovekushchetna@gmail.com पर ईमेल करें।
आलोक और विवेक, शाम को टहलते हुए,
आलोक - यार, विवेक बहुत कहानियाँ लिखी जा रही हैं आजकल, सबको ज्ञान दे ही दोगे लग रहा, बाकी सारे काम बंद कर दिए क्या? और आलोक हंसने लगता है।
विवेक मुस्कुराते हुए- हाँ, आलोक प्रयास तो ऐसा ही है, तुम तो आलोक कहीं डाल नहीं रहे हो, इसीलिए मैं ही ऐसा करने का प्रयास कर रहा हूं। (दोनों हंसने लगते है)
आलोक - अच्छा एक बात बताओ एक दिन में कितनी कहानियाँ लिख सकते हो?
विवेक - (मुस्कुराते हुए) लिखने को तो बहुत सी लिख दूँ, जिन मुद्दों पर लिखना है उनके नाम जेहन में हैं फिर भी अन्य काम भी है और जीविका भी तो चलानी है।
बात को आगे बढ़ाते हुए संयत होकर विवेक कहता है कि लिखने को तो एक दिन में 15 कहानी लिख दूँ अगर इस काम की महत्ता को दर्शाना हो। लेकिन अच्छा प्रदर्शन भी जरूरी है। पर कुछ मोटी बुद्धि के लोग सिर्फ संख्या देखकर ही महत्व समझते है,
©लवकुश कुमार
लेखक भौतिकी में परास्नातक हैं और उनके लेखन का उद्देश्य समाज की उन्नति और बेहतरी के लिए अपने विचार साझा करना है ताकि उत्कृष्टता, अध्ययन और विमर्श को प्रोत्साहित कर देश और समाज के उन्नयन में अपना बेहतर योगदान दिया जा सके, साथ ही वह मानते हैं कि सामाजिक विषयों पर लेखन और चिंतन शिक्षित लोगों का दायित्व है और उन्हें दृढ़ विश्वास है कि स्पष्टता ही मजबूत कदम उठाने मे मदद करती है और इस विश्वास के साथ कि अच्छा साहित्य ही युवाओं को हर तरह से मजबूत करके देश को महाशक्ति और पूर्णतया आत्मनिर्भर बनाने मे बेहतर योगदान दे पाने मे सक्षम करेगा, वह साहित्य अध्ययन को प्रोत्साहित करने को प्रयासरत हैं,
जिस तरह बूँद-बूँद से सागर बनता है वैसे ही एक समृद्ध साहित्य कोश के लिए एक एक रचना मायने रखती है, एक लेखक/कवि की रचना आपके जीवन/अनुभवों और क्षेत्र की प्रतिनिधि है यह मददगार है उन लोगों के लिए जो इस क्षेत्र के बारे में जानना समझना चाहते हैं उनके लिए ही साहित्य के कोश को भरने का एक छोटा सा प्रयास है यह वेबसाइट ।
अगर आपके पास भी कुछ ऐसा है जो लोगों के साथ साझा करने का मन हो तो हमे लिख भेजें नीचे दिए गए लिंक से टाइप करके या फिर हाथ से लिखकर पेज का फोटो Lovekushchetna@gmail.com पर ईमेल करें।
"कब से लाईट गायब है? " पसीना पोंछते विनय ने चिढ़कर बन्द पड़े पंखे को देखते हुए कहा, 'चलो मोटरसाईकिल की सर्विसिंग ही करा लाता हूँ बीरबल चौक से। पर सर्विसिंग कराने जाओ तो तीन-चार घण्टे तो लग ही जाएँगे। दुकान से घर भी दूर है और मेरा मोबाइल भी खराब! कैसे होगा अब इतना टाईम पास? क्या गाड़ी छोड़कर वापस घर आऊँ और फिर जाऊँ?'
'उस दुकान के पास ही तो है न तेरे अश्विन चाचा का नया घर?' उसी समय, गई हुई बिजली वापस आ गई तो ट्यूबलाईट के साथ-साथ माँ की आँखें भी चमक उठीं, 'तेरे चचेरे भाई अनूप का! जिससे तेरी बोलचाल बन्द है। और वो भी तेरी गलतफहमी के कारण! बहुत हो गया वीनू बेटा! अब बस कर ये झगड़ा! जा, वहाँ दुकान से उन के घर हो आना।' रुका हुआ पंखा चला तो कमरे के वातावरण के साथ विनय के मन की उमस भी गायब हो गई। माँ अभी भी समझा रहीं थीं, 'अच्छा मौका है। तेरा टाईम पास हो जाएगा, गाड़ी की सर्विसिंग हो जाएगी और रिश्तों की भी!'
© संतोष सुपेकर
ईमेल- santoshsupekar29@gmail.com
संतोष सुपेकर जी, 1986 से साहित्य जगत से जुड़े हैं, सैकड़ों लघुकथाएं. कविताएँ, समीक्षाएं और लेख लिखे हैं जो समाज में संवेदना और स्पष्टता पैदा करने में सक्षम हैं, आप नियमित अखबार-स्तम्भ और पत्र-पत्रिकाओं (लोकमत समाचार, नवनीत, जनसाहित्य, नायिका नई दुनिया, तरंग नई दुनिया इत्यादि) में लिखते रहे हैं और समाज की बेहतरी हेतु साहित्य कोश में अपना योगदान सुनिश्चित करते रहे हैं |
अगर आपके पास भी कुछ ऐसा है जो लोगों के साथ साझा करने का मन हो तो हमे लिख भेजें नीचे दिए गए लिंक से टाइप करके या फिर हाथ से लिखकर पेज का फोटो Lovekushchetna@gmail.com पर ईमेल कर दें
डाक्टर विजय अग्रवाल - https://youtube.com/shorts/HEum_9kwLbE?si=hg34u0kU3R2kO43f
आचार्य प्रशांत - https://youtube.com/shorts/KQ19l1S-6j8?si=iyyGtMyzcn1ebPRu
https://youtube.com/shorts/QKGxcMuRPuc?si=Uu1fsAFbTYJDavf8
https://youtube.com/shorts/xM83JqsWeXo?si=Ff-PWBHnfW6ISl0m
https://youtube.com/shorts/_N4iLnZyb-0?si=dfhUg_AVplUZRM4B
https://youtube.com/shorts/paCaptm3uwo?si=CDVHmZ8tWfT1p3Qu
https://youtube.com/shorts/JPqEUvF2RFc?si=gNgdtOUKqXd7cLBb
https://youtube.com/shorts/9kyAXi4RUfc?si=jPwlv4eab3VEovzN
- आरती
संकलन कर्ता संस्कृत में परास्नातक हैं और हिंदी में परास्नातक की विद्यार्थी।
आपसे जुड़कर, आपके साथ काम करके मुझे सच में बहुत ही सुखद व गर्व का अनुभव होता है, दामिनी ने मुस्कुराते हुए सौम्यता के भाव के साथ कहा।
धन्यवाद, मुझे भी खुशी है एक मेहनती और नेकदिल दोस्त और उत्साही रचनाकर मिलने की, आपको क्या-२ बेहतरी महसूस हो रही है, दामिनी? उत्साह से भरे हुए प्रत्यक्ष ने उत्सुकता से पूछा।
दामिनी- मैं आपसे कितना कुछ सीखती हूं, चाहे वो लेखन के विषय में हो या गणित या जीवन का व्यावहारिक ज्ञान।
प्रत्यक्ष- दामिनी आप मुझसे सीख पायी, इसके लिए मुझे खुशी है, इसके लिए आपको खुद की संगति और पसंद पर गर्व करना चाहिए।
दामिनी- आप ऐसा क्यों कह रहे है?
प्रत्यक्ष- अगर आप डाक्टर साहब से न जुड़ी होती तो न हमें यह साझा मंच मिलता, न आप मुझसे मिल पाती, मेरी-आपकी साझा पसंद ने ही हमें मिलाया है और मेरी समझ और ज्ञान आपके काम आ रही हैं।
बिल्कुल सही, संयत आवाज और दामिनी की आंखों की चमक, उसके मन की स्पष्टता को दर्शा रहीं थीं।
©लवकुश कुमार
लेखक भौतिकी में परास्नातक हैं और उनके लेखन का उद्देश्य समाज की उन्नति और बेहतरी के लिए अपने विचार साझा करना है ताकि उत्कृष्टता, अध्ययन और विमर्श को प्रोत्साहित कर देश और समाज के उन्नयन में अपना बेहतर योगदान दिया जा सके, साथ ही वह मानते हैं कि सामाजिक विषयों पर लेखन और चिंतन शिक्षित लोगों का दायित्व है और उन्हें दृढ़ विश्वास है कि स्पष्टता ही मजबूत कदम उठाने मे मदद करती है और इस विश्वास के साथ कि अच्छा साहित्य ही युवाओं को हर तरह से मजबूत करके देश को महाशक्ति और पूर्णतया आत्मनिर्भर बनाने मे बेहतर योगदान दे पाने मे सक्षम करेगा, वह साहित्य अध्ययन को प्रोत्साहित करने को प्रयासरत हैं,
जिस तरह बूँद-बूँद से सागर बनता है वैसे ही एक समृद्ध साहित्य कोश के लिए एक एक रचना मायने रखती है, एक लेखक/कवि की रचना आपके जीवन/अनुभवों और क्षेत्र की प्रतिनिधि है यह मददगार है उन लोगों के लिए जो इस क्षेत्र के बारे में जानना समझना चाहते हैं उनके लिए ही साहित्य के कोश को भरने का एक छोटा सा प्रयास है यह वेबसाइट ।
अगर आपके पास भी कुछ ऐसा है जो लोगों के साथ साझा करने का मन हो तो हमे लिख भेजें नीचे दिए गए लिंक से टाइप करके या फिर हाथ से लिखकर पेज का फोटो Lovekushchetna@gmail.com पर ईमेल करें।
आजकल देखने मे आ रहा है की टीवी shows और अन्य माध्यमों पर अश्लीलता और भद्दे कथ्य बढ़ रहे हैं !
क्या हो सकता है इसका कारण ?
कहीं इसका कारण ये तो नहीं कि लोगों के पास बात करने के लिए बड़े मुद्दे हैं ही नहीं !, शायद आप इस पर सोंचना पसंद करें ?
बनिस्बत मुद्दे तो हैं - क्लाइमेट चेंज, अवसाद, उप्भोक्तावाद इत्यादि |
आस पास देखिये कि क्या साहित्य अध्ययन कि तरफ रुझान पहले जैसा है या घट रहा है ?
क्या लोग जीवन और स्वयं को समझने से ज्यादा इस बात को महत्व दे रहे हैं कि ज्यादा से ज्यादा पैसा कैसे इकट्ठा करें ताकि भोगना जारी रहे ?
ये कुछ सवाल हैं |