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लेह और मौसमवीर - मनीष कुमार गुप्ता

पल भर में है धूप खिली, अगले पल छाया अंधकार।
कुछ पल में ही तेज हवा, लगता है जैसे चमत्कार।।
गर्मी में यहाँ फूल खिलें, स्वर्ग सा मौसम बन जाता है।
देश विदेश के सैलानियों को ये लद्दाख बहुत भाता है।।

सर्दी में तापमापी का पारा, ऋणात्मक बीस भी जाता है।
ऊपर से तेज हवा का झोंका, कभी कभी सताता है।।
पश्चिमी विक्षोभों से अधिकतर, वर्षा और बर्फबारी है।
समुद्रतल से 3500 मीटर ऊपर कर्मभूमि हमारी है ।।

सर्दी में जम जाता आर्द्र बल्ब, गर्म पानी से उसे उठाना है।
गर्म कपड़ों में सीलबंद होकर, वेधशाला में जाना है।।
समुद्र तल से ऊँचाई पर, ताप और दाब घट जाता है।
कम ऑक्सीजन के चलते यहाँ रक्त दाब बढ़ जाता है।।

अधिक ठंड और कम आर्द्रता के संयोग का विज्ञान।
ट्रॉस हिमालय की गोद में बसा लेह लद्दाख महान।।
पर्यावरण और प्रकृति का यहाँ संगम होता निराला है।
पहाड़ों की बर्फ के परावर्तन से, होता तेज उजाला है।।

जब सूरज तेजी से चमके, ठंड का नहीं होता अहसास।
बार बार ही गला सूखता, बुझती नहीं है प्यास ।।
कम आर्द्रता के कारण, स्थिर आवेश प्रभाव दिखाता है।
किसी चीज को छूने से, यदाकदा झटका लग जाता है।।

बढ़ने लगती आर बी सी और घटने लग जाती है भूख।
कितना भी करो आप जतन, त्वचा जाती है बिल्कुल सूख ।।
जब जब सर्दी में तापमान, माइनस में चला जाता है।
बंद होता नलकूप और सीवरेज, पानी भी जम जाता है।।

बर्फ तोड़कर, आग सेक कर फिर पानी मिल पाता है।
मुश्किल है यहाँ सर्दी का जीवन, कैसे कोई सह पाता है।।
बड़े दयालु 'सोनम' सर जी, यहाँ कहलाते "मौसमपीर"।
इन्हीं के मार्गदर्शन में, रहते हैं हम सब मौसमवीर।।

​​​मनीष कुमार गुप्ता जयपुर, राजस्थान 


मनीष जी भारत सरकार के भारत मौसम विज्ञान विभाग में सेवारत हैं और लेह में अपनी सेवाएं दे चुके हैं वह अपनी कई कविताओं से मौसम विज्ञान विभाग के सफर, उसके योगदान और महत्व पर प्रकाश डाल चुके हैं।


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