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मौसम विज्ञान विभाग ( चुनौतियां, प्रयास और महत्ता ) - संजय सिंह 'अवध'

मौसम विज्ञान विभाग 

वसुधा अपना विस्तार लिए, सारे मौसम श्रृंगार किए,
कुछ गूढ़ रहस्यों से गुज़री।
कभी नभ में दिखती काली घटा, नीले सागर की नभ में छटा, गर्जन करती सहसा बिजली नभ से क्यों धरती पर उतरी?

क्यों प्यास भी प्यास से तड़पी है? उच्छवास वहां क्यों मरती है ?
क्यों दूजी और हवा शीतल? खुशियां भी हिलोरे हैं भरती |
क्यों सूर्य प्रखर और तीक्ष्ण यहां ? क्यों चंदा सा शीतल है वहां?
यहां बादल खेल रहे होली, क्यों ढूंढ रहे हैं वहां चोली? 
क्या गोल धरा है इसीलिए, या मायाजाल कोई रचती ?

हाय! विपदा है कैसी अब आई? कुछ तो ये चेताती हरजाई| जिनको था भान वो बच भी गए, बिन ज्ञान के जान कहां आई?
कहीं उठती खुशियों की तफ़री, कहीं विपदा से उठती अर्थी |

पर जीवन सारे मोल समान, 
चलते पटरी , उड़े आसमान,
चेतन के ऐसे भाव लिए,
नवयुग का मन उद्धार लिए, 
खुलते रहस्य की धार लिए, 
मानवता के प्रति बस प्यार लिए, 
विज्ञान की गंगा भगीरथ संग,
आकाश से पृथ्वी पर उतरी|

इस ज्ञान की गंगा साथ लिए ,
सारे रहस्य को साथ लिए,
तारण करने मानवता का,
बस ज्ञान की बरछी हाथ लिए,
हर खतरे का आभास लिए,
इक सेना कुरुक्षेत्र उतरी|

कुछ घाव मिले थे अभावों में,
रहते थे पांव भी छालों में 
हर मौसम का मौसम समझें,
जिज्ञासा थी मतवालों में,
"आदित्यात् जायते वृष्टिः" के कौर लिए वो थालों में,
चलते रातों में उजालों में।

अठरह सौ पचहत्र कलकत्ता,शिमला फिर पुणे से आगे
"अन्वेषण" के संस्कार लिए, वो सेना दिल्ली में ठहरी|

आकाश से धरती के मौसम, 
हर राज्य बराबर संप्रेषण, विपदा का पूर्व ही अनुमान, 
यदि नहीं तो रक्षित हो जीवन,
बस ऐसा सेवा भाव लिए,
मौसम विभाग ने भारत में कर लिया जनम |

मां जैसी सबकी बलाएं लिए, 
और बहन सा राखी कवच लिए,
हर विपदा से रक्षा करने,
मौसम विभाग ने शपथ धरी ।

- संजय सिंह 'अवध' 

ईमेल- green2main@yahoo.co.in

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उक्त मन को छूने वाली कविता के रचयिता भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण में ATC अधिकारी हैं और अपने कालेज के दिनों से ही, जैसा कि इनकी रचनाओं से घोतक है, जन जन में संवेदना, करूणा और साहस भरने के साथ अंतर्विषयक समझ द्वारा उत्कृष्टता के पथ पर युवाओं को अग्रसर करने को प्रयासरत हैं।

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