एक सुंदर और सुसज्जित विद्यालय बच्चों को आकर्षित करता है , और बच्चे जब उत्साहित मन से विद्यालय जाते हैं ,नित नया सीखने ,जानने की जिज्ञासा उत्पन्न होती है,क्योंकि
प्रोत्साहन, इंसान को उमंग से भर देता है, और इस तरह बच्चे भी प्रत्येक गतिविधि में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं।
साथ ही स्वस्थ प्रतिस्पर्धा, उत्कृष्टता और उन्नयन की राह दुरूस्त करती है।
बच्चे देश का भविष्य हैं, ये अगर शिक्षित होंगे, ज्ञानी होंगे, जुझारू होंगे और संवेदनशील भी, तब हमारे देश का भविष्य उज्जवल होगा।
इन्हीं सब बातों के परिप्रेक्ष्य में देखिए उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले में धौरहरा ब्लॉक के इस विद्यालय को जिससे जुड़े हुए शिक्षक, प्रधानाध्यापक और अधिकारी बधाई और प्रशंसा के पात्र हैं।
परीक्षाफल वितरण और अलंकरण समारोह से जुड़ी कुछ तस्वीरें, आप सबके लिए।
महसूस कीजिए सुकून और आशा को, एक उज्जवल भविष्य की आशा।
उमाशंकर जायसवाल जी ( स०अ०) का छायाचित्रों के लिए आभार और धन्यवाद।

जीवन में बहुत कुछ संयोग से मिलता है जिसका श्रेय आप नहीं ले सकते और बहुत कुछ तय प्रक्रियाओं से गुजरकर |
ऐसा हो सकता है कि किसी के जीवन की एक चूक उसे कुछ बहुत महत्व का पाने से वंचित कर दे, ऐसी अवस्था में ऐसे इंसान के द्वारा अमूमन दो तरह की प्रतिक्रियाएं होती हैं एक तो आगे बढ़कर वर्तमान में मौजूद विकल्पों पर विचार और अपनी परिस्थिति और प्राथमिकताओं के अनुसार विकल्प का चयन और दूसरा कि अपना जीवन अफ़सोस और दोषारोपण में बिताना, दूसरी तरह की प्रतिक्रिया बहुत हानिकारक है क्योंकि इस स्थिति में इंसान भूतकाल की याद में वर्तमान की अन्नंत बेहतर संभावनाओ पर ध्यान नहीं दे पाता और फिर से बार बार चूकता रहता है |
जीवन आत्मनिर्भरता, आज़ादी और गरिमा के साथ जीने और लोकसेवा में समर्पण से धन्य होता है फिर क्या फर्क पड़ता है की आपको अमुक क्षण में आपकी मनचाही वस्तु मिली या नहीं बल्कि हमारा ध्यान तो चल रहे और आने वाले हर पल की असीम संभावनाओं को तलाशने और उन्हें जरुरत अनुसार अंगीकार कर आत्मनिर्भरता, आज़ादी, गरिमा और लोकसेवा को समर्पित जीवन जीने पर होना चाहिए |
अगर हम वर्तमान की संभावनाओ के बजाय अपना ध्यान भूतकाल के नुकसान पर लगाये रखेंगे तो हो सकता है की उस पुराने नुकसान/चूक के लिए प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जिम्मेदार इंसान (वो इंसान आप स्वयं भी हो सकते हैं ) को कोसते रहें और अपने जीवन को कडवाहट से भर लें |
हमें ये याद रखना होगा की जिस पेड़ की छाया हम आज ले रहे हैं, बहुत संभावना है की वो पेड़ किसी और ने लगाया हो, एक बार आप भी समीक्षा करें की क्या आप कोई ऐसा काम कर रहें हैं जिसका लाभ ऐसे लोगों को मिल रहा है जिनसे आपका कोई रिश्ता नहीं, अगर नहीं तो मौजूद संसाधन, समय, ताकत और धन का एक हिस्सा इस काम को भी दें, जीवन में उत्कृष्टता आ जाएगी |
१०० से अधिक पुस्तकों लेखक, दिल के बेहतरीन इंसान, पूर्व राष्ट्रपति स्व - शंकर दयाल शर्मा जी के निजी सचिव रहे, रिटायर्ड आईएएस आदरणीय डॉ विजय अग्रवाल सर का साक्षात्कार नीचे दिए लिंक से जरूर देखें।
https://youtu.be/iTJrhYbM9yE?si=h7PhA9EEZAlliR8U 👈💐
शुभकामनाएं
ज्ञान अगर एक ही जगह रह जाए
तो ये ज्ञान के लिए भी खतरा है और इससे शोषण की संभावना बढ़ जाती है।
ज्ञान का प्रचार और प्रसार जितने ही ज्यादा लोगों में हो सके उतना ही उन्नति होगी समाज की।
हम दुष्परिणाम देख चुके हैं ज्ञान को कुछ लोगों तक ही सीमित रखने का।
जिनको ये डर रहता है की ज्ञान फैलने से प्रतिस्पर्धा बढ़ जाएगी उनसे मै ये कहना चाहता हूँ की प्रतिस्पर्धा जरुर बढ़ जाएगी लेकिन उससे एक चीज़ और बेहतर होगी की हमारे आस पास हर इंसान के काम में उत्कृष्टता बढ़ेगी और जीवन की तकलीफ कम होगी क्योंकि उत्कृष्टता आनंद को और निश्चिन्तता को सुनिश्चित करती है |
आसान भाषा में कहें तो, फिर एक कनिष्ठ से कनिष्ठ कार्मिक भी ज्ञानवान और इतना समझदार होगा और कि उसके द्वारा किये गये कार्यों में गलतियों की संभावना कम से कम रहेगी जो आगे चलकर हमारे मन को निश्चिंतता देगी और काम में उत्कृष्टता का उद्देश्य देकर हमारे समाज को और बेहतर बनाएगी |
किसी भी देश की यूनिवर्सिटीज़ अच्छी नहीं हो सकती अगर उस देश की संस्कृति, रुढिग्रस्त और रोगग्रस्त हो।
कैंपस के अंदर महानता तब ही विकसित होगी
जब कैंपस के बाहर या तो महान लोग हों या
कम से कम महानता के इच्छुक हों।
आपकी यूनिवर्सिटीज़ अगर top notch नहीं तो
आपकी अर्थव्यवस्था भी stagnant या dependent रहेगी।
R&D और innovation का दारोमदार यूनिवर्सिटीज पर ही है।
किसी विश्वविद्यालय में मिलने वाली सुविधाएं अलग हैं और वहां जाने का मुख्य प्रयोजन अलग, जोकि कभी भूला नहीं जाना चाहिए, सुविधाएँ सहायक हो सकती हैं , माहौल को बेहतर करने में और उत्पादकता बढ़ाने में लेकिन वहां जाने का उद्देश्य अध्ययन, विमर्श और शोध हो, न की सुविधाएँ लेना|
-लवकुश कुमार
नोट- कुछ अंश आचार्य प्रशांत के वीडियो लेक्चर से और बाकि मेरा अवलोकन है |