"आपको इतने ढेर सारे पुरस्कार, मेडल मिले हैं इस खेल में। आप पर बायोपिक बन गई।"
मैंने उस खिलाड़ी से पूछा, "अब आगे आपके क्या सपने हैं?"
"सपने!" सोचते हुए उपेक्षित खेल की वह अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी, बोली, "सपना तो एक ही दिखता है अब। काश, मैं सुंदर होती और बजाय खिलाड़ी के फिल्म एक्ट्रेस होती" बोलते हुए उसने उत्तेजना से हवा में अपना मुका तो लहराया लेकिन उसके चेहरे की चमक फीकी पड़ गई और पीछे शेल्फ में रखे, उसे मिले ढेरों स्मृति चिन्ह भी द्युतिहीन लगने लगे, "क्योंकि मुझे तो इस खेल से कुछ विशेष नहीं मिला, आज भी मामूली नौकरी करती हूँ, लेकिन मेरे खेल जीवन पर जब फिल्म बनी तो उसमें मेरा किरदार निभाने वाली अभिनेत्री ने बहुत कमा लिया।"
© संतोष सुपेकर (लघुकथा संग्रह - प्रस्वेद का स्वर से साभार )
ईमेल- santoshsupekar29@gmail.com
संतोष सुपेकर जी, 1986 से साहित्य जगत से जुड़े हैं, सैकड़ों लघुकथाएं. कविताएँ, समीक्षाएं और लेख लिखे हैं जो समाज में संवेदना और स्पष्टता पैदा करने में सक्षम हैं, आप नियमित अखबार-स्तम्भ और पत्र-पत्रिकाओं (लोकमत समाचार, नवनीत, जनसाहित्य, नायिका नई दुनिया, तरंग नई दुनिया इत्यादि) में लिखते रहे हैं और समाज की बेहतरी हेतु साहित्य कोश में अपना योगदान सुनिश्चित करते रहे हैं | (लेखक के बारे मे विस्तार से जानने के लिए यहाँ क्लिक करें )
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