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आधी आबादी ( पुनर्विचार ) - सौम्या गुप्ता

आज से कुछ समय पहले पापा और उनके मित्र धर्म, राजनीति, समाज इन सब विषयों पर कुछ बातें कर रहे थे। उसी समय मैं वहां पहुंची और मैंने एक प्रश्न का उत्तर बहुत ही शानदार तरीके से दिया और कुछ देर तक मैं उन लोगों से बात भी करती रही जिन मुद्दों पर वे लोग बात कर रहे थे। पर मेरा तरीका थोड़ा सा तर्किक और अकादमिक स्तर का था। कुछ देर बाद ही पापा के मित्रों ने मुझे वहां से जाने के लिए कह दिया और कहा कि ये बाते बच्चों को नहीं करनी चाहिए। मुझे राजनीति, धर्म, समाज, दर्शनशास्त्र इन सभी विषयों पर बात करते हुए बहुत अच्छा लगता है और मुझमें इनकी एक स्तर की समझ भी है। मैंने उस समय सोचा कि क्यों मैं इन विषयों पर बात नहीं कर सकती?

 शायद आज के समाज का एक हिस्सा लड़कियों को ऐसे मुद्दे जो पुरुषों के लिए ही समझे जाते थे उन पर लड़कियों को बात करने ही नहीं देना चाहता!

ऐसे लोगों को ये समझना चाहिए कि इस तरह वो दुनिया की आधी आबादी की विश्लेषण क्षमता और समझ का लाभ लेने से चूक रहे हैं, अगर न चूके तो दुनिया और बेहतर तथा संवेदनशील हो सकती है।

सौम्या गुप्ता 


सौम्या गुप्ता जी इतिहास मे परास्नातक हैं और शिक्षण का अनुभव रखने के साथ समसामयिक विषयों पर लेखन और चिंतन उनकी दिनचर्या का हिस्सा हैं, उनकी रचनाओं से जीवन, मानव संवेदना एवं मानव जीवन के संघर्षों की एक बेहतर समझ हांसिल की जा सकती है, वो बताती हैं कि उनकी किसी रचना से यदि कोई एक व्यक्ति भी लाभान्वित हो जाये, उसे कुछ स्पष्टता, कुछ साहस मिल जाये, या उसमे लोगों की/समाज की दिक्कतों के प्रति संवेदना जाग्रत हो जाये तो वो अपनी रचना को सफल मानेंगी, उनका विश्वास है कि समाज से पाने की कामना से बेहतर है समाज को कुछ देने के प्रयास जिससे शांति और स्वतंत्रता का दायरा बढे | 


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