यह बात भी ध्यान में रखनी होगी कि अब सेवा निर्यात के क्षेत्र में भी प्रतिस्पर्धा लगातार बढ़ रही है। ऐसी स्थिति में भारत के सेवा निर्यात में तेजी लाने के लिए सेवाओं की गुणवत्ता, दक्षता, उत्कृष्टता तथा सुरक्षा को लेकर और अधिक प्रयास करने होंगे
- अब हमें साफ्टवेयर निर्यात के लिए अमेरिकी बाजार पर निर्भरता कम करनी होगी और सेवा निर्यात की संभावनाओं वाले अन्य देशों में कदम बढ़ाने होंगे। हमें नए दौर की तकनीकी जरूरतों और उद्योग की अपेक्षाओं के अनुरूप कौशल प्रशिक्षण से नई पीढ़ी को सुसज्जित करना होगा। सेवा निर्यात बढ़ाने के लिए शोध, नवाचार और वैश्विक प्रतिस्पर्धा के मापदंडों पर आगे बढ़ना होगा। देश के कोने-कोने खासकर ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों को भी सेवा क्षेत्र से जोड़ने के प्रयास करने होंगे। उम्मीद की जानी चाहिए कि ऐसे प्रयासों से देश का सेवा क्षेत्र और सेवा निर्यात रफ्तार पकड़ेगा तथा इससे भारत को वर्ष 2027 तक दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था और वर्ष 2047 तक विकसित देश बनाने के बड़े लक्ष्य को हासिल करने में भी मदद मिलेगी।
- गतिशीलता में भी चीन आगे है। उसने इलेक्ट्रिक वाहनों पर वर्चस्व स्थापित कर लिया है। 2024 में चीन ने वैश्विक इलेक्ट्रिक कार बिक्री का लगभग दो-तिहाई हिस्सा अपने नाम किया। घरेलू बाजार में हर महीने बेची जाने वाली आधी कारें इलेक्ट्रिक हैं और दुनिया के शीर्ष 10 इलेक्ट्रिक वाहन के ब्रांडों में से छह अब चीनी हैं। चीन के वाहन अब उभरते बाजारों पर कब्जा कर रहे हैं। चीन में 100 से अधिक कंपनियां इलेक्ट्रिक वाहन बनाती हैं। एआइ के नए माडल बनाने में अब भी अमेरिका आगे है, लेकिन जब एआइ का फोकस “नवाचार” से “विस्तार” पर शिफ्ट हो रहा है, तो असली जीत सिर्फ माडल की बेंचमार्क से नहीं, बल्कि कंप्यूटर के लिए ऊर्जा, डाटा की उपलब्धता, नियामक गति और एप्लीकेशन अपनाने की दर से तय होगी।
-- ड्रोन विशेषज्ञ बाबी सकाकी के अनुसार, “डीडेआइ हर साल लाखों ड्रोन बना सकता है, जो अमेरिका की तुलना में सौ गुना अधिक है।” अमेरिका सबसे उन्नत युद्ध ड्रोन बनाता है, लेकिन उनकी कीमत 6 से 13 मिलियन डालर तक होती है। युद्ध के सिद्धांत अब सस्ते ड्रोन, मानव रहित विमान की ओर बढ़ रहे हैं, जिसमें चीन उत्कृष्ट है। इसी बीच अमेरिका के एफ-35 कार्यक्रम की कुल लागत 1.58 ट्रिलियन डालर तक पहुंच गई है, जिससे भविष्य के रक्षा निवेशों के लिए जगह घट गई है।
- वैश्विक स्तर पर बन रही इस स्थिति में प्रासंगिक बने रहने के लिए भारत को अपनी विकास रणनीति को तीन बातों पर केंद्रित करना चाहिए- बड़े पैमाने पर ऊर्जा उत्पादन, अपने घरेलू बाजार से परे निर्यात बाजार की खोज और अग्रणी तकनीक तक पहुंच। इन तीनों में चीन का वर्चस्व है। भारत की “मल्टी-अलाइनमेंट” रणनीति समझदारी भरी है, लेकिन अब गणित कहता है कि थोड़ा झुकाव जरूरी है। जहां चीन के साथ गठबंधन भारत के हित में हो, वहां वह साझेदारी करे और बाकी मुद्दों को अलग रखे। इसका अर्थ चीन के अधीन होना नहीं है, बल्कि उन विशिष्ट मुद्दों पर सहयोग है, जो भारत की राष्ट्रीय क्षमताओं को मजबूत करें।
- भारत के तटीय क्षेत्र, पारिस्थितिकी रूप से सबसे नाजुक क्षेत्रों में से हैं।
- एआई के लिए डेटा केंद्र
इन संयंत्रों की पानी की जरूरतें बहुत ज्यादा होती हैं क्योंकि इनके कूलिंग तंत्र हर साल लाखों लीटर पानी इस्तेमाल कर सकते हैं। ज्यादातर इनकी स्थापना उन क्षेत्रों में हो रही है जहां पानी की कमी है, जैसे मुंबई और चेन्नई । कुछ परिचालक अब हवा से ठंडी करने वाली या क्लोज्ड लूप सिस्टम अपना रहे हैं, लेकिन ये विकल्प अब भी सीमित हैं। कई केंद्र अब भी पानी की बहुत खपत करने वाले वाष्पीकरण कूलिंग पर निर्भर हैं। डेटा केंद्र बड़ी मात्रा में बिजली की भी खपत करते हैं। वैश्विक अनुमान बताते हैं कि वर्ष 2030 तक, वे दुनिया की 8 फीसदी तक बिजली उपयोग कर सकते हैं। भारत में, इस क्षेत्र की बढ़ती बिजली की मांग ग्रिड पर अतिरिक्त दबाव डालती है। भारत का ग्रिड अब भी काफी हद तक जीवाश्म ईंधन पर निर्भर है, जिससे कार्बन उत्सर्जन को लेकर चिंताएं बढ़ रही हैं।
- दुनिया भर की समाचार रिपोर्ट (ब्राजील, ब्रिटेन, चिली, आयरलैंड, मलेशिया, मेक्सिको, नीदरलैंड, सिंगापुर, दक्षिण अफ्रीका और स्पेन से ) यह दर्शाती हैं कि जैसे-जैसे तकनीकी कंपनियां एआई को आगे बढ़ाने के लिए डेटा सेंटर बना रही हैं, वैसे ही कमजोर समुदायों को बिजली कटौती और पानी की कमी का सामना करना पड़ा है। इन गैर-टिकाऊ पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले तरीकों को लगातार जारी रखने से रोकने के लिए, भारत को डेटा केंद्र विस्तार के हर चरण में पर्यावरणीय स्थिरता को शामिल करना होगा। इसका मतलब है कि अक्षय बिजली स्रोतों का उपयोग करना, ऊर्जा कुशल बुनियादी ढांचा अपनाना और साथ ही, अत्याधुनिक कूलिंग तथा पानी को रिसाइक्लिंग करने वाली प्रणालियां लागू करना जरूरी है।
- डिजाइन और संचालन में टिकाऊपन को शामिल कर भारत यह सुनिश्चित कर सकता है कि डेटा संचालित उसकी यह वृद्धि आर्थिक और तकनीकी लक्ष्यों का समर्थन करे और साथ ही प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण भी करे तथा कार्बन उत्सर्जन कम करे। हरित बुनियादी ढांचे पर ध्यान केंद्रित कर, कुशल जल प्रबंधन और अक्षय ऊर्जा को अपनाकर, भारत खुद को पर्यावरण के प्रति जिम्मेदार डिजिटल विकास में एक वैश्विक अगुआ के रूप में स्थापित कर सकता है।
विभिन्न समाचार पत्रों और पब्लिक डोमेन में उपलब्ध रिपोर्ट्स एवं दस्तावेजों पर आधारित तथा जन जागरूकता के उद्देश्य से संकलित, संकलन कर्ता भौतिकी में परास्नातक हैं ।