चलो जवानी की गलियों में,
बचपन की मुस्कानखोजने,
चालाकी से भरे स्वरों में,
वो मासूम ज़ुबान खोजने,
"आँखों में" खिलते सपनों से,
नींदें जो भी टूट गई थी,
चलो आज फिर उन
"नींदों में" फिर से
वही उड़ान खोजने।
- संजय सिंह 'अवध'
ईमेल- green2main@yahoo.co.in
उक्त मन को छूने वाली कविता के रचयिता भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण में ATC अधिकारी हैं और अपने कालेज के दिनों से ही, जैसा कि इनकी रचनाओं से घोतक है, जन जन में संवेदना, करूणा और साहस भरने के साथ अंतर्विषयक समझ द्वारा उत्कृष्टता के पथ पर युवाओं को अग्रसर करने को प्रयासरत हैं।
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कविता में 'ज़ुबान खोजने' का क्या अर्थ है?
'ज़ुबान खोजने' का अर्थ है, बचपन की भोली-भाली बातों और मासूमियत को वापस पाना। यह उन शब्दों और भावनाओं को खोजने की बात करता है जो हम बड़े होते हुए खो देते हैं।
इस कविता का केंद्रीय विचार क्या है?
इस कविता का केंद्रीय विचार जीवन के सफर में बचपन की यादों को संजोना, सपनों को पुनर्जीवित करना और फिर से उड़ान भरने की प्रेरणा लेना है।
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