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आधार(लघुकथा) - लवकुश कुमार

सजग (चाय की चुस्कियाँ लेते हुए) - प्रतिभा, मुझे तुमसे कुछ पूछना है।

प्रतिभा - हाँ सजग, पूछिए आपको क्या पूछना है?

सजग - मुझे कभी-2 यह डर लगता है कि हमारी दोस्ती कब तक चलेगी या चलेगी भी या नहीं?

प्रतिभा - आप ऐसा क्यों सोचते हैं जब तक हम एक-दूसरे की प्रगति, स्वतंत्रता व स्पष्टता में सहायक रहेंगे, यह दोस्ती चलती रहेगी। किसी एक का साथ भी अगर दूसरे की प्रगति में सहायक होगा तो हमारी दोस्ती बनी रहेगी। एक मित्र की उन्नति होगी तो वो दूसरे मित्र को भी तो आगे बढ़ाएगा।

सजग - धन्यवाद प्रतिभा इस स्पष्टता के लिए।

©लवकुश कुमार


लेखक भौतिकी में परास्नातक हैं और उनके लेखन का उद्देश्य समाज की उन्नति और बेहतरी के लिए अपने विचार साझा करना है ताकि उत्कृष्टता, अध्ययन और विमर्श को प्रोत्साहित कर देश और समाज के उन्नयन में अपना बेहतर योगदान दिया जा सके, साथ ही वह मानते हैं कि सामाजिक विषयों पर लेखन और चिंतन शिक्षित लोगों का दायित्व है और उन्हें दृढ़ विश्वास है कि स्पष्टता ही मजबूत कदम उठाने मे मदद करती है और इस विश्वास के साथ कि अच्छा साहित्य ही युवाओं को हर तरह से मजबूत करके देश को महाशक्ति और पूर्णतया आत्मनिर्भर बनाने मे बेहतर योगदान दे पाने मे सक्षम करेगा, वह साहित्य अध्ययन को प्रोत्साहित करने को प्रयासरत हैं, 

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