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खांसी (लघुकथा) - सुषमा सिन्हा

अम्मा की खांसी बढ़ती जा रही थी। ऐसे में ठंड के समय दमा की बीमारी और भी परेशान करती ही है। दूसरी तरफ यह भी सच था कि अम्मा की ना तो सही से देखभाल हो रही थी न ठीक से दवा-दारूही हो रही था। बहू तो अम्मा की खांसी से इतनी ऊब चुकी थी कि उनके लिए सबसे पीछे वाले कमरे में व्यवस्था कर दी थी। पति के पूछने पर कारण बताती हुई कहने लगी-क्या करूं, घर में चार लोग आते-जाते रहते हैं। ऐसे में अम्मा के कारण बड़ी असुविधा और शर्म-सी महसूस होती है। फिर मुझे भी रात को सोने में दिक्कत होती है। घर भर को असुविधा ना हो, इसलिए ऐसा की। घर में बच्चे-बड़े, सब टीवी, मोबाइल पर व्यस्त रहते। ऊपर से पीछे का एकान्त कमरा ! अम्मा की खांसी की आवाज किसी को ठीक से सुनाई ही नहीं देती थी। वह खांसते-खांसते हलकान भी हो जाती तो भी किसी को पता नहीं चल पाता। कभी-कभी पोता बिट्ट जो आठ वर्ष का था, दादी के पास आकर बैठता और बातें भी करता। दादी से पूछता-दादी तुम्हारी खांसी कब ठीक होगी? दादी उसके सर पर हाथ फेरती हई उसे प्यार करती हई कहती-यह बुढापे की बीमारी है। मेरे दम के साथ ही जाएगी। वह ठीक से दादी की बात नहीं समझ पाता और बदले में दादी को भी प्यार-दुलार करता हुआ वहां से चला जाता। एक दिन सचमुच दादी खांसी के साथ ही इस दुनियां से विदा ले ली। अगले साल जाड़े के मौसम में बिट्टू की मां खांसी की चपेट में आ गई। एक रात बिट्टू, मां से कहने लगा-मम्मी तुम खांसी वाले कमरे में पीछे जाकर क्यों नहीं सोती हो, तुम्हारी वजह से मैं ठीक से सो नहीं पाता।

© सुषमा सिन्हा, वाराणसी 

ईमेल- ssinhavns@gmail.com


 आदरणीय सुषमा सिन्हा जी का जन्म वर्ष 1962 में गया (बिहार) में हुआ, इन्होने बीए ऑनर्स (हिंदी), डी. सी. एच., इग्नू (वाराणसी)  उर्दू डिप्लोमा में शिक्षा प्राप्त की|

विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में विगत 32 वर्षों से कविता, लघु कथा, कहानी आदि प्रकाशित । इनकी  प्रकाशित पुस्तकें निम्नलिखित हैं :-
चार लघुकथा संग्रह
1. औरत (2004)
2. राह चलते (2008)
3. बिखरती संवेदना (2014)
4. एहसास (2017)

अपने शिल्प में निपुण सुषमा जी में अथाह सृजनशीलता है। 

अपनी सिद्ध लेखनी से सुषमा जी जीवन के अनछुए पहलुओं पर लिखती रही हैं और लघु कथा विधा को और अधिक समृद्धशाली कर रही हैं    लेखिका और उनके लेखन, शिक्षा और सम्मान के बारे में जानने के लिए यहाँ क्लिक करें |


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