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बरसात (लघुकथा) - सुषमा सिन्हा

वह जगह शहर से थोड़ी हटकर थी, इसलिए कुछ सुनसान-सी थी। छिटपुट घर-मकान और गिनती की दुकान। बारिश तेज हो रही थी। एक लड़का पानी से बचने के लिए एक दुकान के छज्जे के नीचे जाकर खड़ा हो गया। कुछ देर बाद दुकानदार ने कहा, बेटा जरा एक बगल होकर खड़े रहो, ग्राहकों को आने में परेशानी न हो। लड़के ने हंसते हुए कहा, इस मौसम में कौन आएगा, आपकी दुकान पर। दुकानदार ने छूटते ही बोला, जैसे तुम आ गए हो। ऐसे ही समय में तो लोग आश्रय ढूंढते हैं। आते हैं पानी से बचने के लिए, परन्तु उनमे से कुछ को यूं ही खड़ा रहकर पानी रुकने का आसरा देखना अच्छा नहीं लगता, सो दुकान के अन्दर बैठकर चाय पीते हुए, पानी थमने का इंतजार करते हैं। सचमुच एक बारगी पानी का बौछार तेज हो गया तो चार-पांच लोग एक साथ दुकान में चले आएं। फिर कुछ पल में ही अन्दर बैठकर चाय पीने लगे। लड़का एक नजर उस अनुभवी और समझदार दुकानदार की ओर देखा, फिर थोड़ा शर्माते हुए, एक कप चाय का आर्डर देकर दुकान के अन्दर बैठ गया।

© सुषमा सिन्हा, वाराणसी 

ईमेल- ssinhavns@gmail.com


 आदरणीय सुषमा सिन्हा जी का जन्म वर्ष 1962 में गया (बिहार) में हुआ, इन्होने बीए ऑनर्स (हिंदी), डी. सी. एच., इग्नू (वाराणसी)  उर्दू डिप्लोमा में शिक्षा प्राप्त की|

विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में विगत 32 वर्षों से कविता, लघु कथा, कहानी आदि प्रकाशित । इनकी  प्रकाशित पुस्तकें निम्नलिखित हैं :-
चार लघुकथा संग्रह
1. औरत (2004)
2. राह चलते (2008)
3. बिखरती संवेदना (2014)
4. एहसास (2017)

अपने शिल्प में निपुण सुषमा जी में अथाह सृजनशीलता है। 

अपनी सिद्ध लेखनी से सुषमा जी जीवन के अनछुए पहलुओं पर लिखती रही हैं और लघु कथा विधा को और अधिक समृद्धशाली कर रही हैं    लेखिका और उनके लेखन, शिक्षा और सम्मान के बारे में जानने के लिए यहाँ क्लिक करें |


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