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दवा (लघुकथा) - सुषमा सिन्हा

अम्मा अपने लिए दवा ले रही थी, तभी दुकान पर एक व्यक्ति अपना पर्चा आगे कर दिया। दुकानदार ने दवा देते हुए कहा, यह बहुत बढ़िया टॉनिक है। इस से दिमाग तेज होता है, ब्रेन शार्प बनता है। याददाश्त ठीक रहती है...। बच्चों के लिए तो बहुत ही अच्छी दवा है। वह व्यक्ति दवा लेकर चला गया। अम्मा उत्सुकतावश दुकानदार से पूछी, बेटा इसके प्रयोग से याददाश्त कितनी अच्छी हो सकती है? क्या बहुत पीछे की बातें भी..., जैसे बचपन की बातें भी याद आ सकती है ?

दुकानदार मुस्कुराते हुए कहा-आप भी ना अम्मा! बच्चों की तरह बातें कर रही हैं। इस उम्र में आप बचपन के दिनों में लौटना चाहती हैं। नहीं बेटा! मैं अपने लिए नहीं, अपने बच्चों के लिए पूछ रही थी। क्या इस दवा से उन्हें अपने बचपन की याद आ सकती है? क्या इतनी कारगर दवा है? दुकानदार पुनः मुस्कुरा कर बोला, नहीं अम्मा! ऐसा तो नहीं हो सकता ! मगर आप ऐसा क्यों पूछ रही हैं? अम्मा बेचारी परेशान और बीमार थी। दुकानदार से जाते- जाते, धीरे-धीरे कहने लगी, क्या करें..! बच्चे सबूत मांगते हैं... कि, हमने उनके लिए किया ही क्या है ?

© सुषमा सिन्हा, वाराणसी 

ईमेल- ssinhavns@gmail.com


 आदरणीय सुषमा सिन्हा जी का जन्म वर्ष 1962 में गया (बिहार) में हुआ, इन्होने बीए ऑनर्स (हिंदी), डी. सी. एच., इग्नू (वाराणसी)  उर्दू डिप्लोमा में शिक्षा प्राप्त की|

विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में विगत 32 वर्षों से कविता, लघु कथा, कहानी आदि प्रकाशित । इनकी  प्रकाशित पुस्तकें निम्नलिखित हैं :-
चार लघुकथा संग्रह
1. औरत (2004)
2. राह चलते (2008)
3. बिखरती संवेदना (2014)
4. एहसास (2017)

अपने शिल्प में निपुण सुषमा जी में अथाह सृजनशीलता है। 

अपनी सिद्ध लेखनी से सुषमा जी जीवन के अनछुए पहलुओं पर लिखती रही हैं और लघु कथा विधा को और अधिक समृद्धशाली कर रही हैं    लेखिका और उनके लेखन, शिक्षा और सम्मान के बारे में जानने के लिए यहाँ क्लिक करें |