"अरे डॉक्टर साहब, आज कार कहां है?" परिचित डॉक्टर सुमित उसके ऑटोरिक्शा में बैठे तो पूछ लिया उसने.
"वो तो अभी रिपेयर में ही है. छोड़ो यार वो किस्सा.. वैसे नरेन, यह तुम अच्छा करते हो." विषय बदलते हुए डॉक्टर साहब ने कहा, "मैंने पढ़ा है अखबार में तुम्हारे बारे में."
"क्या सर?"
"अरे यही कि किसी बूढ़े, गरीब आदमी से रिक्शे का भाड़ा नहीं लेते."
"हऽऽम"
"क्या हुआ भाई, सीरियस क्यों हो गए?" डॉक्टर ने संभलकर पूछा.
"डॉक्टर साहब एक बात कहूं." उसमें न जाने कैसे हिम्मत आ गई, "आप भी कुछ अच्छा करिये ना"
"मतलब? व्हाट डू यू मीन?"
"सर, मैं भी आपका मरीज रहा हूं. आप हर मरीज से सात सौ रुपए फीस लेकर उसे सिर्फ दस मिनट देखते हैं. भगवान ने बहुत कुछ दिया है आपको."
चिकनी सड़क पर सरपट भागते ऑटोरिक्शा को अचानक स्पीड ब्रेकर का झटका लगा, "आप भी ऐसा करिये न, हर महीने में किसी एक दिन, सिर्फ एक दिन, मरीजों को फ्री देखिए न!"
- संतोष सुपेकर
ईमेल- santoshsupekar29@gmail.com
सुपेकर जी, वर्षों से साहित्य जगत से जुड़े हैं, सैकड़ों लघुकथाएं और लेख लिखे हैं जो समाज में संवेदना और स्पष्टता पैदा करने में सक्षम हैं, आप नियमित अखबार-स्तम्भ और पत्र पत्रिकाओं (लोकमत समाचार, नवनीत, जनसाहित्य, नायिका नई दुनिया, तरंग नई दुनिया इत्यादि) में लिखते रहे हैं और समाज की बेहतरी हेतु साहित्य कोश में अपना योगदान सुनिश्चित करते रहे हैं और आपकी कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमे कुछ हैं- सातवें पन्ने की खबर, प्रस्वेद का स्वर इत्यादि )
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