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युवाओं द्वारा आत्महत्या ! एक पड़ताल, एक नजरिया

अभी हाल ही में अपने देश के एक विश्वविद्यालय से दुखी करने वाली खबर आई कि इंजीनियरिंग के पहले वर्ष के एक छात्र ने आत्महत्या कर ली और तथाकथित रूप से उसने अपने स्यूसाइड नोट में इसका कारण अंग्रेजी माध्यम में पढ़ाई के चलते आने वाली दिक्कतों को बताया!

युवा और पढ़ाई, ऐसी ही कुछ खबरें राजस्थान के कोटा से भी आयीं थी कुछ वक़्त पहले कि वहाँ अध्ययनरत कुछ बच्चे पढ़ाई और प्रतियोगी परीक्षाओं के दबाव और सामाजिक दबाव के चलते अवसाद का शिकार हुये और उनमे से कुछ ने आत्महत्या जैसे दुखद कदम उठा लिए |

इन दुखद खबरों के बीच कुछ सवाल हैं, जिन पर मेरी नजर में विचार करना जरूरी हो जाता है हर उस जिम्मेदार इंसान के लिए जो या तो अभिभावक है, या इस देश के भविष्य की चिंता करने वाला नागरिक या खुद कोई युवा, कोई विद्यार्थी |

  • जीवन की असीम संभावनाओं के बावजूद युवा आत्महत्या जैसे कदम क्यों उठा ले रहे?

उन्हे अपने माता पिता और प्रियजनों की इतनी चिंता तो होती है कि स्यूसाइड नोट छोड़ जाते हैं लेकिन खुद के जीवन से इतना निराश क्यों हो जाते हैं ?

कहीं ऐसा तो नहीं कि दुनिया को इतनी ज्यादा अहमियत दे देते हैं कि उसका सामना नहीं कर पाते ! और स्वयं कि असीम संभावना को भूल जीवन को खत्म कर लेते हैं |

एक चुना हुआ काम अगर नहीं हो पा रहा है तो उसके लिए थोड़ा और समय लिया जा सकता है या फिर उसे छोड़कर दूसरा मुफीद काम चुना जा सकता है जो अपनी क्षमताओं में हो, जिसमे मन लगता हो और इतना मन लगता हो कि कम कमाई मे भी उस काम को करने को तैयार हो जाए मन, कोई ऐसा काम जिससे हम समाज के दुखी , जरूरतमंद के लिए कुछ अच्छा काम कर सकते हैं, लेकिन जीवन खत्म कर सारी संभावनाओं को मार देना कहीं से भी बुद्धिमत्तापूर्ण नहीं |

  • लोगों के ताने हमें क्यों परेशान करते हैं ?

कहीं ऐसा तो नहीं कि हमने अपनी आज़ादी को चाहने वाली चेतना के बजाय लोगों द्वारा हमे दिये गए सर्टिफिकेट को ज्यादा मान दे दिया है ! हमारे उपनिषद और आध्यात्मिक साहित्य हमसे कहते हैं कि जीवन का मुख्य उद्देश्य है डर, लालच और मोह से मुक्ति है  लेकिन ये क्या हमने मुक्ति कि तरफ बढ्ने के बजाय खुद को और ज्यादा बांध लिया लोगों कि हमसे अपेक्षाओं से और लोगों को अधिकार दे दिया कि वो हमारा आंकलन करें सतही चीजों पर !


किसी भी इंसान का आंकलन केवल एक बात पर हो कि उसके जीवन मे सच्चाई का क्या स्थान है, रही बात परीक्षा मे परिणाम कि तो उसमे ये हमारा व्यक्तिगत निर्णय होना चाहिए कि हम अपनी जीविका ( जो आत्मनिर्भरता और उत्कृष्टता का साधन है ) के लिए कौन सा काम चुनना चाहते हैं, इसमे ये नहीं होना चाहिए कि दुनिया वाले ज्यादा मान किस काम को देते हैं, दुनिया को ज्यादा मान देने से बचो,

दुनिया से सम्मान मांगने के बजाय देखो कि आपका काम क्या आपको उत्कृष्टता कि तरफ बढ़ा पा रहा है, क्या उसमे सच्चाई है ?, क्या उसमे किसी का शोषण तो नहीं ?

इस बड़ी सी दुनिया मे हर तरह के लोग हैं, बाहरी दिखावा देख प्रभावित होने वाले (मोटी बुद्धि के लोग) और आपके काम की उत्कृष्टता और आपके जीवन मे सच्चाई की स्थान देखने वाले गहरी दृष्टि के लोग भी, इसीलिए काम ऐसा चुनिये जिसमे डूबने का दिल करे, जिसे आप कम पैसे या बिना पैसे मिले भी कर सको फिर फर्क ही नहीं पड़ता कि दुनिया वाले तारीफ कर रहे या नहीं, अगर आपका काम वाकई दुनिया के कुछ लोगों के भी काम का है तो आप न भूखे रहोगे और नहीं गुमनाम, काम मे मज़ा आपको आ ही रही, बाकी रही बात अन्य जरूरतों कि तो वो भी पूरी ही जानी है, पहली जरूरत तो उत्कृष्टता और आज़ादी ही है, रोटी कि व्यवस्था हो जाती है अगर आप वो काम कर रहे जो दुनिया के मतलब  का है, बाकी उस काम को आप कितना महत्व दिलवा पाते हो ये भी आपकी काबिलियत है |


"पेशे से बैंककर्मी अंशिङ्का शर्मा जी कहती हैं कि जीवन आपका है इसके इन-चार्ज आप खुद हो, इसे एक उपयोगी काम मे लगाकर खुद को उत्कृष्टता और आत्मनिर्भरता की मंजिल तक ले जाने का जिम्मा आपका है, लोगों के अनावश्यक सवालों के जवाब देने कि जरूरत नहीं, जरूरत है होश मे काम चुनकर उसमे सही मेहनत करने की |"

-----------------अंशिङ्का शर्मा जी की  शैक्षिक पृष्ठभूमि इंजीनियरिंग की है और वह पेशे से बैंककर्मी हैं |


 

  • क्या अँग्रेजी वाकई बहुत बड़ी दिक्कत है ?

नहीं, बस जरूरत है इसे समय देकर सीखने की, मेहनत करने की |

अमूमन ऐसा देखा गया है कि बारहवीं तक हिन्दी या अन्य माध्यम के जो बच्चे बारहवीं के बाद अँग्रेजी माध्यम वाले कोर्स मे दाखिला लेते ही अँग्रेजी से आतंकित हो जाते हैं उनकी अँग्रेजी और उस विषय दोनों की समझ उस स्तर कि नहीं होती कि वह विषय वो अँग्रेजी मे समझ सकें इसका एक उपाय ये हो सकता है कि अगर ऐसे बच्चे बारहवीं के बाद अँग्रेजी माध्यम मे पढ़ाई को इच्छुक हैं तो पहले ही अपनी अँग्रेजी पर पकड़ को शॉर्ट स्टोरीज की किताब से और उस विषय की महत्वपूर्ण परिभाषाओं और शब्दों का अँग्रेजी रूपान्तरण साथ मे ही मजबूत करें ताकि बारहवीं  के बाद अचानक बोझ न बने और इसके बाद भी अगर कक्षा मे दिक्कत आए तो अपने शिक्षक को अपनी दिक्कत से अवगत कराएं और उनसे मदद मांगे और शिक्षक भी संवेदनशीलता के साथ इस देश के कर्णधार हमारे युवाओं की दिक्कत को समझते हुये उचित व्यवस्था और उपाय करें, लेकिन किसी भी हालत अँग्रेजी या कोई भी विषय न आने पर खुद को हीन न माने, मै फिर इस बात को दोहराता हूँ कि आपकी महत्ता आपकी विषय विशेषज्ञता से नहीं आपके जीवन मे सच्चाई और आपकी आत्मनिर्भरता से होनी है इसीलिए किसी को अधिकार न दें आपको नीचा या इंफीरियर महसूस करने का जब तक आपके जीवन मे सच्चाई और आत्मनिर्भरता है आप ठसक से सीना तानकर चलिये, अपने पैरों पर खड़े हो सकें इसके लिए कोई काम सीखें, कोई ज्ञान हंसिल करें, परंपरागत या गैर परंपरागत इस नेक काम के लिए किसी कि मदद लेनी पड़े तो संकोच न करें, माता-पिता भी बच्चों को ज्ञानवान और काबिल बनाने के लिए पूरे प्रयत्न करें लेकिन दबाव न बनाए बच्चे पर कोई ऐसा कोर्स करने पर जिसमे उसे रुचि न हो, जो कुछ अभिभावक जानते हैं वो बच्चे को जरूर बताएं, फायदे नुकसान, तथ्यों के साथ और इस तरह मदद करें उसकी सही डिसीजन लेने मे और रखेँ गुंजाइश इस बात की कि उनका बच्चा अपनी असहजता पर खुलकर बोल सके,

ऐसा माहौल बिलकुल न बनाएँ कि उसे अपना डिस कम्फर्ट व्यक्त करने मे संकोच हो, बच्चे को बोल दें कि अपना डिस कम्फर्ट या असहजता व्यक्त करना उसका अधिकार है |

“हमें लोगों की नजर में नहीं स्वयं कि नज़र मे ऊंचा उठने की जरूरत है सच्चाई और एक सीमा के बाद के आत्मनिर्भरता लाकर “

“लोग तो अपनी जरूरत और मूड के हिसाब से मान देते हैं ऐसे मान को मान नहीं भी दोगे तो चलेगा लेकिन जीवन मे ईमानदारी रखना, न स्वयं से और न ही दूसरों से कोई झूठ, सच बोलिए चीजों को बेहतर व्यक्त करना सीखिये अभ्यास और विश्लेषण से |”

  • क्या हम जानते भी हैं खुद को ?

हम सबके भीतर दिव्यता है अपने काम मे उत्कृष्टता लाकर उसे मैनीफेस्ट कीजिये, “जो आनंद काम को बेहतर तरीके से करने, और तकलीफ मे या वाकई के जरूरतमंद जीव की मदद मे है वो बड़े बड़े मनोरंजन मे नहीं |”

 

“जो एडवैंचर सच्चाई के लिए काम करने मे हैं वो बड़े बड़े एडवैंचर गेम्स मे नहीं |”

 

  • क्या हम बच्चों को शुरूआत से ऐसा माहौल और समझ दे पा रहे हैं जिससे कि अफसोस करने की स्थितियां कम से कम बने

जीवन मे अफसोस कि सिचुएशन से बचा जा सकता है पहला तो चीजों को गहराई मे समझ कर और खुद के लिए कुछ भी चुनने से पहले दूसरों की नकल करने के बजाय पहले खुद को फिर खुद कि असली जरूरतों को जानकार और निर्णय के आधार मे सच्चाई को रखकर नकि कोई डर या लालच को रखकर |


जब जरूरत हो कोई इंसान चुनने कि तब उस इंसान से जीवन कि गहराई पर बात कर लें, अगर उस इंसान मे जीवन को गहराई से समझने का रुझान होगा तो वो आपके साथ रिश्ते मे भी गहराई ल पाएगा/पाएगी |


- लवकुश कुमार, भौतिकी मे परास्नातक हैं और सामाजिक विषयों पर लेखन और चिंतन अपना दायित्व समझते हैं और दृढ़ विश्वास रखते हैं कि स्पष्टता ही मजबूत कदम उठाने मे मदद करती है और इस विश्वास के साथ कि अच्छा साहित्य ही युवाओं को हर तरह से मजबूत करके देश को महाशक्ति और पूर्णतया आत्मनिर्भर बनाने मे बेहतर योगदान दे पाने मे सक्षम करेगा, वह साहित्य अध्ययन को प्रोत्साहित करने को प्रयासरत हैं :-  

 

युवा आत्महत्या क्यों करते है? इस पर सौम्या जी के विचार और आबजरवेसन इस विषय पर और गहराई देने वाले हैं :

उनके शब्दों मे :

  • मुझे इसका एक कारण, जो बहुत बड़ा कारण लगता है वो है, 'पैरेंटिंग' । क्योंकि बच्चों के दिमाग में क्या जा रहा है और इस समाज को वो किस नजरिए से देखते है वो बहुत हद तक परवरिश पर निर्भर करता है।

 

  • दूसरा प्रमुख कारण है हमारे संस्कार या Value System, आज अगर देखा जाए तो एकल परिवार है, इसीलिए जो नैतिक मूल्यों को और समझ को परिपक्व करने वाली हमारे सच्चे आदर्शों की कहानियाँ उन तक पहले आसानी से  पहुँच सकती थी उनके लिए हमे अलग से प्रयास करना होगा। आज के समय मे जब माता-पिता दोनों ही प्रत्यक्ष रूप मे राष्ट्रनिर्माण मे योगदान दे रहें है, इस परिस्थिति मे एक और परीक्षा है माता पिता के सामने  कि अपनी व्यावसायिक जीवन के साथ सामंजस्य बिठाते हुये अपने बड़े होते बच्चों के भावनात्मक बदलाव को समुचित तरीके से देख पाएँ और उन्हे सही समझ देकर हर चुनौती के लिए तैयार कर पाएँ, इसके लिए जरूरी है कि वो अपने घरों मे जरूरी साहित्य रखें, माने जीवन और दुनिया की समझ पर आधारित जीवनियाँ, कहानियाँ, निबंध, उपन्यास और कविताओं के साथ आध्यात्मिक निबंध और लेख, जिन्हे  माता पिता पहले खुद पढ़ें और फिर  बच्चों को प्रोत्साहित करें और नियमित इस पर चर्चा करें अगर ऐसा न किया जा सका तो  इस  मोबाइल जैसी शक्ति जो विनाशक भी हो सकती है, उनके हाथ में तो रहेगी लेकिन उसका इस्तेमाल कैसे करना है उसमे क्या देखना है और किस चीज़ से बचना है इसकी समझ उनमे न होगी और फिर उनके भटकने की और अनुचित प्रभावों और प्रचारों मे फँसने की संभावनाएं बढ़ जाएंगी |

 

तीसरा प्रमुख कारण है बढ़ता भौतिकवाद -> ऐसा देखने को मिला है कि कुछ लोगों द्वारा आज संतोष और शांति जैसे मूल्यों को बहुत नकारात्मकता के साथ लिया जाता है, और ऐसे लोगों को संख्या संक्रामक रोग की तरह तेजी से बढ़ रही है। अगर हम अपनी सच्ची जरूरतों की बात करे तो वो है रोटी, कपड़ा, मकान, ज्ञान ( इंटरनेट/ किताबें )। इन जरूरतों के लिए हमें करोड़ो - लाखों के पैकेज की जरूरत नहीं होती। हाँ लेकिन अगर आप इतने महत्वाकांक्षी हैं कि स्वयं की आज़ादी और जीवन मे सच्चाई से ज्यादा बाहरी सम्मान को ही सब कुछ समझते हैं तो ये अवसाद का एक कारण बन जाता है। अन्यथा भारतीय चेतना हमेशा से ही इतना चाहती है कि आत्मनिर्भता, सचाई और ईमानदारी बनी रहे जीवन मे और हम अच्छे से जीवन यापन कर सके।

“हमें बाजारवाद, वाणिज्यवाद में फंसाया जाता है और दुर्भाग्य ये है कि हम फंसते है।“

  • चौथा कारण अपनी जड़ों से अलग होना - धर्म व अध्यात्म हमारी जड़ें है। अगर हम एक बार सच्चे धर्म व अध्यात्म को समझ ले तो जिंदगी सिर्फ आसान नहीं होगी बल्कि आप लोगों को और उससे पहले स्वयं को जान सकेंगे और इस समाज के लिए कुछ कर सकेंगे जो लोगों के जीवन मे आत्मनिर्भरता और समृद्धता ला सके उन्हे संवेदनशील बना सकें
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  • ऐसा होने का कारण क्या हो सकते हैं ? आइये प्रयास करते हैं जानने का :

आज के संदर्भ में कहीं इसका सबसे बड़ा कारण हमारे हाथ में छोटी सी device मोबाइल का होना और फिर इस पर अत्यधिक निर्भरता तो नहीं ? इसी मोबाइल की वजह से आज न हमारे पास अपने साथ के लोगों के साथ बैठ चर्चा का समय है और न ही चीजों को सूक्ष्मता मे देख पाने का धैर्य, बस लगें हैं सतही मनोरंजन मे और उस ज्ञान को पाने मे जो चार लोगों के बीच शेखी बघारने मे तो काम आ सकता है लेकिन असल जीवन और कार्यक्षेत्र मे किसी काम का नहीं | नतीजा ये कि जब उच्च साहित्य से संपर्क नहीं रहा तो हमारी संवेदनशीलता भी कम हो गयी और हम दूसरों की तकलीफ के प्रति कम संवेदनशील हो गए इसीलिए उन्हे हल करने के प्रयास भी कम हो गए और दूसरों कि तकलीफ कम करके जो आनंद मिलता है उससे भी हम अछूते रह गए, पास क्या रह गया उथला मनोरंजन !

  • आज न जाने कितनी बीमारियाँ हद से ज्यादा स्क्रीन टाइम से हो रही और हम है  कि Reels scrolling मे लगें, ये तक नहीं पता कि हम ढूंढ क्या रहे हैं उनमे, कारण ? जीवन मे उत्कृष्टता कि चाह न रहना इसीलिए काम मे जी न लगना और खुद को शांत करने के लिए सतही मनोरंजन और नशा की शरण लेना
  • इस समस्या का एक हल ये हो सकता है कि युवाओं के महान लोगों कि जीवनियां पढ़वाई जाएँ जिसके दो फायदे होंगे पहला ये कि वो इन महान लोगो की तकलीफ़ों से परिचित होंगे और ये जान पाएंगे कि इनकी तकलीफ़ें कितनी कम या छोटी हैं उन तकलीफ़ों और कठिनाइयों से जो महान लोगों ने झेली |

दूसरा ये कि वो ये जान पाएंगे कि जीवन का असली और टिकाऊ आनंद है अपने काम की उत्कृष्टता और जरूरतमंद लोगों के लिए काम करना है, लोगों का जीवन आसान और सुविधाजनक हो सके इसके लिए काम करने मे, लोगों के जीवन मे गरिमा, बंधुता और आत्मनिर्भरता के लिए काम करने मे है |

 

  • एक बात और जो समझनी बहुत जरूरी है वो है कि आजकल के जीवन में बाजारवाद और वाणिज्यवाद के कई नुकसान हैं:

बाजारवाद और वाणिज्यवाद आजकल के जीवन में कई तरह के नुकसान लाते हैं। ये हमें भौतिक सुखों के पीछे भागने के लिए प्रेरित करते हैं, जिससे हम अपनी असली ज़रूरतों और मूल्यों से दूर हो जाते हैं। अस्वस्थ प्रतिस्पर्धा और असमानता बढ़ती है, जिससे सामाजिक तनाव और असंतोष पैदा होता है। इसके अलावा, ये हमारी मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर भी बुरा असर डालते हैं, क्योंकि हम लगातार दूसरों से तुलना करते रहते हैं और तनाव में जीते हैं।


 

  • मोबाइल फोन के अत्यधिक उपयोग के कुछ अन्य नकारात्मक प्रभाव:

मोबाइल फोन का अत्यधिक उपयोग कई नकारात्मक प्रभाव डालता है। यह हमारी नींद को बाधित करता है, जिससे थकान और एकाग्रता की कमी होती है। सोशल मीडिया और अन्य ऐप्स पर लगातार लगे रहने से हमारा ध्यान भटकता है और हम वास्तविक दुनिया से कट जाते हैं। शारीरिक निष्क्रियता और आंखों की समस्याएँ भी बढ़ती हैं। इसके अलावा, मोबाइल फोन की लत हमें सामाजिक रूप से अलग कर सकती है और हमारी अन्य लोगों के साथ तालमेल बैठा पाने कि क्षमता को प्रभावित कर सकती है जिससे तनाव आ सकता है जो हमारे सोंचने समझने की क्षमता ओर नकारात्मक प्रभाव डालता है और हम घातक कदम उठाने कि तरफ बढ़ सकते हैं |


 

  • अपने जीवन में आध्यात्मिकता को उचित महत्व न देना भी ज़्यादातर मानवीय समस्याओं की जड़ है :

आध्यात्मिकता हमारे जीवन में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह हमें आंतरिक शांति, संतोष और उद्देश्य की भावना प्रदान करती है। यह हमें तनाव और चिंता से दूर रहने में मदद करता है, जिससे हमारी मानसिक स्वास्थ्य बेहतर होता है। आध्यात्मिकता हमें नैतिक मूल्यों और सही-गलत की समझ देती है, जिससे हम बेहतर इंसान बनते हैं। यह हमें दूसरों के प्रति सहानुभूति और दयालुता विकसित करने में भी मदद करता है, जिससे सामाजिक संबंध मजबूत होते हैं।

  • हम और क्या - क्या कर सकते हैं एक सफल और सार्थक जीवन के लिए ? आइये विचार करते हैं :

आप एक बार अपना सच्चा विश्लेषण कीजिए कि आपके हाथों में मोबाइल है ? या आप मोबाइल के हाथों में है ?आप 24 घंटे के लिए अपना मोवाइल Switch off करके रख दीजिए और उस समय अपने मस्तिष्क पर प्रभाव का विश्लेषण कीजिए।

दयानंद सरस्वती ने कहा था 'वेदों की और लौटो', आप सीधे वेद नहीं पढ़ पा रहे तो कम से कम अन्य सरलीकृत आध्यात्मिक साहित्य से (गायत्री परिवार वैबसाइट लिंक) अध्यात्म को जान लीजिए। इंटरनेट पर ब्रम्हाकुमारी, गायत्री परिवार जैसे  बहुत से संस्थानों के प्रोग्राम आते है, आप उनसे सीख सकते है।

आप महात्वाकांक्षी बनिए। लेकिन टार्गेट मे इस दुनिया की किसी चीज के बजाय सबसे पहले उत्कृष्टता, ईमानदारी और आत्मनिर्भरता को रखिए, इतना कर लेने के बाद आपको एहसास हो जाएगा कि दुनिया मे ऐसा बहुत कुछ या कहिए ज़्यादातर चीज़ें ऐसी हैं जिनको टैस्ट करने या हांसिल करने की बिलकुल भी जरूरत नहीं हैं |

“इंसान की ज़्यादातर परेशानियों का कारण ही उन चीजों को चाहना है जिसकी उसे बिलकुल भी जरूरत नहीं है”

 न ही जरूरत से ज्यादा पाने की आशा रखिए। महत्व देना है तो चेतना को दीजिए, शरीर को नहीं। जरूरी नहीं है कि बाजारवाद के नाम पर आपको जो परोसा जाए वो सब आप कंज्यूम ही कर लें |

  • अपनी दृष्टि को विस्तार दीजिए। दुनिया को सिर्फ अपने चश्मे से मत देखिए। अच्छा साहित्य पढ़िये , महान् व्यक्तित्वों के बारे में पढ़िए । अपने से कमतर जीवन जीने वाले लोगों के विषय में सोचिए। उनके लिए कुछ कीजिए। मदद हमेशा धन से नहीं होती। कभी-2 प्यारे-मीठे बोल धन से ज्यादा कारगर होते हैं। पहले खुद से, फिर अपनों से और फिर समाज से आप कुछ अच्छा करने का वादा कीजिए। और इस सच्चे उद्देश्य के लिए लग जाइए।
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  • मुझे व्यक्तिगत रूप से लगता है कि इस दुनिया का सबसे बड़ा सुख किसी की मदद करके ही मिल सकता है और इससे आप किसी भी अवसाद से पार पा सकते हैं।“
  • प्यारे और मीठे बोल हमें दूसरों के साथ बेहतर संबंध बनाने और सकारात्मक वातावरण बनाने में मदद करता है।
  • दूसरों की मदद करने से हमें खुशी मिलती है और हम अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं।
  • मेरा मानना है कि हम दूसरों की मदद करके अवसाद से पार पा सकते हैं। दूसरों की मदद करने से हमें सकारात्मक भावनाएं मिलती हैं और हम अपने जीवन में एक उद्देश्य प्राप्त करते हैं, जिससे अवसाद कम होता है।

 

सौम्या गुप्ता जी इतिहास मे परास्नातक हैं और शिक्षण का अनुभव रखने के साथ सामयिक विषयों पर लेखन और चिंतन की आदत भी रखती हैं |




 

इस आशा के साथ कि यह लेख पाठकों को स्पष्टता देगा|

बातों को तर्क और व्यावहारिकता की कसौटी पर परखें और संतुष्ट होने पर ही लागू करें |

शुभकामनाओं के साथ |