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नाम में क्या रखा है ! बात करने को ज्यादा जीवंत बनाने के सम्बन्ध में

एक दृश्य में एक शायर, अपनी शायरी पाठ के बीच में  बार-2 उस जलसे के आयोजक जोकि एक ज्ञानी इंसान थे उनका नाम ले रहा था और उनके जनहित के कार्यों को उद्धृत कर रहा था |

इसी घटना का सन्दर्भ लेते हुए क्या हम ये नहीं कर सकते कि जब किसी से बात करें तो उनका नाम लें बीच बीच में जरुरत के अनुसार, क्या होगा इससे ? इससे सामने वाले इंसान को अच्छा महसूस होगा और उसकी तरफ से बेहतर प्रतिक्रिया और बेहतर प्रदर्शन मिलेगा |

"वो फाइल उठा देना" से बेहतर है कि आप कहो कि " मोहन वो फाइल उठा देना" 

"ठीक है"  कहकर फ़ोन रखने से बेहतर है की आप कहो " ठीक है मोहन फ़ोन रखता हूँ "  या "ठीक है मोहन फ़ोन रखता हूँ फिर बात होगी " या  "ठीक है सोहन फ़ोन रखा जाये अब ? " या "ओके बाय मोहन रखता हूँ अब " |

नोट- हर किसी न किसी का कोई महत्व होता है, किसी को अपने व्यवहार से महत्वहीन न महसूस कराएँ 

हर किसी से इंटरैक्ट करना जरुरी नहीं लेकिन जिससे इंटरेक्शन कर रहें हैं कम से कम उससे बात करते वक़्त उसकी गरिमा का ध्यान रखें और उसके कार्यों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करें अगर कोई शब्द नहीं कह सकते तो एक प्यारी सी मुस्कान क्योंकि मुस्कान से हर्ष का पता चलता है और " हर्ष कृतज्ञता का सरलतम रूप है  "

-लवकुश कुमार