आपसी रिश्तों को सन्दर्भ में लेते हुए, आएये गौर करते हैं कुछ बातों पर;
क्या हम उसके पॉइंट ऑफ़ व्यू (नजरिये) को समझने का प्रयत्न करते हैं और उससे जिज्ञासा व्यक्त करते हैं कि वो हमें अपनी बात और अच्छे से समझाए
या फिर हम उससे बात बंद कर देते हैं क्योंकि हमारे अहम् को ठेस लग जाती है, या फिर खुद को सही साबित करने के लिए बिना उसकी बात को समझे हम उससे
बदतमीजी के साथ कुतर्क करने लग जाते हैं, या फिर उसे खुद से नीचा दिखकर उसकी आवाज को दबाने का प्रयास करने लग जाते हैं;
अगर आप पहले विकल्प के अलवा कोई प्रतिक्रिया चुनते हैं तो आपने परोक्ष रूप से असहमति दर्ज करने को मुश्किल बनाने का काम किया है, संभावना है की आगे वो इंसान आपसे किसी मामले पर सहमत न होने पर असहमति व्यक्त करने से परहेज करेगा और यदि आपसे कोई स्वार्थ है तो झूठे ही आपकी हाँ में हाँ मिला लेने की संभावना बढ़ जाएगी
इस तरह दो नुक्सान हुए, पहला तो सामने वाले ने झूठ बोला और दूसरा की आप चूक गये एक और नजरिये से चीज़ों को देखने के और अपनी दृष्टि और समझ को और समावेशी बनाने से |
2. आपका किसी से कोई विवाद या कहा सुनी हो गयी और आप अपने किसी साथी के सामने उस इंसान (जिससे विवाद या कहा सुनी हुयी हो) की बुराई करने लगे और उसकी कमियों पर बोलने लगे, क्या हो अगर आपका साथी उस आदमी की गलतियों के साथ आपकी गलती और कमी पर भी बात करने लगे या आपके उस नजरिये को बदलने को कहने लगे जिसके चलते आपको अपने विरोधी का सही काम भी गलत लग रहा है; या फिर आपसे झगड़ने के बजाय सुलह करने की बात बोलने लगे; क्या प्रतिक्रिया होगी आपकी ?
क्या हम उसके पॉइंट ऑफ़ व्यू (नजरिये) को समझने का प्रयत्न करते हैं और उससे जिज्ञासा व्यक्त करते हैं कि वो हमें अपनी बात और अच्छे से समझाए
या फिर हम उससे बात बंद कर देते हैं क्योंकि हमारे अहम् को ठेस लग जाती है; कहीं ऐसा तो नहीं की हम उसे खुद से अलग या विपरीत पक्ष वाला मानने लग जाएँ और इस कदर कि उसकी दिक्कत में भी उसके साथ खड़े होने से मन कर दें (दिक्कतें किसी के सामने भी आ सकती हैं, दिक्कत मे साथ देना तो मानव धर्म है )
अगर इस तरह का व्यवहार हुआ आपका फिर तो संभावना ये बन जाएगी की सामने वाला इंसान या तो आपसे दूरी बना लेगा (फिर आप कहोगे की सच बोलने वाले लोग कम हैं) या फिर आपके सामने आपकी हाँ में हाँ मिलाएगा और आपके विरोधी के सामने उसकी हाँ में हाँ मिलाएगा और नतीजा क्या होगा की दोनों की ग़लतफ़हमी बढती ही जाएगी और खुद की गलती हमें दिखाई ही न देगी | (अमूमन लोग ऐसा करते हैं ये सोंचकर की कहीं इनसे कोई काम न पड़ जाये ) आगे आप विचार कर सकते हैं ?
एक बात कहकर इस भाग को पूरा करूँगा कि लोग अपना टारगेट पहले ही फिक्स कर चुके होते हैं उसी हिसाब से तर्क चुनते हैं, उदाहरण के लिए ये जानते हुए भी की अमुक इंसान एक नंबर का भ्रष्ट इंसान है फिर भी कुछ लोग उससे रिश्ता जोड़ने को, उसे सम्मान देने को तैयार हो जाते है क्योंकि वो पैसे वाला है या रसूख वाला है क्योंकि उस वक़्त प्राथमिकता में (टारगेट ) पैसा या कोई विशेष काम होता है |
अगर प्राथमिकता में पैसा और भौतिक उपभोग रहेगा फिर क्यों लोग स्पष्टवादी होंगे लोग तो फिर पैसे के पीछे भागेंगे और उसके लिए नैतिक पतन से भी परहेज न करेंगे |
जिस तरह के लोगों को हमारे समाज में मान मिलेगा, उस तरफ को ही भावी पीढ़ी बढ़ेगी, अगर सच के रास्ते चलने वालों को नादान कहकर उनका मज़ाक उड़ाया जायेगा और साथ खड़े होने से मना कर दिया जायेगा तो फिर सच के रास्ते चलने वाले कम लोग ही बचेंगे |
जीवन में कुछ रोमांचक करना चाहते हैं तो सच को अपना समर्थन दें, सही काम के लिए सही तकलीफ चुनें|
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शुभकामनायें
-लवकुश कुमार