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अमूमन अध्यात्म में रूचि न होने के क्या कारण हो सकते हैं ?

अध्यात्म, स्वयं को जानने पर केन्द्रित है, यदि हम जान जाते हैं कि

हममे कुछ खामियां हैं या हमारे जीवन की प्राथमिकताओं में कुछ गड़बड़ है 

तब जो अगला चरण होता है वो है बदलाव के लिए कार्यवाही का,

जोकि बहुत कम लोग चाहते हैं,

दूसरों के व्यवहार को बदलने की इच्छा रखने वाले तो बहुत लोग मिल जायेंगे 

लेकिन स्वयं में बदलाव नहीं चाहते, स्वयं तो बस मनमानी करनी है, ऐसा सोंचने वालों की बहुतायत है |

दूसरा हमारे जीवंन के केंद्र में अहंकार ( झूठा ज्ञान ) होता है नतीजतन हम उसी केंद्र से निर्णय लेकर

वैसी ही प्राथमिकताएं निर्धारित करते हैं और उसी के अनुसार कर्म करते हैं,

अगर अध्यात्म की समझ पैदा हुयी तो प्राथमिकताओं में आमूल चूल परिवर्तन करने होंगे 

और इस तरह भीड़ से अलग हटना पड़ सकता है, जबकि लोग वह काम करके सुरक्षित महसूस करते हैं

जो ज्यादातर लोग कर रहे हों|

नतीजतन अमूमन लोग अध्यात्म से दूरी रखते हैं और इसे

अव्यवहारिक कहकर नकार देते क्योंकि उन्हें तो भीड़ का हिस्सा रहना है |

 

ये कुछ कारण हैं मेरी समझ में |

अगर आपके पास कोई और कारण हैं तो जरुर लिख भेजें फीडबैक फॉर्म से |

शुभकामनाएं

-लवकुश कुमार