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होली और प्रकृति - डॉ अनिल वर्मा

होली-होली-होली!
अलस कमलिनी ने कलरव सुन उन्मद अँखियाँ खोली,
मल दी ऊषा ने अम्बर में दिन के मुख पर रोली।

होली-होली-होली!
रागी फूलों ने पराग से भरली अपनी झोली,
और ओस ने केसर उनके स्फुट-सम्पुट में घोली।
 
होली-होली-होली!
ऋतुने रवि-शशि के पलड़ों पर तुल्य प्रकृति निज तोली
सिहर उठी सहसा क्यों मेरी भुवन-भावना भोली?

होली-होली-होली!
गूँज उठी खिलती कलियों पर उड़ अलियों की टोली,
प्रिय की श्वास-सुरभि दक्षिण से आती है अनमोली।

होली-होली-होली!
फागोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं 

डॉ अनिल वर्मा 

डॉ अनिल वर्मा, कृषि रसायन में परास्नातक हैं और गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय पंतनगर उत्तराखंड में कृषि रसायन पर शोध कार्य कर चुके हैं।

इनके द्वारा शिक्षण और साहित्य के अध्ययन/अध्यापन का अनुभव एक बेहतर समाज के लिए उपयोगी है |

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