सागर की अपनी क्षमता है
पर माँझी भी कब थकता है
जब तक साँसों में स्पन्दन है
उसका हाथ नहीं रुकता है
इसके ही बल पर कर डाले
सातों सागर पार।
आत्मविश्वासी,उत्साही, परिश्रमी
का ही जग में अभिनंदन है।
वो कहा फिर कही थकता है
न डरता न रुकता है।
कर देता है
सातों सागर पार।।
काहे किंचित भय हो
है सद्गुण तो हो जय जयकार
न रुकता है। न थकता है।
कर देता है सातों सागर पार
-डॉ अनिल वर्मा
कवि कृषि रसायन में परास्नातक हैं और गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय पंतनगर उत्तराखंड में कृषि रसायन पर शोध कार्य कर चुके हैं।
ये कवि के निजी विचार हैं और समाज की बेहतरी के प्रयोजन से लिखे गए हैं।